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बुधवार, 7 मार्च 2012

होली है.....डा श्याम गुप्त .......


        नूर-शुरूर----

                              
होरी  के  हुरदंग  को,  होरा  भूने  हूर ।
हूर-हूर पर चढ रहा, देखो  नूर-शुरूर ॥
देखो नूर-शुरूर,  चहुं तरफ़ हैं हुरियारे,
तक-तक कर रंगधार,बदन पर मारें प्यारे।
श्याम,भीग कर हुईं,रंगीली सब ही गोरी, 

 सब पर होरी चढी, मस्त हो खेलें होरी ।।

  
     रंगि दीन्हो गोपाल |
 सखी री मोहे रंगि दीन्हो गोपाल |
भरि  पिचकारी  प्रीति  भरे  रंग, नीलो  पीलो  लाल |
तकि तकि अंग-अंग रंग रस डारौ अंग-अंग भये निहाल |
भींजी अंगिया, भींजी सारी, सकुचि  हिये  भई  लाल |
बरबस  बरजूं लोक लाज वस, नहिं  मान्यो  गोपाल |
अंग-अंग रंग  टपकै  झर-झर, मुसुकावैं  लखि ग्वाल
श्याम ' श्याम ऐसी रंगि दीन्ही, तन मन भयो गुलाल ||           


   पिचकारी के तीर  

                                
 
गोरे गोरे अंग पै, चटख चढि गये रंग,
रंगीले आंचर उडैं, जैसें नवल पतंग

चेहरे सारे पुत गयेचढे सयाने रंग,
समझ कछू आवै नहीं, को सजनी को कंत

लाल  हरे  पीले रंगेरंगे   अंग - प्रत्यंग ,
कज़्ज़ल-गिरि सी कामिनी, चढौ कोऊ रंग।

चन्चुमुखी पिचकारि ते, वे छोडें रंग धार,
वे घूंघट की ओट ते , करें नैन के वार ।

लकुटि लिये सखियां खडीं, बदला आज चुकायं,
सुधि-बुधि भूलीं श्याम जब ले पिचकारी धायं ।

आज न मुरलीधर बचें, राधा मन मुसुकायं,
दौडी सुधि बुधि भूलकर, मुरली दयी बजाय ।

भये लज़ीले श्याम  दोऊ, गोरे गाल गुलाल,
गाल गुलाबी होगये, भयो गुलाल रंग लाल ।

होली खेली लाल नै, उडे अबीर गुलाल,
सुर,मुनि,ब्रह्मा,विष्णु,शिव,तीनों लोक निहाल।

भरि पिचकारी सखी पर, वे रंग बान चलायं,
लौटें नैनन बान भय, स्वयं सखा रंगि जायं

भ्रकुटि तानि बरजै सुमुखि, मन ही मन ललचाय,
पिचकारी ते श्याम की, तन मन सब रंगि जाय

भक्ति ग्यान प्रेम की, मन में उठै तरंग,
कर्म भरी पिचकारि ते, रस भीजै अंग-अंग

एसी  होली  खेलिये, जरै त्रिविधि संताप,
परमानन्द प्रतीति हो, ह्रदय बसें प्रभु आप

यह वर मुझको दीजिये, चतुर राधिका सोय,
होरी खेलत श्याम संग, दर्शन श्याम को होय ॥

  

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