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रविवार, 1 जनवरी 2012

वैदिक सरस्वती वन्दना...डा श्याम गुप्त

 ------------------------सभी गुणी जनों को नव वर्ष की शुभ कामनाओं सहित.....
 

वेद ऋचा उपनिषद् ज्ञान रस ,     
का जो नर चिंतन करता है , 

करे अध्ययन मनन कर्म सब,
ऋषि प्रणीत जीवन सूत्रों का |
 

उस निर्मल मन बुद्धि भाव को,
जग जीवन की सत्व बुद्धि का|
स्वयं सरस्वती वर देतीं हैं,

सारे जीवन सार-तत्त्व का ||
 

माँ की कृपा भाव के इच्छुक,
जब माँ का आवाहन करते |
श्रेष्ठ कर्म रत,ज्ञान धर्म रत,

भक्तों को इच्छित वर मिलते।।
 

वाणी की सरगम ऋषियों ने,
सप्त वर्ण स्वर छंद निहित इस,
 
सत्य मूल ऊर्जा से, स्वयंभू-
अनहद नाद से किया संगठित॥
 

जग कल्याण हेतु माँ वाणी,
बनी 'बैखरी' हुई अवतरित
 

माँ सरस्वती कृपा करें , हों-
मन में नव भाव अवतरित।।


गूढ़ ज्ञान के तथ्यों को हम,

देख के भी तो समझ पाते।
 

ऋषियों द्वारा प्रकट सूत्र को,
सुनकर भी तो समझ पाते।
 

गूढ़ ज्ञान का तत्व केवल ,
बुद्धि की क्षमता से मिलता है  

करें साधना तप निर्मल मन ,
उस सुपात्र को ही मिलता है।।
 

मातु वाग्देवी सुपात्र को,
स्वतः ज्ञान से भर देतीं हैं।
देव, गुरू या किसी सूत्र से,
मन ज्योतिर्मय कर देती हैं
 

मेरे अन्धकार मय मन को ,
हे मां वाणी! जगमग करदो  

मां सरस्वती इस जड मति को,
शुद्ध ज्ञान से निर्मल करदो॥

श्रम, विचार कला-परक सब,

अर्थ-परक और ज्ञान-परक सब।

सारी ही विद्याएं  आकर,
सरस्वती में हुईं समाहित


सहज सुधा सम अमित रूप है,  

वाणी महिमा अपरम्पार
तुम अनन्त, स्त्रोत अनन्ता,
तुच्छ बुद्धि क्या पाये पार

सर्व ज्ञान सम्पन्न व्यक्ति भी,
सभी एक से कब होते हैं
अनुभव् तप श्रद्धा मन तो,

होते सबके अलग अलग हैं 

समतल होता भरा जलाशय,
 

यद्यपि ऊपर के जल-तल से
किन्तु धरातल गहराई के,
अलग अलग स्तर होते हैं॥


 ज्ञान रसातल अन्धकार में,
पड़े श्याम' को संबल देदो

मेरा भी स्तर उठ जाये,
 

हे मां ! एसा मति बल देदो
                                                                     ---चित्र गूगल साभार 

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