दष्ठौन, पार्टी !
कहा था आश्चर्य से
तुमने भी |
मैं जानता था पर-
मन ही मन,
तुम खुश थीं ;
हर्षिता, गर्विता |
अपनी छवि देखकर,
हम सभी प्रसन्न होते हैं ;
तो अपनी प्रतिकृति देखकर -
कौन हर्षित नहीं होगा |
’पुत्र जन्म पर यह सवाल-
क्यों नहीं किया था तुमने ”-
मैंने भी पूछ लिया था
अनायास ही |
इसका उत्तर-
लोगों के पास तो था ,
अनायास ही |
इसका उत्तर-
लोगों के पास तो था ,
सही या गलत -
पर नहीं था,
तुम्हारे पास ही |
प्रकृति-पुरुष,
विद्या-अविद्या ,
ईश्वर-माया,
शिव और शक्ति ;
युग्म होने पर ही -
पूर्ण होती है,
यह संसार रूपी प्रकृति |
अतः गृहस्थ रूपी संसार की ,
पूर्णाहुति में ही है,
यह पार्टी॥
प्रकृति-पुरुष,
विद्या-अविद्या ,
ईश्वर-माया,
शिव और शक्ति ;
युग्म होने पर ही -
पूर्ण होती है,
यह संसार रूपी प्रकृति |
अतः गृहस्थ रूपी संसार की ,
पूर्णाहुति में ही है,
यह पार्टी॥
सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंशुक्रवारीय चर्चामंच पर है यह उत्कृष्ट प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंOS KI BOONDON SI HOTI HAIN BETIYAN
जवाब देंहटाएंDO DO KULON KI LAZ KO DHOTI HAIN BETIYAN
SUNDAR RACHANA KE LIYE BADHAI .
sarthak rachna ke liye bdhai.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंbahut sarthak aur bhavpurn kavita.
जवाब देंहटाएंsateek mudde ko uthhati abhivyakti .aabhar .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद..गिरिजा जी, रविकर, शास्त्रीजी,व सन्गीता जी....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रमाकान्त जी... सही कहा ...बेटियां ओस की बूंदों की भांति ही होती हैं...
जवाब देंहटाएं----धन्यवाद..भुवनेश्वरी जी,व शिखा जी..