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बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

दष्ठौन...कविता....डा श्याम गुप्त....


पुत्री के जन्म दिन पर
दष्ठौन, पार्टी !
कहा था आश्चर्य से
तुमने भी |
मैं जानता था पर-
मन ही मन,
तुम खुश थीं ;
हर्षिता, गर्विता |

दर्पण में
अपनी छवि देखकर,
हम सभी प्रसन्न होते हैं ;
तो अपनी प्रतिकृति देखकर -
कौन हर्षित नहीं होगा |

’पुत्र जन्म पर यह सवाल-

क्यों नहीं किया था तुमने ”-
मैंने भी पूछ लिया था
अनायास ही |
इसका उत्तर-
लोगों के पास तो था ,
सही या गलत - 
पर नहीं था,
तुम्हारे पास ही |

प्रकृति-पुरुष,

विद्या-अविद्या ,
ईश्वर-माया,
शिव और शक्ति ;
युग्म होने पर ही -
पूर्ण होती है,
यह संसार रूपी प्रकृति |

अतः गृहस्थ रूपी संसार की ,

पूर्णाहुति में ही है,
यह पार्टी॥

9 टिप्‍पणियां:

  1. शुक्रवारीय चर्चामंच पर है यह उत्कृष्ट प्रस्तुति |

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  2. OS KI BOONDON SI HOTI HAIN BETIYAN
    DO DO KULON KI LAZ KO DHOTI HAIN BETIYAN
    SUNDAR RACHANA KE LIYE BADHAI .

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  3. धन्यवाद..गिरिजा जी, रविकर, शास्त्रीजी,व सन्गीता जी....

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  4. धन्यवाद रमाकान्त जी... सही कहा ...बेटियां ओस की बूंदों की भांति ही होती हैं...
    ----धन्यवाद..भुवनेश्वरी जी,व शिखा जी..

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