सुरक्षा नारी की
इंसान नहीं कोई वस्तु है वो
किसी भी सामान से बहुत सस्ती है वो
कैसे भी किसी ने भी उसका उपयोग किया
जिसने चाहा जब चाहा उसको बेइज्जत किया
अपनों से भी सहानुभूति की जगह दुत्कारी जाती है वो
कोई और अपराध में अपराधी अपना मुंह छुपाता है
ये ऐसा अपराध है इसमें सहनेवाला ही अपना सिर झुकाता है
आज नई सदी में नारी कहीं भी सुरक्षित नहीं है
छोटी बच्ची हो या बूढी औरत सबको हवश के
शिकार बना रहे हैं
पुरुष इंसान नहीं वासना के पुजारी बन हैवान हो रहे हैं
उसी देश में उनके साथ इतना घ्रणित कर्म किया जाता है
उनके कपडे ,पहनावे ,रहन -सहन को दोष दे रहे हैं
कोई सरकार कोई कानून इस जुर्म को नहीं रोक पा रहा है
दिन -प्रतिदिन ये घ्रणित जुर्म बढ़ता जा रहा है
हम औरतों को ही एकजूट होकर इसके खिलाफ लड़ना होगा
कुछ आदमी अपनी ताकत का नाजायज फायदा उठा रहे हैं
जिस दिन औरत ने सच मे दुर्गा माँ का रूप रखा
एक भी राक्षस इस धरती पर नहीं बच पायेगा
पापियों अपने पापों को इतना मत बढाओ
उसके सोये हुए कोप को मत जगाओ
नहीं तो इस दुनिया का हो जाएगा नाश
हर तरफ होगा सिर्फ विनाश ही विनाश
इंसान नहीं कोई वस्तु है वो
किसी भी सामान से बहुत सस्ती है वो
कैसे भी किसी ने भी उसका उपयोग किया
जिसने चाहा जब चाहा उसको बेइज्जत किया
बेइज्जत होकर भी अपना ही चेहरा छुपाती है वो
अपनों से भी सहानुभूति की जगह दुत्कारी जाती है वो
कोई और अपराध में अपराधी अपना मुंह छुपाता है
ये ऐसा अपराध है इसमें सहनेवाला ही अपना सिर झुकाता है
आज नई सदी में नारी कहीं भी सुरक्षित नहीं है
उसकी इज्जत की कोई कीमत नहीं हैं
छोटी बच्ची हो या बूढी औरत सबको हवश के
शिकार बना रहे हैं
पुरुष इंसान नहीं वासना के पुजारी बन हैवान हो रहे हैं
जिस देश में बच्चियों और औरत को देवी का दर्जा दिया जाता है
उसी देश में उनके साथ इतना घ्रणित कर्म किया जाता है
उनके कपडे ,पहनावे ,रहन -सहन को दोष दे रहे हैं
अपनी गन्दी मानसिक सोच को नहीं बदल रहे हैं
कोई सरकार कोई कानून इस जुर्म को नहीं रोक पा रहा है
दिन -प्रतिदिन ये घ्रणित जुर्म बढ़ता जा रहा है
हम औरतों को ही एकजूट होकर इसके खिलाफ लड़ना होगा
और अपने को इस शारीरिक और मानसिक यंत्रणा से बचाना होगा
कुछ आदमी अपनी ताकत का नाजायज फायदा उठा रहे हैं
औरतें भी इंसान हैं ये समझ नहीं पा रहे हैं
जिस दिन औरत ने सच मे दुर्गा माँ का रूप रखा
एक भी राक्षस इस धरती पर नहीं बच पायेगा
पापियों अपने पापों को इतना मत बढाओ
उसके सोये हुए कोप को मत जगाओ
नहीं तो इस दुनिया का हो जाएगा नाश
हर तरफ होगा सिर्फ विनाश ही विनाश
जवाब देंहटाएंजिस दिन औरत ने सच मे दुर्गा माँ का रूप रखा
एक भी राक्षस इस धरती पर नहीं बच पायेगा
पापियों अपने पापों को इतना मत बढाओ
उसके सोये हुए कोप को मत जगाओ
नहीं तो इस दुनिया का हो जाएगा नाश
हर तरफ होगा सिर्फ विनाश ही विनाश
रणभेरी है इस रचना में आवाहन है आत्म सुरक्षा का चेतावनी है सामयिक ,किसी को तो शुरु आत करनी होगी वरना आधी दुनिया यूं ही रोंधी जाती रहेगी .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
सोमवार, 27 अगस्त 2012
अतिशय रीढ़ वक्रता (Scoliosis) का भी समाधान है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली में
bahut sahi kaha prerna ji.तुम मुझको क्या दे पाओगे?
जवाब देंहटाएंऔरतोँ को भी एकजुट होकर लड़ना होगा.... ।
जवाब देंहटाएंएक संदेशपूर्ण रचना हेतु बधाई ।
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जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा अपने जब तक नारी स्वं को नहीं जागृत करेगी तब तक ऐसा ही चलता रहेगा , किसी ने ठीक ही कहा है - जो अपनी सुरक्छा स्वं नहीं कर सकता ! उसकी रक्छा परमात्मा भी नहीं करते ! इसी विषय पर मेरी पोस्ट अबला कौन जरुर पढिये !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
http://yayavar420.blogspot.in/2012/07/blog-post_21.html
सचमुच बहुत चिंता जनक विषय है।
जवाब देंहटाएंchintajanak sthiti aur nindaneey bhee
जवाब देंहटाएंआज 28/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंdard ko achha ukera hai..
जवाब देंहटाएंनारी तुम सबला हो ..... नारी पर अत्याचार करने वाला पुरुष मानसिक कुंठा से ग्रस्त है ।
जवाब देंहटाएंमन को झंझोरती लेखनी ...
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद की अप सबने मेरी रचना को पसंद किया और इतने अच्छे सन्देश दिए /आप सबका आशीर्वाद इसी तरह हमेशा हमारी रचनाओं को मिलता रहे यही कामना है /आभार /
जवाब देंहटाएं"आज नई सदी में नारी कहीं भी सुरक्षित नहीं है
जवाब देंहटाएंउसकी इज्जत की कोई कीमत नहीं हैं"
---कथ्य तो एक दम सत्य है ही ...परन्तु सोचने की बात है कि आज के इतने उन्नत युग में भी यह सब क्यों नहीं नियमित होपारहा है..???
--- वस्तुतः यह स्त्री-पुरुष का मामला या विषय है ही नहीं ... न स्त्री-अत्याचार का ...वास्तव में तो यह ..अनैतिकता का मामला है जिसका किसी भी भौतिक प्रगति नियमन नहीं अपितु भौतिक प्रगति के साथ ये अनाचार बढ़ते ही हैं ...
---- जब तक स्त्री, पुरुष , समाज , व शासन सभी नैतिकता, आचरण व आचार पर सुदृढ़ नहीं होंगे ...इसे ही चलता रहेगा ...हम कविता--कहानी चाहे जितना कह लें ...