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मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

कवि का वेलेंटाइन -उपहार ...डा श्याम गुप्त

प्रिय तुमको दूं क्या उपहार ।
मैं तो कवि हूँ मुझ पर क्या है ,           
कविता गीतों की झंकार ।
प्रिय तुमको दूं क्या उपहार ।। 


कवि के पास यही कुछ होता ,
कवि का धन तो बस यह ही है;  
कविता  गीतों का संसार ।
प्रिय तुमको दूं क्या उपहार ।।

गीत रचूँ तो तुम ये समझना,
पायल  कंगन चूड़ी खन-खन ।
छंद  कहूं  तो यही समझना ,
कर्णफूल बिझुओं की रुनझुन ।।

मुक्तक रूपी बिंदिया लाऊँ ,
या नगमों से होठ रचाऊँ ।
ग़ज़ल कहूं तो उर में हे प्रिय,
पहनाया  हीरों  का  हार ।।............प्रिय तुमको...।।

दोहे  बरवै-छंद  सवैया ,
अलंकार  रस  छंद-विधान  ।
लाया तेरे  अंग-अंग को,
विविध रूप के प्रिय परिधान ।।

भाव ताल लय भाषा वाणी, 
अभिधा, लक्षणा और व्यंजना ।
तेरे  प्रीति-गान कल्याणी,
तेरे रूप की प्रीति वन्दना ।।

नव-गीतों की बने अंगूठी,
नव-अगीत की मेहंदी भाये ।
जो घनाक्षरी सुनो तो समझो,
नकबेसर छलकाए प्यार ।।.............प्रिय तुमको...।।


नज्मों की करधनी मंगालो,
साड़ी छप्पय कुंडलियों की ।
चौपाई की मुक्ता-मणि से ,
प्रिय तुम अपनी मांग सजालो ।।


शेर  समीक्षा  मस्तक-टीका,
बाजूबंद  तुकांत-छंद  हों ।
कज़रा-अलता, कथा-कहानी ,
पद, पदफूल व हाथफूल हों ।।


उपन्यास  केशों की वेणी ,
और अगीत  फूलों का हार ।
मंगल-सूत्र सी वाणी वन्दना,
काव्य-शास्त्र दूं तुझपर वार ।।.

प्रिय तुमको दूं क्या उपहार ।।
 

6 टिप्‍पणियां:

  1. उपन्यास केशों की वेणी ,
    और अगीत फूलों का हार ।
    मंगल-सूत्र सी वाणी वन्दना,
    काव्य-शास्त्र दूं तुझपर वार ।।.waah isse bda uphar aur kya ho skta hai.

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  2. सबसे बड़ा उपहार तो दे ही चुके हैं.

    जवाब देंहटाएं
  3. भावना ही उपहार स्वरुप है
    इतनी सुन्दर पंक्तियाँ जो लिख दी

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  4. धन्यवाद....सन्गीता जी, रितु एव निशाजी...

    --हेप्पी वेलेन्टाइन

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