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बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

डा श्याम गुप्त की कविता ......मम्मी इमोशनल होगई हैं...

पुत्रवधू का फोन आया -
बोली, पापा 'ढोक',
घर का फोन उठ नहीं रहा ,
कहाँ व कैसे हैं आप लोग ?    


खुश रहो बेटी, कैसी हो ...
ठीक हैं हम भी ,
ईश्वर की कृपा से मज़े में हैं , और-
इस समय तुम्हारे कमरे में हैं ।

क्या ...?
हाँ बेटा , जयपुर में हैं ,
तुम्हारे पापा के आतिथ्य में ।

हैं .... ! मम्मी कहाँ हैं , पापा ?
बैठी हैं तुम्हारे कमरे में,
 तुम्हारे पलंग पर,  सजल नयन ....             

वो इमोशनल होगई हैं, और-
बैठी विचार मग्न हैं -
सिर्फ यही नहीं कि,
कैसे तुम यहाँ की डोर छोड़कर
गयी हो वहां ,
अज़नबी, अनजान लोगों के बीच ,
अनजान डगर ,
हमारे पास ।
अपितु - साथ ही साथ ,
अपने अतीत की यादों के डेरे में , कि-
कभी वह स्वयं भी अपना घर-कमरा-
छोड़कर आयी थी ;
और तुम्हारी ननद भी ,
अपना घर, कमरा, कुर्सी- मेज-
छोड़कर गयी है ,
इसी प्रकार ......और......।।   






14 टिप्‍पणियां:

  1. understanding something is first step toward improvement...

    nice read..

    जवाब देंहटाएं
  2. स्त्री जीवन की व्यथा को दर्शाती रचना.. अच्छी लगी...

    जवाब देंहटाएं
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  4. bas yahi samajh liya jaye to har putravadhu putri ban jaye..sundar rachna.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुन्दर,शानदार और उम्दा प्रस्तुती!

    आप सभी सम्माननीय दोस्तों एवं दोस्तों के सभी दोस्तों से निवेदन है कि एक ब्लॉग सबका
    ( सामूहिक ब्लॉग) से खुद भी जुड़ें और अपने मित्रों को भी जोड़ें... शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
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  7. ---धन्यवाद वन्दना जी...हां, परन्तु यह समाज का बनाया हुआ जीवन चक्र है...

    ---धन्यवाद ..सुमुख जी.... प्रथम कदम उठे तो, हम कहीं से तो प्रारम्भ करें ..यही महत्वपूर्ण है...रास्ते तो अपने आप मिलते जाते हैं...

    ---धन्यवाद लोकेन्द्र जी ...क्या हम इसे व्यथा की भांति लें... या आवश्यक जीवन व्यवहार ..जैसा वन्दना जी ने कहा ...जीवन-चक्र..

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  8. --धन्यवाद रविकर जी...इसे चर्चामन्च पर सजाने के लिये...

    --- सही कहा कविता जी...वैसे पुत्रवधू तो होती ही सुन्दर रचना है...हां समझने की बात है ..

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  9. ---धन्यवा वीरू भाई...अमर व सबाई सिन्ह जी एवं....द्रोबेक जी..

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  10. SHYAM JI -BAHUT SUNDARTA KE SATH NARI JEEVAN KI YAH JHANKI PRASTUT KI HAI AAPNE .BADHAI .YUVRAJ ! WE ARE WITH YOU

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