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गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

मनुस्मृति के कई छंद, रच फिर से विद्वान् -

संरक्षित निर्भय रहे, संग पिता-पति पूत

आँख खोलकर छींकना, सीख चुका इंसान ।
रहस्य सूक्ष्मतम खोज ले, उत्साहित विज्ञान  ।

समय देश वातावरण, परिस्थिती निर्माण ।
जीर्ण-शीर्ण घट में भरे, सम्यकता नव-प्राण ।।  

रहे कुशलता पूर्वक, छल ना पायें धूर्त ।
संरक्षित निर्भय रहे, संग पिता-पति पूत ।   

माता की कर वन्दना, कन्या का सम्मान।
 दुष्टों से रक्षा करो, कहता यही बिधान ।।

कई महायुग बीतते, आया नया वितान ।
 मनुस्मृति के कई छंद, रच फिर से विद्वान् ।|

संशोधन अधिकार है, माता करो सुधार
 संशोधित होता जहाँ, संविधान सौ बार ।।

6 टिप्‍पणियां:

  1. माता की कर वन्दना, कन्या का सम्मान।
    दुष्टों से रक्षा करो, कहता यही बिधान ।।
    bilkul...sach kaha

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  2. कई महायुग बीतते, आया नया वितान ।
    मनुस्मृति के कई छंद, रच फिर से विद्वान् ।|
    ---निश्चय ही सत्य बचन...

    पर---दुबारा रची नहीं जा सकती हैं... शास्त्र-संहितायें हां--पुनर्लेखन व विवेचना अवश्य ही की जानी चाहिये...
    ’मनुस्मृति नवभाव युत, पुनः लिखें विद्वा” ।...कैसा रहे...

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