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शनिवार, 14 जुलाई 2012

भीड़ भेड़ सी देखती, अपने मन का मैल-

घृणित-मानसिकता गई,  असम सड़क पर फ़ैल ।
भीड़ भेड़ सी देखती, अपने मन का मैल ।
अपने मन का मैल, बड़ा आनंद उठाती ।
करे तभी बर्दाश्त, अन्यथा शोर मचाती ।
भेड़ों है धिक्कार, भेड़िये सबको खाये  ।
हो धरती पर भार , तुम्हीं तो नरक मचाये ।।

6 टिप्‍पणियां:

  1. सही कह रहे हैं आप .बहुत सुन्दर भावात्मक प्रस्तुति .आभार. अपराध तो अपराध है और कुछ नहीं ...

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  2. -----भीड़ को भेड सा बनाकर ही तो रख दिया गया है ...समाज का/ शास्त्र/ सदाचरण का व्यक्ति के ऊपर से नियमन हटा कर.... यह निश्चय ही सामयिक समाज, सरकार , बौद्धिक लोगों का दोष व् पाप का परिणाम है....

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  3. बेहद भावात्मक प्रस्तुति ...पश्चिम का अनुकरण तो कर रहे हैं पर मानसिकता पाशविक है....पब संस्कृति के भेडिये चीख रहे हैं ...और भेड़ भीड़ में तब्दील है.....

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