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शुक्रवार, 16 मार्च 2012

तन मन को देती जला, रहा दूसरा ताप-

रमिया का एक दिन.... (महिला दिवस के बहाने)


खटे सदा रमिया मगर, मिया बजाएं ढाप ।
तन मन को देती जला, रहा दूसरा ताप ।  

रहा दूसरा ताप, हाथ पे हाथ धरे है ।
जीवन का अभिशाप, मगर ना आह करे है ।

रमिया दारु लाय, पिलाती नाग नाथ को ।
साड़ी अगली बार, मीसती चली हाथ को ।।

7 टिप्‍पणियां:

  1. ---दूसरा कौन ? यही तो यक्ष प्रश्न है ...
    ----- उसका अपना ही ताप रहा है...जिसे वह अपना समझती है...है भी उसीका अपना....खट भी अपने के लिये ही रही है...
    --हां वह अपना दुष्ट-प्रव्रित्ति का अत्याचारी है..जो नहीं होना चाहिये .....यह एक अलग प्रश्न है.....
    -----साहित्य में--हमें दूरस्थ- भाव , अर्थ व प्रभाव पर भी ध्यान रखना चाहिये....

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर--

    मूल रचना यह है
    इस पर की हुई अपनी टिप्पणी
    को यहाँ स्थान दिया था |
    विषय अधिक स्पष्ट है मूल रचना में-

    आभार ||
    http://ahilyaa.blogspot.in/2012/03/blog-post_08.html#comment-form

    झोंपड़ी के टूटे टाट से
    धूप की एक नन्ही किरण
    तपाक से कूदी है
    कच्ची अंधेरी कोठरी में
    हो गई है रमिया की सुबह
    दुधमुंहा बच्चा कुनमुनाया है
    रमिया ने फिर उसे
    थपकी देकर सुलाया है।
    सूख चुका है पतीले और सीने का दूध।
    रात को भरपेट नमक भात खाकर तृप्त सोए हैं
    मंगलू और रज्जी।

    कोने में फटे बोरे पर
    कोई आदमी नुमा सोया है।
    जिसके खर्राटों में भी दारू की बू है
    मगर इस बार उसने
    बड़ी किफ़ायत से पी है।
    हफ्ते पुरानी बोतल में
    नशे की आखिरी कुछ घूंट
    अब भी बची है।

    आज मंगलवार है,
    हफ्ते भर रमिया की उंगलियों और
    चाय की पत्तियों की जुगलबंदी
    आज उसके आंचल में कुछ सितारे भरेगी।
    जिनसे रमिया की दुनिया में
    एक और हफ्ते रोशनी होगी
    एक और हफ्ते बच्चों को मिलेगा
    दो वक्त पेट भर खाना
    एक और हफ्ते ख़ुमार में रह पाएगा
    रमिया का पति

    और रमिया का क्या?
    एक और पैबंद की मांग करने लगी है
    उसकी सात पैबंदों वाली साड़ी
    अब तो सुई-धागे ने भी विद्रोह कर दिया है।
    आज रमिया ने ठान ही लिया है
    शाम को वह जाएगी हाट
    और खरीदेगी पैंसठ वाली फूलदार साड़ी
    दस के बुंदे
    और एक आईना।
    नदी के पानी में शक्ल देखकर
    बाल संवारती रमिया
    अपनी पुरानी शक्ल भूल गई है।

    इतराती रमिया ने आंगन लीप डाला है
    आज वह गुनगुना रही है गीत।
    उसके पपड़ियाए होंठ
    अचानक मुस्कुराने लगे हैं।
    साबुन का एक घिसा टुकड़ा
    उसने ढूंढ निकाला है।
    फटी एड़ियों को रगड़ने की कोशिश में
    खून निकल आया है।
    लेकिन रमिया मुस्कुरा रही है।
    बागान की ओर बढ़ते उसके पांवों में
    जैसे पंख लगे हैं।
    आज सूरज कुछ मद्धम सा है
    तभी तो जेठ की धूप भी
    चांदनी सी ठंडी है।

    पसीने से गंधाते मजदूरों के बीच
    अपनी बारी के इंतज़ार में रमिया
    आज किसी और दुनिया में है।
    उसकी सपनाई पलकों में चमक रहे हैं,
    पीली जमीन पर नीले गुलाबी फूल
    बुंदों की गुलाबी लटकन।
    पैसे थामते उसके हाथ
    खुशी से सिहर से गए हैं।
    और वह चल पड़ी है
    अपने फीके सपनों में
    कुछ चटख रंग भरने।

    उसके उमगते पांव
    हाट में रंगबिरंगे सपनों की दुकान पर रुके हैं।
    उसकी पसंदीदा साड़ी
    दूसरी कतार में टंगी है।
    उसने छूकर देखा है उसे, फिर सूंघकर।
    नए कपड़े की महक कितनी सौंधी होती है न?
    रोमांच से मुंद गई है उसकी पलकें
    कितना मखमली है यह एहसास
    जैसे उसके दो महीने के बेटे के गुदगुदे तलवे
    और तभी उसकी आंखों के आगे अनायास उभरी हैं
    घर की देहरी पर टंगी चार जोड़ी आंखें।

    रमिया के लौटते कदमों में फिर पंख लगे हैं
    उसे नज़र आ रहे हैं दिन भर के भूखे बच्चे
    मंगलू की फटी नेकर
    गुड़ियों के बदले दो महीने के बाबू को चिपकाए
    सात साल की रज्जी
    शराबी पति की गिड़गिड़ाती आंखें
    उसने हाट से खरीदा है हफ्ते भर का राशन
    थोड़ा दूध, और दारू की एक बोतल।
    मगर अबकी उसका इरादा पक्का है,
    अगले मंगलवार जरूर खरीदेगी रमिया
    छपे फूलों वाली साड़ी और कान के बुंदे।

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  3. अति-सुन्दर कविता ...
    ----रविकर जी का आभार है इतनी सुन्दर सार्थक रचना पढवाने के लिये ...
    ---"उसने हाट से खरीदा है हफ्ते भर का राशन
    थोड़ा दूध, और दारू की एक बोतल।"..

    यही तो...यही तो..इसीलिये तो कि वह उसका अपना है...यदि वह नहीं समझता तो क्या ...वही उसका भाग्य...तभी तो गुप्त जी ने कहा..

    " अबला जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी,
    आंचल में है दूध और आंखों में पानी "
    ----यह स्थिति जो वास्तव में पुरा युग में नहीं थी ..बदलनी चाहिये ..हम सब सोचें..
    ---और सोचें कि यह स्थिति सिर्फ़ रमिया की नहीं...अपितु समाज में ऊन्चे/ प्रोफ़ेश्नल तबकों में भी है....

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