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शनिवार, 14 जुलाई 2012

तुम्हारे बिना ..कविता....डा श्याम गुप्त

प्रिये!
सूरज की महत्ता , भादों में-
धूप का अकाल पडने पर,
सामने आती है |
इसीतरह
तुम्हारे  बिना आज-
मन का कोना कोना गीला है ;
जैसे बरसात में ,
सूरज के बिना,
कपडे गीले रह जाते हैं

वस्तु की महत्ता का बोध, उसकी-
अनुपस्थिति से बढ़ जाता है |
इसीलिये तुम्हारी अनुपस्थिति में ,
हर बार-
तुम्हारे आकर्षण का ,
एक नया आयाम मिल जाता है |

लहरों  और कूलों के आपसी सम्बन्ध में ,
अणु  कणों के आतंरिक द्वंद्व में ,
सर्वत्र संयोग और वियोग का क्रंदन है |

संयोग और वियोग,
वियोग और संयोग ,
सभी में इसी का स्पंदन है,
यही जीवन है ||





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