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सोमवार, 6 अगस्त 2012

दो दो हरिणी हारती, हरियाणा में दांव -रविकर

(1) 
शठ शोषक सुख-शांत से, पर पोषक गमगीन |
आखिर तुझको क्या मिला, स्वयं जिन्दगी छीन |

स्वयं जिन्दगी छीन, खून के आंसू रोते |
देखो घर की सीन, हितैषी धीरज खोते |


दोषी रहे दहाड़, दहाड़े  माता मारे |
ले कानूनी आड़, बचें अपराधी सारे ||
  Former air hostess kills herself; Haryana minister booked for abetment to suicide
  (2)
दो दो हरिणी हारती, हरियाणा में दांव |
हरे शिकारी चतुरता, महत्वकांक्षा चाव |

महत्वकांक्षा चाव, प्रेम खुब मात-पिता से |
किन्तु डुबाती नाव, कहूँ मैं दुखवा कासे |

करे फिजा बन व्याह, कब्र रविकर इक खोदो |
दो जलाय दफ़नाय, तड़पती चाहें दो-दो ||


 

9 टिप्‍पणियां:

  1. राजनीति के आश्रय में कभी प्रेम पल्लवित नहीं हो पाता .बड़ा दुखद रहा यह प्रसंग .एक महत्व कांक्षा का अंत .
    सोमवार, 6 अगस्त 2012
    भौतिक और भावजगत(मनो -शरीर ) की सेहत भी जुडी है आपकी रीढ़ सेविकर भाई बड़ा ही दुखद रहा है यह प्रसंग .राजनीति के आश्रय में कभी प्रेम पल्लवित नहीं हो पाता .

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  2. हरियाणा में लुट गई, बालाओं की लाज।
    राजनीति की चाल में, बन्धक आज समाज।।

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