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मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

पूर्णता ..... कविता...डा श्याम गुप्त ...

'स नैव रेमे , 
स द्वितीयमैच्छतम '--          .

वह ब्रह्म भी व्यक्त नहीं होपाता ,
जब तक उसे व्यक्त नहीं करती है -
स्वयं उसी की माया  ।

वह वैश्वानर -विश्व, कहाँ हो पाता है व्यक्त,
जब तक नहीं होती है उसपर -
प्रकृति माया की छाया ।

वह सत्य तभी होता है व्यक्त 'सत्य '-
जब उसके सम्मुख आती है असत्य माया ।

वह जीव नहीं होपाता है व्यक्त न मुक्त,
जब तक नहीं उसको  बिम्बित करती है,
स्वयं में जगन्माया ।

 पुरुष कब होपाता है पूर्ण-
जब तक साथ न हो -
स्त्री, सखि, पत्नी, कामिनी, नारी का ,
ममता-माया रूपी साया ।।

10 टिप्‍पणियां:

  1. पुरुष कब होपाता है पूर्ण-
    जब तक साथ न हो -
    स्त्री, सखि, पत्नी, कामिनी, नारी का ,
    ममता-माया रूपी साया ।।shi bat.

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  2. भूल पुरुष परिवार को, कर बैठे उत्पात |
    आजीवन खाता रहे, लाठी, लप्पड़, लात ||

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  3. यार रविकर जी...किसकी बुराई कर रहे हो...पुरुष की या नारी की ....

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  4. सारगर्भित रचना है आपकी आभार|मेरी नै पोस्ट पर भी आयें और मनोबल बढ़ाएं|

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  5. वह सत्य तभी होता है व्यक्त 'सत्य '-
    जब उसके सम्मुख आती है असत्य माया ।

    sunder rachna ...!!

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  6. भूल की---बुराई ||

    "क्षमा करे"

    जल्दी में--
    द्विअर्थी या अस्पस्ट है

    सुधार कर लेता हूँ

    "आभार"

    मार्गदर्शन के लिए

    वैसे टिप्पणी पुरुष के लिए ही की थी

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  7. धन्यवाद सन्गीता जी व अनुपमा जी....

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  8. चला भूल परिवार को, करे द्रोह-उत्पात |

    अटक-भटक खाता रहे, लाठी, लप्पड़, लात ||


    एकाकी स्वारथ लिए, कैसा यह संन्यास ।

    नित्य ढोंग-परपंच से, सामाजिक-सन्त्रास ।।

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  9. वह जीव नहीं होपाता है व्यक्त न मुक्त,
    जब तक नहीं उसको बिम्बित करती है,
    स्वयं में जगन्माया ।
    AAPAKE WICHAR KO PRANAM.

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  10. धन्यवाद रविकर व रमाकान्त जी...प्रणाम..

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