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शुक्रवार, 9 मार्च 2012

आक्रोश

क्यों भला आया है मुझको पूजने

है नहीं स्वीकार यह पूजा तेरी ,

मैं तो खुद चल कर तेरे घर आई थी

क्यों नहीं की अर्चना तूने मेरी ?

आगमन की सूचना पर क्यों तेरे

भाल पर थे अनगिनत सिलवट पड़े ,

रोकने को रास्ता मेरा भला

किसलिये तब राह में थे सब खड़े ?

प्राण मेरे छीनने के वास्ते

किस तरह तूने किये सौ-सौ जतन ,

अब भला किस याचना की आस में

कर रहा सौ बार झुक-झुक कर नमन !

देख तुझको यों अँधेरों में घिरा

रोशनी बन तम मिटाने आई थी ,

तू नहीं इस योग्य वर पाये मेरा ,

मैं तेरा जीवन बनाने आई थी !

मैं तेरे उपवन में हर्षोल्लास का

एक नव पौधा लगाने आई थी ,

नोंच कर फेंका उसे तूने अधम

मैं तेरा दुःख दूर करने आई थी !

मार डाला एक जीवित देवी को

पूजते हो पत्थरों की मूर्ती ,

किसलिये यह ढोंग पूजा पाठ का

चाहते निज स्वार्थों की पूर्ति !

है नहीं जिनके हृदय माया दया

क्षमा उनको मैं कभी करती नहीं ,

और अपने हर अमानुष कृत्य का

दण्ड भी मिल जायेगा उनको यहीं !

साधना वैद

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