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सोमवार, 13 अगस्त 2012

(लघुकथा) सबक


दिव्या तुमने किसे वोट दिया ?अरे किसे देना था जिसको पतिदेव ने कहा उसे ही दिया |इतने में साक्षी बोली अमुक  नेता तो इनके भाई का दोस्त है इसलिए उसी को वोट देकर आई हूँ |इस तरह  अपने पतियों के आदेश के अनुसार वोट देकर हम तीनों सुशिक्षित महिलायें एक जगह खड़ी होकर गपशप मार रही थी ,इतने में मेरी नौकरानी लक्ष्मी अपने पति के साथ वोट देकर आती दिखाई दी| उसका पति गुस्से से लाल पीला होकर उसे लगभग धक्के देते हुए रहा था, मेरे पूछने पर कहने लगी "मेमसाब मैंने इसका कहना नहीं माना और अपनी मर्जी से वोट डाला तो पीट रहा है |अब पीटे तो पीटे मैंने तो डाल दिया ,आप ही बताओ मेमसाब क्या हम औरतों का अपना दिमाग नहीं है ?
मैं अनपढ़ हूँ तो क्या हुआ  अच्छा बुरा तो समझती हूँ क्या हमे इतनी भी आजादी  नहीं कि  स्वेच्छा से  वोट भी डाल सकें" !!!

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