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रविवार, 25 मार्च 2012

जो हम-तुम न होते.....कविता .......डा श्याम गुप्त ....

                स्त्रियों के विरुद्ध बढ़ते अपराधों का एक मूल कारण है स्त्री-पुरुष, पति-पत्नी का एक दूसरे को सम्मान न देना...स्त्री -पुरुष...या  नर-नारी ..या नर भाव-नारी भाव  के वास्तविक स्वरुप को न समझना-पहचानना -जानना एवं व्यवहार में न लाना, जिससे दोनों के ही अहं की सृष्टि होती है और तुष्टि हेतु ...द्वंद्व ....  जगज्जनी , सृष्टि की कृति-कर्ता , आदि-शक्ति, शक्ति रूपेण संस्थिता -  माँ दुर्गा के नव रूपों की अर्चना के दिवसों में ...देखिये एक रचना---


ये  दुनिया हमारी,  सुहानी न होती,                    
कहानी ये अपनी, कहानी न होती ।       
जमीं  चाँद  तारे,   सुहाने  न  होते,
जो प्रिय तुम न होते, अगर तुम न होते ।

सुहानी ये अपनी,  सपनों की दुनिया,
चंचल सी चितवन, इशारों की दुनिया।
सुख-दुःख के बंधन, सहारों की दुनिया,
अंगना ये प्यारा, दुलारी ये दुनिया ।।

तुम्हीं ने सजाया,  संवारा, निखारा,
दिया प्यार का, जो  तुमने सहारा ।
ये दिन-रात न्यारे, ये सुख भोग सारे,
भला कैसे होते, अगर तुम न होते।।

हो सेवा या सत्ता के अधिकार सारे,
निभाता रहा मैं, ये दायित्व सारे ।
ये बच्चों का पढ़ना, गृहकार्य सारे,
सभी कैसे होते,अगर तुम न होते ।

मैं रचता रहा, ग्रन्थ कविता कहानी,
सदा खुश रहीं तुम, बनी घर की रानी ।
ये रस रूप रसना,  भव-सुख न होते ,
जो प्रिय तुम न होते,अगर तुम न होते।

न ये प्यार होता , न  इकरार होता,
न साजन की गलियाँ न सुख-सार होता।
न रस्में, न क़समें, कहानी न होतीं ,
जमाने की सारी, रवानी न होतीं ।

कभी ख़ूबसूरत भटकन जो आई,
तेरे प्यार की मन में खुशबू समाई ।
अगर तुम न होते, तो कैसे सम्हलते,
बलाओं से कैसे, यूं बच के निकलते।।  

सभी रिश्ते-नाते, गुण जो  हैं गाते ,
भला कैसे गाते, जो तुम ना निभाते ।
ये छोटी सी बगिया, परिवार अपना,
सुघड़ कैसे होता, जो तुम ना सजाते ।।

ये ऊंचाइयों के शिखर,  ये  सितारे,
धन-सम्पति, संतति, सभी वारे-न्यारे।
प्रशस्ति या गुण-गान, तेरी ही माया ,
कहाँ सब ये होते, अगर तुम न होते ।।

वो दुर्दिन भी आये,  विपदा घनेरी,
कमर कसके तुमने निभाया सदा ही ।
कभी धैर्य मेरा भी डिगने लगा तो,
अडिग पर्वतों सी थी, तेरी अदा ही ।।

हमारी सफलता की सारी कहानी,
तेरे  प्रेम की नीति की सब निशानी ।
ये  सुन्दर  कथाएं, फ़साने न होते,
सजनि! तुम न होते, यदि तुम न होते ।।

प्रशस्ति तुम्हारी जो जग ने बखानी ,
कि तुम प्यार-ममता की मूरत-निशानी ।
ये अहसान तेरा,  सारे  ही   जग पर,
तथा त्याग, दृड़ता की सारी कहानी ।।

ज़रा  सोचलो, कैसे परवान चढते,
हमीं जो न होते,जो सखि ! हम न होते ।
हमीं  हैं  तो तुम हो,  सारा  जहां है,
जो तुमहो तो हम हैं सारा जहां है ।।

अगर हम न लिखते, हम जो न कहते,
भला गीत कैसे,  तुम्हारे ये बनते ?
किसे रोकते तुम, किसे टोकते तुम,
ये इसरार, इनकार, तुम कैसे करते ।।

न संसार होता, ये  भव-सार होता,
कहीं कुछ न होता, जो हम-तुम न होते।
हमीं  है तभी है ,  ईश्वर और   माया,
खुदा भी न होता, जो हम-तुम न होते ।।

कहानी  हमारी - तुम्हारी न होती,
न ये गीत होते,  न संगीत होता ।
सुमुखि! तुम अगर जो  हमारे न होते,
सजनि! जो अगर हम तुम्हारे न होते ।।

                                 



5 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्हीं ने सजाया, संवारा, निखारा,
    दिया प्यार का, जो तुमने सहारा ।
    ये दिन-रात न्यारे, ये सुख भोग सारे,
    भला कैसे होते, अगर तुम न होते।।
    FUNCTIONAL BEAUTY IN PRESENTATION.SHE IS THE BETTER HALF THAT 'COMPLEMENTARY'PART WHICH IS A PART OF HOLISTIC MEDICINE.
    SOORY SIR TRANSLITREATION NOT SHOWING.

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  2. विषय पर सशक्त प्रस्तुति ।।


    आभार ।।

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  3. agar aapki is kavita ko bharatiy nari blog ki sarvottam, kritiyon me sthan diya jaye to atishyokti nahi hogi.bharatiy nari aur purush ko to vaise bhi ek hi rath ke do pahiye kaha jata hai.हे!माँ मेरे जिले के नेता को सी .एम् .बना दो. aur padhen.498-a I.P.C

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  4. धन्यवाद शिखाजी व रवि्कर जी....
    ---धन्यवाद ..वीरूभाई जी ... सच कहा ...A PART OF HOLISTIC MEDICINE.
    --- धन्यवाद,,शालिनी जी.......

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