कितना सहेंगी हमारी बेटियां
बिहार के सीतामढ़ी की कंचन बाला जब ऊपर भगवान के पास पहुंची होगी तो जरुर पूछी होगी कि मुझे लड़की क्यों बनाया ? काश ! मुझे भी लड़का बनया होता , मैं भी जी पाती शान से और पूरी कर पाती अपने सपने , जो मैंने देखे थे । जी पाती आजादी से बंधनमुक्त आजाद पंछी की भांति । कोई मनचला हमें नहीं छेड़ पाता और न ही मुझे मानसिक प्रताड़ना प्रताड़ना मिलती । मेरी बात किसी ने नहीं सुनी और वो मुझे परेशान करता रहा , अंत में मुझे मौत को गले लगाना पड़ा । जब मैं ही नहीं रहूंगी तो वो किसे तंग करेगा ?
यही सवाल छोड़ गयी है कंचनबाला समाज के सामने । उसकी बेबसी ने उसे आत्महत्या करने को मजबूर कर दिया । कोई रास्ता नहीं बचा था उसके पास इसीलिए उसने अपने सुसाइड नोट में ये लिखा । इसमें उसकी जैसी हजारों लड़कियों के साथ हो रहे अत्याचार की झलक मिलती है और उनकी बेबसी की झलक मिलती है ।
कंचन बाला भी उन्ही हजारों लड़कियों की तरह छेड़खानी की शिकार बनी और जब-जब उसने विरोध किया सजा उसे ही भुगतनी पड़ी । घर-परिवार के लोग उसे ही दोषी ठहराते रहे और वो मनचला उसे लगातार अपना शिकार बनाता रहा । जितना उससे बन पड़ा उसने उसका विरोध किया । उसका भाई जब उसका रक्षक बना तो उसे उन बदमाशों ने काफी पीटा । जब रिपोर्ट लिखाने थाने गयी तो पुलिस ने कोई सहायता नहीं की बल्कि उससे समझौता करने की सीख दी । पुलिस यदि समय पर उसकी सहायता करती तो वो मौत को गले नहीं लगाती पर पुलिस ने सीख दी कि इससे लड़की की बदनामी होगी , फिर तो वो बदमाश और भी आगे बढ़ गया । अब कंचन बाला हताश हो चुकी थी । उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था । पढाई छूट गयी । इस कच्ची उम्र में उसने समाज की गन्दगी को नजदीक से देखा । कितना मानसिक तनाव और बेबसी में होगी उस रात जब उसने आत्महत्या का निर्णय लिया होगा । अपने सुसाइड नोट में उसने पुलिस को जिम्मेदार ठहराया और प्रार्थना की कि उस बदमाश को सजा दी जाय ।
इस तरह की घटना के लिए कौन जिम्मेदार माना जायेगा ? अगर सही समय पर उसकी मदद की गयी होती वो आज हमारे बीच हंसती - खेलती होती ।
कंचन बाला भी उन्ही हजारों लड़कियों की तरह छेड़खानी की शिकार बनी और जब-जब उसने विरोध किया सजा उसे ही भुगतनी पड़ी । घर-परिवार के लोग उसे ही दोषी ठहराते रहे और वो मनचला उसे लगातार अपना शिकार बनाता रहा । जितना उससे बन पड़ा उसने उसका विरोध किया । उसका भाई जब उसका रक्षक बना तो उसे उन बदमाशों ने काफी पीटा । जब रिपोर्ट लिखाने थाने गयी तो पुलिस ने कोई सहायता नहीं की बल्कि उससे समझौता करने की सीख दी । पुलिस यदि समय पर उसकी सहायता करती तो वो मौत को गले नहीं लगाती पर पुलिस ने सीख दी कि इससे लड़की की बदनामी होगी , फिर तो वो बदमाश और भी आगे बढ़ गया । अब कंचन बाला हताश हो चुकी थी । उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था । पढाई छूट गयी । इस कच्ची उम्र में उसने समाज की गन्दगी को नजदीक से देखा । कितना मानसिक तनाव और बेबसी में होगी उस रात जब उसने आत्महत्या का निर्णय लिया होगा । अपने सुसाइड नोट में उसने पुलिस को जिम्मेदार ठहराया और प्रार्थना की कि उस बदमाश को सजा दी जाय ।
इस तरह की घटना के लिए कौन जिम्मेदार माना जायेगा ? अगर सही समय पर उसकी मदद की गयी होती वो आज हमारे बीच हंसती - खेलती होती ।
sach badi vikat isthiti ho gai hai ...
जवाब देंहटाएंऐसी दुखद घटनाएँ समाज में बढती ही जा रही है जो चिंताजनक है |
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
हमारे देश का दुर्भाग्य है यह जहां पुरातन ग्रंथों में हर धर्म में नारी को पूजने की बात होती है आज वो किन विडम्बनाओं को झेल रही है ह्रदय द्रवित होता है यह सब देख सुनकर
जवाब देंहटाएंसही कहा राजकुमारी जी...हम पुरातन को भूल चले हैं इसीलिये यह दुर्दशा है इस देश की .....यही दुर्भाग्य है हमारे देश का...
जवाब देंहटाएंbahut dukhad hai ki aaj bhi hamare samaj me aisi ghatnayen ghat rahi hain .
जवाब देंहटाएंआदरणीया
जवाब देंहटाएंबेटियों पर हो रहे जुल्म को समाज के सामने रख कर एक प्रश्न किया है ...?
इस घटना से व्यथित हूँ
काश हम कुछ कर पाते