------------------------सभी गुणी जनों को नव वर्ष की शुभ कामनाओं सहित.....
वेद ऋचा उपनिषद् ज्ञान रस ,
का जो नर चिंतन करता है ,
करे अध्ययन मनन कर्म सब,
ऋषि प्रणीत जीवन सूत्रों का |
उस निर्मल मन बुद्धि भाव को,
जग जीवन की सत्व बुद्धि का|
स्वयं सरस्वती वर देतीं हैं,
सारे जीवन सार-तत्त्व का ||
माँ की कृपा भाव के इच्छुक,
जब माँ का आवाहन करते |
श्रेष्ठ कर्म रत,ज्ञान धर्म रत,
भक्तों को इच्छित वर मिलते।।
वाणी की सरगम ऋषियों ने,
सप्त वर्ण स्वर छंद निहित इस,
सत्य मूल ऊर्जा से, स्वयंभू-
अनहद नाद से किया संगठित॥
जग कल्याण हेतु माँ वाणी,
बनी 'बैखरी' हुई अवतरित।
माँ सरस्वती कृपा करें , हों-
मन में नव भाव अवतरित।।
गूढ़ ज्ञान के तथ्यों को हम,
देख के भी तो समझ न पाते।
ऋषियों द्वारा प्रकट सूत्र को,
सुनकर भी तो समझ न पाते।
गूढ़ ज्ञान का तत्व न केवल ,
बुद्धि की क्षमता से मिलता है ।
करें साधना तप निर्मल मन ,
उस सुपात्र को ही मिलता है।।
मातु वाग्देवी सुपात्र को,
स्वतः ज्ञान से भर देतीं हैं।
देव, गुरू या किसी सूत्र से,
मन ज्योतिर्मय कर देती हैं ।
मेरे अन्धकार मय मन को ,
हे मां वाणी! जगमग करदो ।
मां सरस्वती इस जड मति को,
शुद्ध ज्ञान से निर्मल करदो॥
श्रम, विचार औ कला-परक सब,
अर्थ-परक और ज्ञान-परक सब।
सारी ही विद्याएं आकर,
सरस्वती में हुईं समाहित ॥
सहज सुधा सम अमित रूप है,
वाणी महिमा अपरम्पार ।
तुम अनन्त, स्त्रोत अनन्ता,
तुच्छ बुद्धि क्या पाये पार ॥
सर्व ज्ञान सम्पन्न व्यक्ति भी,
सभी एक से कब होते हैं ।
अनुभव् तप श्रद्धा व मन तो,
होते सबके अलग अलग हैं ॥
समतल होता भरा जलाशय,
यद्यपि ऊपर के जल-तल से ।
किन्तु धरातल गहराई के,
अलग अलग स्तर होते हैं॥
ज्ञान रसातल अन्धकार में,
पड़े श्याम' को संबल देदो ।
मेरा भी स्तर उठ जाये,
हे मां ! एसा मति बल देदो ॥
---चित्र गूगल साभार
वेद ऋचा उपनिषद् ज्ञान रस ,
का जो नर चिंतन करता है ,
करे अध्ययन मनन कर्म सब,
ऋषि प्रणीत जीवन सूत्रों का |
उस निर्मल मन बुद्धि भाव को,
जग जीवन की सत्व बुद्धि का|
स्वयं सरस्वती वर देतीं हैं,
सारे जीवन सार-तत्त्व का ||
माँ की कृपा भाव के इच्छुक,
जब माँ का आवाहन करते |
श्रेष्ठ कर्म रत,ज्ञान धर्म रत,
भक्तों को इच्छित वर मिलते।।
वाणी की सरगम ऋषियों ने,
सप्त वर्ण स्वर छंद निहित इस,
सत्य मूल ऊर्जा से, स्वयंभू-
अनहद नाद से किया संगठित॥
जग कल्याण हेतु माँ वाणी,
बनी 'बैखरी' हुई अवतरित।
माँ सरस्वती कृपा करें , हों-
मन में नव भाव अवतरित।।
गूढ़ ज्ञान के तथ्यों को हम,
देख के भी तो समझ न पाते।
ऋषियों द्वारा प्रकट सूत्र को,
सुनकर भी तो समझ न पाते।
गूढ़ ज्ञान का तत्व न केवल ,
बुद्धि की क्षमता से मिलता है ।
करें साधना तप निर्मल मन ,
उस सुपात्र को ही मिलता है।।
मातु वाग्देवी सुपात्र को,
स्वतः ज्ञान से भर देतीं हैं।
देव, गुरू या किसी सूत्र से,
मन ज्योतिर्मय कर देती हैं ।
मेरे अन्धकार मय मन को ,
हे मां वाणी! जगमग करदो ।
मां सरस्वती इस जड मति को,
शुद्ध ज्ञान से निर्मल करदो॥
श्रम, विचार औ कला-परक सब,
अर्थ-परक और ज्ञान-परक सब।
सारी ही विद्याएं आकर,
सरस्वती में हुईं समाहित ॥
सहज सुधा सम अमित रूप है,
वाणी महिमा अपरम्पार ।
तुम अनन्त, स्त्रोत अनन्ता,
तुच्छ बुद्धि क्या पाये पार ॥
सर्व ज्ञान सम्पन्न व्यक्ति भी,
सभी एक से कब होते हैं ।
अनुभव् तप श्रद्धा व मन तो,
होते सबके अलग अलग हैं ॥
समतल होता भरा जलाशय,
यद्यपि ऊपर के जल-तल से ।
किन्तु धरातल गहराई के,
अलग अलग स्तर होते हैं॥
ज्ञान रसातल अन्धकार में,
पड़े श्याम' को संबल देदो ।
मेरा भी स्तर उठ जाये,
हे मां ! एसा मति बल देदो ॥
---चित्र गूगल साभार
विनम्रता ,बुद्धि ,विवेक के पुष्पों से अलंकृत पोस्ट है ,,बधाई |
जवाब देंहटाएंdhanyavaad ...sangeetaa jee....
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