अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ८ मार्च के दिन पर विभिन्न कार्यक्रमों, भाषणों, उद्घोषणाओं आलेखों आदि मध्य उन पर गहन विचार करता हूँ तो कुछ यक्ष-प्रश्न मन में आकार लेते हैं, घुमड़ते हैं, मन को मथते हैं । पुरा व प्राचीन व अर्वाचीन काल में भी महिलायें ...यथा पार्वती, दुर्गा अनुसूया , सीता ,राधा ,द्रौपदी, वेदों की मन्त्रकार महिलायें, व पद्मिनी , जीजाबाई , लक्ष्मीबाई जैसी महिलायें भी सौन्दर्य की प्रतिमान थीं परन्तु वे अपने ज्ञान, कुशलता, शौर्य, तप भक्ति आदि के बल पर अपना लोहा मनवाने में सफल, चर्चित व प्रशंसित हुईं न कि सौन्दर्य के बल पर । परन्तु आज के परिप्रेक्ष्य में यदि देखा जाय तो आज कौन महिलाओं की विद्वता, ज्ञान, शौर्य, भक्ति, तप आदि सद्गुणों पर मुग्ध होरहा है? सभी बालों के सौन्दर्य, बालों की सुगंध , साबुन-सर्फ़ की खुशबू , सुन्दर ड्रेस, जूते, स्कूटर-गाडी के रंग की तारीफ़ करती हुई महिला, मोडल, हीरोइन जिसकी नर्म व चिकनी स्किन ग्लो करती है उसी पर मुग्ध हैं। कच्छा पहन कर फूल खिलाने वाली नारी पर मुग्ध हैं, वे ही सेलेब्रिटी हैं ..महान महिलायें हैं अर्थात शारीरिक सौन्दर्य पर सभी मुग्ध हैं .....विद्या बालन को डर्टी-रोल के लिए अवार्ड दिया जाता है न कि किसी विद्वतापूर्ण कार्य के लिए। इसमें स्वयं स्त्रियाँ ही सम्मिलित हैं उनके सहयोग, लालसा,लोलुपता, अनियमित, अवांछित, आकाशी आकान्छाएं, शोर्ट-कट द्वारा शरीर-सौन्दर्य के बल पर प्रसिद्धि पाने की इच्छा के बिना यह नहीं होसकता । इसीलिये आज हम प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं के साथ अभद्रता, वलात्कार , शोषण जैसी बातें आये दिन सुनते है-देखते हैं । राजनीति, शिक्षा, चिकित्सा, साहित्य ,कला, लेखिका ,कारपोरेट जगत, शासन, आई इ एस, जज , मजिस्ट्रेट, सेना, साध्वियां सभी उच्च से उच्च क्षेत्र की अफसर महिलाओं के भी शोषण, अभद्रता का समाचार सुनते हैं । जाने कितनी मधुमिताएं, कवितायें, आई इ एस, जज, चिकित्सक महिलायें भी शिकार हुईं हैं । कुछ बदमाश दुष्ट लोग हर युग में होते हैं परन्तु इस युग में तो सभी उच्च पदस्थ, उच्च कोटि के व्यक्ति रत हैं महिलाओं के शोषण में । लगता है की महिला चाहे जितनी पढी-लिखी हो वह सिर्फ औरत है, जिस्म है शोषण के लिए । यद्यपि सिर्फ एसा ही नहीं है, तमाम महिलायें आज भी अपने ज्ञान, विद्वता सशक्त आचरण के कारण आदरणीय भी हैं ।
यदि पुरा, पूर्व, मध्य व वर्तमान काल में महिलाओं के स्वयं के व्यवहार एवं उनके प्रति पुरुष व समाज के व्यवहार पर एक विहंगम दृष्टि डाली जाय तो पर कुछ विशिष्ट तथ्य सम्मुख आते हैं ।
सतयुग आदि पुराकाल में महिलायें अपेक्षाकृत काफी स्वतंत्र थीं । इस काल में महिलाओं से अभद्रता के उदाहरण प्राय नहीं मिलते । महिलायें स्वयम के कठोर अनुशासन में ही रहतीं थीं । वैदिक ऋषिकाओं का ज्ञान , पार्वती का तप व भक्ति, दुर्गा की शक्ति महिलाओं के आदर का कारण होता था। हम देखते हैं कि जहां नहुष के सत्ता मदांध होजाने पर इंद्राणी से सम्बन्ध बनाने की बात पर इंद्राणी अपनी चतुरता से उसे श्राप का भागी बनाकर अपने से अभद्र व्यवहार नहीं होने देती । अनुसूया अपने त्याग, ज्ञान व भक्ति के बल पर स्त्रियों में श्रेष्ठ की भाँति प्रशंसित होती है, उससे कोई अभद्रता नहीं कर पाता ....त्रिदेव भी नहीं । अपाला, घोषा, गार्गी , लोपामुद्रा आदि जहां वैदिक -ऋषिकाएँ अर्थात ज्ञानी होने के कारण उनसे कोई अभद्रता नहीं कर पाया इसीलिये वे आदरणीय व अनुकरणीय हैं ......वहीं अहल्या अपने अज्ञान व भक्ति की कमी तथा शायद स्वयं ही इंद्र का साथ देने के लिए अपने से अभद्रता को न रोक पाई अतः आदर का पात्र नहीं हुई ।
परवर्ती काल में देखें तो कैकेयी , कौशल्या आदि राजनीति में निपुण व ज्ञानवान होने के कारण उनसे कोई अभद्रता नहीं कर पाया वे प्रसिद्द व श्रद्देय हुईं वहीं ताड़का व शूर्पणखा स्वयं ही ज्ञान भक्ति तप की कमी व कमजोर चरित्र की होने के कारण अभद्रता की शिकार हुईं व समाज द्वारा त्याज्य । सीता मर्यादा के उल्लंघन के कारण कष्ट की भागी हुई यद्यपि ज्ञान, जन जन नेत्रित्व गुण, भक्ति , तप के कारण अभद्रता का शिकार नहीं हुई और आदरणीय व अनुकरणीय है । कैकसी जैसी महिला विश्रवा जैसे महान ऋषि की पत्नी व रावण जैसे विश्वविजयी पुत्र की मन होने पर भी सम्मान की पात्र नहीं हुई क्योंकि वह स्वयं अमुहूर्त में अमर्यादित तरीके से ऋषि से सम्बन्ध बनाती है एवं ज्ञान, तप, भक्ति से सर्वथा हीन होती है ।
वहीं द्वापर काल में राधा अपने जन जन नेतृत्व क्षमता , ज्ञान, त्याग व तप की विद्वता के कारण कभी अभद्रता का शिकार नहीं हुई और देवी रूप में विश्व में प्रतिष्ठित हुई । द्रौपदी अपने कुशल संचालन , तीब्र बुद्धि कौशल , ज्ञान एवं तप व भक्ति के कारण ....इतने झंझावात झेलती हुई, अभद्रता का दंश झेलते हुए भी समाज में विशिष्ट स्थान रखती है जबकि वहीं चित्रांगदा, उलूपी, हिडिम्बा आदि अपने स्वतंत्र आचरण के कारण कष्ट की भागी हुईं एवं इतिहास पुरुषों की पत्नियां होने पर भी इतिहास में आदर का पात्र नहीं बनीं । यहाँ तक की सुभद्रा भी कोई विशिष्ट ज्ञान अदि न होने के कारण एवं अपहरण का भाव होने के कारण समाज में इतनी प्रतिष्ठित नहीं हुई । अपहृत -विवाहित कोई भी स्त्री समाज के आदर व अनुकरण का पात्र नहीं हुई, यद्यपि अपहरण करके विवाह की सामाज में मान्यता थी ।
वर्तमान मुग़ल व अंग्रेजों के काल में भी सशक्त, ज्ञानी, तप भक्ति युक्त महिलाओं लक्ष्मी बाई, जीजाबाई ,पद्मिनी , मीरा , कर्मावती दुर्गावती से कोई कब अभद्रता कर पाया । राय प्रवीण जैसी नर्तकी भी अपनी चतुरता के बल पर अकबर जैसे सम्राट को 'झूठी पातर खात हैं, वायस, वारी, श्वान ' , सुनाकर अपने से अभद्रता नहीं होने देती ।
यदि उपरोक्त अध्ययन को संज्ञान में लिया जाय तो कुछ तथ्य इस प्रकार दृष्टिगत होते हैं....
१-यह सब हर काल में होता रहा परन्तु कभी कभी, कहीं कहीं दुर्घटनाओं वश परन्तु आज के आधुनिक काल में यह एक प्रायोजित कर्म की भींति दृष्टिगत होता है ।
२- पुरुष तो सदैव ही सौन्दर्य, शरीर, मांसलता से आकर्षित होता है यह एक स्वाभाविक चारित्रिक दौर्बल्य है परन्तु ऐसे पुरुषों को भी समाज में स्वाभाविक भाव-रूप से अधिक आदर नहीं मिल पाता।
३- स्त्रियों का स्वयं का व्यवहार, ज्ञान, कुशलता, तप, त्याग भावना, चारित्रिक दृड़ता ही उसकी रक्षक है ।
४- शारीरिक सौन्दर्य का उपयोग व चारित्रिक दृड़ता की कमी के कारण असंगत व्यवहार व चारित्रिक दुर्बलता वाली संतति -पुत्र ( कैकसी-रावण) पैदा होने पर समाज में ..पुरुषों-स्त्रियों में चारित्रिक दुर्बलता आती है जबकि सबल चरित्र वाली माताओं की संतान सबल चरित्र ( जीजाबाई- शिवाजी ) की होती है ।
अतः निश्चय ही नारी ही सदैव समाज की रीढ़ है पुरुष नहीं । इसीलिये पुरुषों के लिए यह स्पष्ट आदेश हैं कि ' यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ।' अर्थात नारियों का सम्मान पुरुषों का मूलभूत कर्तव्य है । आज की वर्तमान स्थिति के लिए निश्चय ही 'कच्छा पहन कर फूल खिलाने वाली ' नारी स्वयं जिम्मेदार है नारी को यह समझना होगा तथा नारी के शारीरिक सौन्दर्य का उपयोग करने वाला पुरुष व समाज भी । अतः महिला दिवस के अवसर पर नारी को यह सोचना होगा साथ ही साथ पुरुषों को और सारे समाज को भी ।
यदि पुरा, पूर्व, मध्य व वर्तमान काल में महिलाओं के स्वयं के व्यवहार एवं उनके प्रति पुरुष व समाज के व्यवहार पर एक विहंगम दृष्टि डाली जाय तो पर कुछ विशिष्ट तथ्य सम्मुख आते हैं ।
सतयुग आदि पुराकाल में महिलायें अपेक्षाकृत काफी स्वतंत्र थीं । इस काल में महिलाओं से अभद्रता के उदाहरण प्राय नहीं मिलते । महिलायें स्वयम के कठोर अनुशासन में ही रहतीं थीं । वैदिक ऋषिकाओं का ज्ञान , पार्वती का तप व भक्ति, दुर्गा की शक्ति महिलाओं के आदर का कारण होता था। हम देखते हैं कि जहां नहुष के सत्ता मदांध होजाने पर इंद्राणी से सम्बन्ध बनाने की बात पर इंद्राणी अपनी चतुरता से उसे श्राप का भागी बनाकर अपने से अभद्र व्यवहार नहीं होने देती । अनुसूया अपने त्याग, ज्ञान व भक्ति के बल पर स्त्रियों में श्रेष्ठ की भाँति प्रशंसित होती है, उससे कोई अभद्रता नहीं कर पाता ....त्रिदेव भी नहीं । अपाला, घोषा, गार्गी , लोपामुद्रा आदि जहां वैदिक -ऋषिकाएँ अर्थात ज्ञानी होने के कारण उनसे कोई अभद्रता नहीं कर पाया इसीलिये वे आदरणीय व अनुकरणीय हैं ......वहीं अहल्या अपने अज्ञान व भक्ति की कमी तथा शायद स्वयं ही इंद्र का साथ देने के लिए अपने से अभद्रता को न रोक पाई अतः आदर का पात्र नहीं हुई ।
परवर्ती काल में देखें तो कैकेयी , कौशल्या आदि राजनीति में निपुण व ज्ञानवान होने के कारण उनसे कोई अभद्रता नहीं कर पाया वे प्रसिद्द व श्रद्देय हुईं वहीं ताड़का व शूर्पणखा स्वयं ही ज्ञान भक्ति तप की कमी व कमजोर चरित्र की होने के कारण अभद्रता की शिकार हुईं व समाज द्वारा त्याज्य । सीता मर्यादा के उल्लंघन के कारण कष्ट की भागी हुई यद्यपि ज्ञान, जन जन नेत्रित्व गुण, भक्ति , तप के कारण अभद्रता का शिकार नहीं हुई और आदरणीय व अनुकरणीय है । कैकसी जैसी महिला विश्रवा जैसे महान ऋषि की पत्नी व रावण जैसे विश्वविजयी पुत्र की मन होने पर भी सम्मान की पात्र नहीं हुई क्योंकि वह स्वयं अमुहूर्त में अमर्यादित तरीके से ऋषि से सम्बन्ध बनाती है एवं ज्ञान, तप, भक्ति से सर्वथा हीन होती है ।
वहीं द्वापर काल में राधा अपने जन जन नेतृत्व क्षमता , ज्ञान, त्याग व तप की विद्वता के कारण कभी अभद्रता का शिकार नहीं हुई और देवी रूप में विश्व में प्रतिष्ठित हुई । द्रौपदी अपने कुशल संचालन , तीब्र बुद्धि कौशल , ज्ञान एवं तप व भक्ति के कारण ....इतने झंझावात झेलती हुई, अभद्रता का दंश झेलते हुए भी समाज में विशिष्ट स्थान रखती है जबकि वहीं चित्रांगदा, उलूपी, हिडिम्बा आदि अपने स्वतंत्र आचरण के कारण कष्ट की भागी हुईं एवं इतिहास पुरुषों की पत्नियां होने पर भी इतिहास में आदर का पात्र नहीं बनीं । यहाँ तक की सुभद्रा भी कोई विशिष्ट ज्ञान अदि न होने के कारण एवं अपहरण का भाव होने के कारण समाज में इतनी प्रतिष्ठित नहीं हुई । अपहृत -विवाहित कोई भी स्त्री समाज के आदर व अनुकरण का पात्र नहीं हुई, यद्यपि अपहरण करके विवाह की सामाज में मान्यता थी ।
वर्तमान मुग़ल व अंग्रेजों के काल में भी सशक्त, ज्ञानी, तप भक्ति युक्त महिलाओं लक्ष्मी बाई, जीजाबाई ,पद्मिनी , मीरा , कर्मावती दुर्गावती से कोई कब अभद्रता कर पाया । राय प्रवीण जैसी नर्तकी भी अपनी चतुरता के बल पर अकबर जैसे सम्राट को 'झूठी पातर खात हैं, वायस, वारी, श्वान ' , सुनाकर अपने से अभद्रता नहीं होने देती ।
यदि उपरोक्त अध्ययन को संज्ञान में लिया जाय तो कुछ तथ्य इस प्रकार दृष्टिगत होते हैं....
१-यह सब हर काल में होता रहा परन्तु कभी कभी, कहीं कहीं दुर्घटनाओं वश परन्तु आज के आधुनिक काल में यह एक प्रायोजित कर्म की भींति दृष्टिगत होता है ।
२- पुरुष तो सदैव ही सौन्दर्य, शरीर, मांसलता से आकर्षित होता है यह एक स्वाभाविक चारित्रिक दौर्बल्य है परन्तु ऐसे पुरुषों को भी समाज में स्वाभाविक भाव-रूप से अधिक आदर नहीं मिल पाता।
३- स्त्रियों का स्वयं का व्यवहार, ज्ञान, कुशलता, तप, त्याग भावना, चारित्रिक दृड़ता ही उसकी रक्षक है ।
४- शारीरिक सौन्दर्य का उपयोग व चारित्रिक दृड़ता की कमी के कारण असंगत व्यवहार व चारित्रिक दुर्बलता वाली संतति -पुत्र ( कैकसी-रावण) पैदा होने पर समाज में ..पुरुषों-स्त्रियों में चारित्रिक दुर्बलता आती है जबकि सबल चरित्र वाली माताओं की संतान सबल चरित्र ( जीजाबाई- शिवाजी ) की होती है ।
अतः निश्चय ही नारी ही सदैव समाज की रीढ़ है पुरुष नहीं । इसीलिये पुरुषों के लिए यह स्पष्ट आदेश हैं कि ' यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ।' अर्थात नारियों का सम्मान पुरुषों का मूलभूत कर्तव्य है । आज की वर्तमान स्थिति के लिए निश्चय ही 'कच्छा पहन कर फूल खिलाने वाली ' नारी स्वयं जिम्मेदार है नारी को यह समझना होगा तथा नारी के शारीरिक सौन्दर्य का उपयोग करने वाला पुरुष व समाज भी । अतः महिला दिवस के अवसर पर नारी को यह सोचना होगा साथ ही साथ पुरुषों को और सारे समाज को भी ।
शुभकामनायें ||
जवाब देंहटाएंपारदर्शी अंत :वस्त्र कला के तहत मंदिरों की भित्तियों पर आज भी उत्कीर्ण हैं .रास रचैया के दौर में भी अंग पर वस्त्र कम ही होते थे .अपहरण विवाह भी स्वीकृत थे .बदली है आदमी की नैतिकता ,दोहरापन ,काली गोरी का प्रतिमान भी चला आया है .नाभि दर्शना साड़ी भी डिज़ाईनर साड़ी बनाने वालों की देन नहीं है अर्वाचीन है .दोष बिकनी लाइन में नहीं है .काम पीड़ित दृष्टि में ,खोट मन में है .अतृप्त वासनाओं में है .उसी का विस्फोट है बलात्कार .
जवाब देंहटाएंसौन्दर्य के प्रतिमान बदलें हैं .भारत मुख सौन्दर्य का हामी रहा है अब पाद सौन्दर्य की और बढ़ चला है .हमारे यहाँ तो मंदिर में प्रतिमाओं में भी मुख सौन्दर्य देखते बनता है .सौन्दर्य उपासकों का देश रहा है यह .
अब आलमी सुंदरियों का दौर है .सुदर्शन कुमार और सुदर्शनाओं का दौर है .देह दर्शन का दौर है .देह की स्वायत्तता का दौर है .आज औरत स्वयं उसकी स्वामिनी बनी कहती है यह देह मेरी है मैं इसका जैसा उपयोग करू मेरा निजिक मामला है .
बेशक कन्या भ्रूण ह्त्या इस दौर का विरोधाभास है .सामाजिक विद्रूप है .
लेकिन लिंग और योनी पूजन भी यहाँ हुआ है लिंगायत सम्प्रदाय पनपा है .शिव लिंग की भी एक से ज्यादा व्याख्याएं मौजूद हैं .
युग बोध बदला है .फोकस में आज देह है .'तन भी सुन्दर मन भी सुन्दर तू सुन्दरता की मूरत है 'अब कोई नहीं गाता अब पूछा जाता है -चोली के पीछे क्या है .बतलाया जाता है :ओ लाला ओ लाला ,अब मैं जवान हो गई ...
आधुनिक नृत्य मैथुनी मुद्राएँ समेटे हुए हैं .मिक्श्चर का दौर है यह . आप कौन सी नैतिकता लिए घूम रहें हैं आप जानें .
धन्यवाद वीरू भाई...व्याखयात्मक टिप्पणी के लिये---
जवाब देंहटाएं---यूं तो आदि-काल, पाषाण आदि काल में सभी नन्गे रहते थे...किसी को लज्जा आदि नहीं रही होगी न नैतिकता का कोई अर्थ रहा होगा ..स्त्री-पुरुष का भेद भी नहीं रहा होगा...जानवरों की भांति जीवन था...यही बात कुछ % में पुरा काल के लिये है उस समय कम वस्त्र ही पहने जाते थे परन्तु नन्गे रहना असान्स्क्रितिकता थी अत: ये उदाहरण ही गलत हैं...आगे बढकर पीछे जाना ही असभ्यता है, असान्स्क्रितिकता है...
---वस्त्रों की आवश्यकता तो लज़्ज़ा के लिये ही हुई ...तो क्या हम फ़िर से पुरा युग या पाषाण युग में जाना चाह्ते हैं.....
---लिन्ग-योनि पूजन चिन्ह रूप में, एक साधना न मानकर खुले आम वास्तविक लिन्ग-योनि पूजा जाय तो क्या उचित होगा....
---फ़िर तो कपडों की आवश्यकता ही क्या है...सभी जानते हैं कि पेन्ट-पेटीकोट के नीचे क्या है...एवं स्त्री-पुरुष सोने के कमरे में क्या करते हैं...
धन्यवाद रविकर.....
जवाब देंहटाएंहर युग में परम्पराएं और मान्यताएं बदलती हैं। उसी के अनुरूप आचरण भी होता है। लेकिन युग के विपरीत भी आचरण हमेशा ही पाया जाता है। वर्तमान में विश्व एक गाँव में बदल रहा है इसलिए परिवर्तन तीव्रता से आ रहे हैं और ये परिवर्तन हमारी मान्यताओं से मेल नहीं खाते इसलिए विवाद का विषय बने हुए हैं। यह भी सच है कि पूर्व में परिवारों के अन्दर सर्वाधिक ध्यान संस्कारों पर दिया जाता था लेकिन आज संस्कार किस खेत की चिड़िया का नाम है, यह आधुनिक लोगों का कहना है। एक बात और कि जब परिवार टूटेंगे तो व्यक्तिवाद आएगा और व्यक्तिवाद में तो सभी वर्जनाएं टूटेंगी ही। इसलिए पुरुष और स्त्री दोनों में ही संस्कारों की आवश्यकता है। पुरुष का लेखन हमेशा स्त्रियों को लेकर होता है और स्त्रियां हमेशा स्त्री का पक्ष लेती हैं। इसके विपरीत यदि पुरुष का लेखन पुरुषोचित व्यवहार के प्रति हो तो शायद समाज में सुधार होगा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ
परन्तु आज के परिप्रेक्ष्य में यदि देखा जाय तो आज कौन महिलाओं की विद्वता, ज्ञान, शौर्य, भक्ति, तप आदि सद्गुणों पर मुग्ध होरहा है? सभी बालों के सौन्दर्य, बालों की सुगंध , साबुन-सर्फ़ की खुशबू , सुन्दर ड्रेस, जूते, स्कूटर-गाडी के रंग की तारीफ़ करती हुई महिला, मोडल, हीरोइन जिसकी नर्म व चिकनी स्किन ग्लो करती है उसी पर मुग्ध हैं। कच्छा पहन कर फूल खिलाने वाली नारी पर मुग्ध हैं, वे ही सेलेब्रिटी हैं ..महान महिलायें हैं अर्थात शारीरिक सौन्दर्य पर सभी मुग्ध हैं .....विद्या बालन को डर्टी-रोल के लिए अवार्ड दिया जाता है न कि किसी विद्वतापूर्ण कार्य के लिए। इसमें स्वयं स्त्रियाँ ही सम्मिलित हैं उनके सहयोग, लालसा,लोलुपता, अनियमित, अवांछित, आकाशी आकान्छाएं, शोर्ट-कट द्वारा शरीर-सौन्दर्य के बल पर प्रसिद्धि पाने की इच्छा के बिना यह नहीं होसकता । इसीलिये आज हम प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं के साथ अभद्रता, वलात्कार , शोषण जैसी बातें आये दिन सुनते है-देखते हैं
जवाब देंहटाएं100 pratishat sach ,apni barbadi ke jimmedaar hami hai ,galat raste disha se bhtakaya hi karte hai .....marayada ki paribhasha badal gayi yaro .....aajkal ke jamane me yahi fit hai ,jo darti hai wahi hit hai .kahne ko to bahut kuchh hai par ......
बहुत बेहतरीन प्रस्तुति . नारी ने अनेकों इम्तहान दिए और वो पास होती रही . पुरुष प्रधान
जवाब देंहटाएंसमाज में आज भी अपना वजूद तलाशती नारी .
आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स वीकली मीट (३४) में शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप इसी तरह मेहनत और लगन से हिंदी की सेवा करते रहें यही कामना है /आभार /लिंक है
जवाब देंहटाएंhttp://hbfint.blogspot.in/2012/03/34-brain-food.html
"जब परिवार टूटेंगे तो व्यक्तिवाद आएगा और व्यक्तिवाद में तो सभी वर्जनाएं टूटेंगी ही। इसलिए पुरुष और स्त्री दोनों में ही संस्कारों की आवश्यकता है।"---धन्यवाद अजित जी ..सत्य वचन .....यही आज का( हर युग का भी) सत्य व आवश्यकता है...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ..इंडिया दर्पन, ज्योति जी, राजपूत जी एवं प्रेरणा जी ..सही है..
जवाब देंहटाएंनारी ने अनेकों इम्तहान दिए और वो पास होती रही, पुरुष फ़ेल होता रहा पर कभी इम्तिहान लेने में पीछे नहीं रहा....
आपका उत्कृष्ट लेख और उस पर हुई सुन्दर
जवाब देंहटाएंटिप्पणियाँ पढकर गदगद हूँ,श्याम जी.
नारी की वर्तमान स्थिति पर गंभीरता
से विचार किया जाना चाहिए.आपका
सुलेखन अच्छी जानकारियों के साथ
विचारोत्तेजक भी है.
'बोल्ड' बनना,'सेक्सी' कहलाना जब
आदर सूचक और सम्माननीय हो जाएँ
तो समझ सकते हैं हम कितना पतनोन्मुख
हो रहे है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,जी.
धन्यवाद राकेश जी....नारी विमर्श पर मेरा उपन्यास भी अवलोकन करें व क्रितार्थ करें...मेरे ब्लोग पर .....
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