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रविवार, 29 जुलाई 2012

माँ देती बुलंदी की राह उसके रहमों-करम से .


   
मिलती है हमको माँ 
उसके रहमों-करम से  ;
मिलती है माँ की गोद उसके रहमों-करम से .

अहकाम में माँ के छिपी औलाद की नेकी ;
ममता की मिलती छाँव उसके रहमों-करम से .

तालीम दे जीने के वो काबिल है बनाती ;
माँ करती राहनुमाई उसके रहमों-करम से .

औलाद की ख्वाहिश को वो देती है तवज्जह ; 
माँ दिलकुशा मोहसिन उसके रहमों-करम से .

कुर्बानियां देती सदा औलाद की खातिर ;
माँ करती परवरिश है उसके रहमों-करम से .

तसव्वुर 'शालिनी' के अब भर रहे परवाज़ ;
माँ देती बुलंदी की राह उसके रहमों-करम से .

                                           शालिनी कौशिक 
                                                     [कौशल ]
अहकाम -हुकुम ,राहनुमाई -पथप्रदर्शन ,दिलकुशा -बड़े दिलवाला ,मोहसिन -एहसान करने वाला ,तसव्वुर -कल्पना ,परवाज़ -उड़ान 

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर शालिनी जी....
    बेहतरीन रचना.

    अनु

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  2. ---सुन्दर रचना....बधाई ..


    राहनुमाई ...यह शायद 'रहनुमाई' है
    तसव्वुर = ...मेरे विचार से 'ख्याल' ...

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  3. तसव्वुर 'शालिनी' के अब भर रहे परवाज़ ;
    माँ देती बुलंदी की राह उसके रहमों-करम से .

    Nice.

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  4. आज रक्षा बंधन के पर्व की सभी को मंगल कामनाएं ।

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