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शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

सामान्य जन का सामाजिक परिवर्तन में योगदान---सुषमा गुप्ता का लघु-आलेख ---- डा श्याम गुप्त .. ..

                                   सामान्य जन का सामाजिक परिवर्तन में योगदान

                         सर्वप्रथम प्रश्न उठता है कि सामान्य जन है कौन? प्रजातंत्र में सभी सामान्य जन हैं, हम सब | अतः हम सभी का कर्तव्य है कि सामाजिक परिवर्तन में हाथ बंटाएं |
                       कहाँ से प्रारम्भ किया जाय ? यह एक यक्ष-प्रश्न है | कहीं से भी करें |कोइ भी एक कार्य हाथमें लेलीजिये और प्रारम्भ कर दीजिए | क्या करें औरकैसे, कब ...यह सोचते तो काम होगा ही नहीं | गोस्वामी तुलसी दास जी ने कहा है .." सकल पदार्थ हैं जग माँही, करमहीन नर पावत् नाहीं  |"...
                      आवश्यकता है हम सब को काम में जुट जाने की | छोटे-छोटे कार्यों... पौधे लगाना, गरीब  बच्चो को पढ़ाना या किताब, कापी, खाना-कपड़ा बांटना, उपलब्ध कराना, गर्मी में प्याऊ लगबाना, चींटियों को आटा डालना, पर्यावरण-प्रदूषण के बारे में ज्ञान फैलाना, अकर्मण्यता, आलस , अंधविश्वास आदि की रूढियां व हानियाँ के बारे में बच्चों व अन्य  को बताना-समझाना ; महिला व प्रौढ़ शिक्षा अभियान व अन्य सरकारी योजनाओं के बारे में सबको बताना व ज्ञान का प्रचार आदि| अन्य राहें तो अपने आप मिलती जायेंगीं --आप प्रारम्भ तो करें |
                   व्यक्ति ही तो समाज व राष्ट्र की इकाई होता है| यदि प्रत्येक इकाई अपना कार्य सुचारू रूप से करे, निष्ठा से करे तो निश्चय ही वह समाज व राष्ट्र के निर्माण में भरपूर योगदान कर सकता है |
                                         

5 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा है बूँद बूँद सो भरे सरोवर ,व्यक्ति से समष्टि है .कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    शुक्रवार, 20 जुलाई 2012
    क्या फर्क है खाद्य को इस्ट्यु ,पोच और ग्रिल करने में ?
    क्या फर्क है खाद्य को इस्ट्यु ,पोच और ग्रिल करने में ?


    कौन सा तरीका सेहत के हिसाब से उत्तम है ?
    http://veerubhai1947.blogspot.de/
    जिसने लास वेगास नहीं देखा
    जिसने लास वेगास नहीं देखा

    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. धन्यवाद शालिनी जी, शिखा जी, वीरू जी,व सोमवंशी जी....

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