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शुक्रवार, 11 मई 2012

माँ ! वो पारस है !


माँ ! वो पारस है !


कभी माँ के थके पैरों को दबा कर देखो
ख़ुशी जन्नत की अपने दिल में तुम पा जाओगे .

जिसने देकर के थपकी सुलाया है तुम्हे
क्या उसे दर्द देकर चैन से सो पाओगे ?

करीब बैठकर माँ की नसीहतें भी सुनो
कई गुस्ताखियाँ करने से तुम बच जाओगे .

उसने हर फ़र्ज़ निभाया है बड़ी तबियत से
उसके हिस्से का क्या आराम तुम दे पाओगे ?

उम्रदराज़ हुई चल नहीं वो पाती है
उसे क्या छोड़ पीछे आगे तुम बढ जाओगे ?

जिसने कुर्बान करी अपनी हर ख़ुशी तुम पर
उसके होठों पे क्या मुस्कान सजा पाओगे ?

तुम्हे �े मिटटी से बनाती सोना
माँ ! वो पारस है उसे भूल कैसे पाओगे ?

शिखा कौशिक

8 टिप्‍पणियां:

  1. माँ के प्यार में निस्वार्थ भाव को समेटती आपकी खुबसूरत रचना.....

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  2. बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  3. माँ ने जिन पर कर दिया, जीवन को आहूत
    कितनी माँ के भाग में , आये श्रवण सपूत
    आये श्रवण सपूत , भरे क्यों वृद्धाश्रम हैं
    एक दिवस माँ को अर्पित क्या यही धरम है
    माँ से ज्यादा क्या दे डाला है दुनियाँ ने
    इसी दिवस के लिये तुझे क्या पाला माँ ने ?

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  4. वाह...

    उम्रदराज़ हुई चल नहीं वो पाती है
    उसे क्या छोड़ पीछे आगे तुम बढ जाओगे ?
    बहुत सुंदर रचना...
    दिल को छू गयी.

    सादर

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  5. पारस है भूल कैसे पाओगे ---सचमुच..

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