'स नैव रेमे ,
स द्वितीयमैच्छतम '-- .
वह ब्रह्म भी व्यक्त नहीं होपाता ,
जब तक उसे व्यक्त नहीं करती है -
स्वयं उसी की माया ।
वह वैश्वानर -विश्व, कहाँ हो पाता है व्यक्त,
जब तक नहीं होती है उसपर -
प्रकृति माया की छाया ।
वह सत्य तभी होता है व्यक्त 'सत्य '-
जब उसके सम्मुख आती है असत्य माया ।
वह जीव नहीं होपाता है व्यक्त न मुक्त,
जब तक नहीं उसको बिम्बित करती है,
स्वयं में जगन्माया ।
पुरुष कब होपाता है पूर्ण-
जब तक साथ न हो -
स्त्री, सखि, पत्नी, कामिनी, नारी का ,
ममता-माया रूपी साया ।।
पुरुष कब होपाता है पूर्ण-
जवाब देंहटाएंजब तक साथ न हो -
स्त्री, सखि, पत्नी, कामिनी, नारी का ,
ममता-माया रूपी साया ।।shi bat.
भूल पुरुष परिवार को, कर बैठे उत्पात |
जवाब देंहटाएंआजीवन खाता रहे, लाठी, लप्पड़, लात ||
यार रविकर जी...किसकी बुराई कर रहे हो...पुरुष की या नारी की ....
जवाब देंहटाएंसारगर्भित रचना है आपकी आभार|मेरी नै पोस्ट पर भी आयें और मनोबल बढ़ाएं|
जवाब देंहटाएंवह सत्य तभी होता है व्यक्त 'सत्य '-
जवाब देंहटाएंजब उसके सम्मुख आती है असत्य माया ।
sunder rachna ...!!
भूल की---बुराई ||
जवाब देंहटाएं"क्षमा करे"
जल्दी में--
द्विअर्थी या अस्पस्ट है
सुधार कर लेता हूँ
"आभार"
मार्गदर्शन के लिए
वैसे टिप्पणी पुरुष के लिए ही की थी
धन्यवाद सन्गीता जी व अनुपमा जी....
जवाब देंहटाएंचला भूल परिवार को, करे द्रोह-उत्पात |
जवाब देंहटाएंअटक-भटक खाता रहे, लाठी, लप्पड़, लात ||
एकाकी स्वारथ लिए, कैसा यह संन्यास ।
नित्य ढोंग-परपंच से, सामाजिक-सन्त्रास ।।
वह जीव नहीं होपाता है व्यक्त न मुक्त,
जवाब देंहटाएंजब तक नहीं उसको बिम्बित करती है,
स्वयं में जगन्माया ।
AAPAKE WICHAR KO PRANAM.
धन्यवाद रविकर व रमाकान्त जी...प्रणाम..
जवाब देंहटाएं