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सोमवार, 26 मार्च 2012

'' वही बहू अच्छी ! ''




सुशीला  के बेटे का ब्याह हाल ही में हुआ था .मोहल्ले में शोर था कि बहू इत्ता दहेज़ लाई है कि घर में रखने तक की जगह नहीं बची . .जेवर   ..लत्ता कपडा   इत्ता लाइ है  कि क्या कहने ...!''उषा ने सोचा  ''....''मिल  ही आती हूँ सुशीला से और बहू भी देख आऊं ...हरिद्वार न गयी होती तो ब्याह में जरूर शामिल होती .......कितनी आस थी  ...मेरी बहू भी खूब दहेज़ लाये ...चार में बैठ कर गर्दन ऊँची करके कहती मेरे मुकेश की ससुराल.....पर क्या ?मुकेश ने सब मटियामेट कर दिया ...खुद ही ब्याह लाया ....एक चाँदी का सिक्का और दो जोड़ी कपडे .....सारी बिरादरी में नाक कटवा दी ....''.यही सब सोचते हुए उषा अपने कमरे में गयी और एक नयी धोती पहन कर तैयार हो गयी सुशीला के यहाँ जाने के लिए .कुछ रूपये ''बहू के मुंह dikhai '' हेतु लेकर रसोईघर में काम कर रही मुकेश की बहू सरिता से यह कहकर कि -''बहू..जरा सुशीला के यहाँ जा रही हूँ...मुकेश और उसके पिता जी दुकान से लौट आये तो मेरा इतज़ार   किये  बगैर  चाय बना लेना  ..मुझे देर हो सकती है वहां ...''ज्यों ही उषा ने चौखट के बाहर पैर रखा चौखट के आगे पड़ी लाहौरी ईट पर पड़ा और उसका पूरा पैर मुड़ गया ....वो ''हाय राम...''कहकर चीखी व् पैर पकड़कर वहीँ बैठ गयी .तेज दर्द के कारणउसकी आँख में आंसू भर आये .सासू माँ की चीख सुनकर सरिता सारा काम छोड़कर तेजी से भागी आई .सासू माँ को दर्द से तड़पते देख उसकी भी आँख भर आई .घर के आगे से जाते पडोसी रमेश की मदद से सरिता सासू माँ को उनके कमरे  तक ले आई और उन्हें पलंग  पर लिटाकर हल्दी का दूध बना लाई. ....फिर ऐसी तरकीब से सासू माँ का पैर मरोड़ा  की चट-चट करती सारी नसें खुल गयी और उषा के  पैर में आई मोच व् दर्द दोनों ठीक हो गए .उषा ने सरिता को लेट लेटे ही इशारे से अपने पास बुलाया और थोडा सा उठकर उसके माथे को चूम लिया ..फिर मुस्कुराकर बोली ..''मुकेश है तो मेरा ही बेटा ...ऐसी बहू लाया है कि लाखों क्या..करोड़ों में भी न  मिले ..''सासू माँ से तारीफ सुनकर सरिता मुस्कुरा  दी .उषा ने मन  ही मन सोचा -''करोड़ों का दहेज़ भी ले आती तो क्या होता ....जो दुःख दर्द में बेटी  की तरह सेवा कर सके वही बहू अच्छी !'' 
शिखा कौशिक 

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