इच्छा शक्ति हो तो सब कुछ किया जा सकता है ....नारी तो जंगल में भी मंगल कर देती है | देखिये इसी भाव पर श्रीमती सुषमा गुप्ता का एक गीत ..... .डा श्याम गुप्त
चूल्हे -चौके की खटरस में ...गीत ..
चूल्हे - चौके की खटपट में ,
समय भला कब मिल पाता है |
सब्जी कढ़ी दाल अदहन में,
गीत भला कब बन पाता है ||
तवा कड़ाही चमचा कलछा ,
के स्वर की रागिनी सजे नित,
दूध चाय पानी के स्वर में ,
कब संगीत उभर पाता है ||
पर मन में संगीत बसा हो,
सब कुछ संभव होजाता है |
गुन-गुन में मनमीत बसा हो ,
तो मन गीत सजा जाता है ||
चूल्हे चौके की खटरस में,
ताल बंद लय मिल जाते हैं |
थाली बेलन चकले के स्वर,
सुर और राग बता जाते हैं ||
दाल झोल अदहन के स्वर भी,
नाद अनाहत बन जायेंगे |
मन में प्रिय रागिनी बसी हो,
गीत स्वयं ही सज जायेंगे ||
गरमा गर्म रसोई की जब,
उठती भीनी गंध सुहानी |
लगती सुन्दर काव्य-भाव सी ,
बन जाती इक कथा कहानी ||
मेरे गीतों में जीवन की,
खुशियों की थिरकन होती है |
उन गीतों में जन जन मन की ,
ह्रदय की धड़कन होती है ||
चूल्हे चौके की खट-पट में,
समय कहाँ फिर मिल पाता है |
मन में प्रिय रागिनी बसी हो,
गीत लवों पर खिल आता है ||
प्रस्तुति---- सुषमा गुप्ता, लखनऊ
चूल्हे - चौके की खटपट में ,
समय भला कब मिल पाता है |
सब्जी कढ़ी दाल अदहन में,
गीत भला कब बन पाता है ||
तवा कड़ाही चमचा कलछा ,
के स्वर की रागिनी सजे नित,
दूध चाय पानी के स्वर में ,
कब संगीत उभर पाता है ||
पर मन में संगीत बसा हो,
सब कुछ संभव होजाता है |
गुन-गुन में मनमीत बसा हो ,
तो मन गीत सजा जाता है ||
चूल्हे चौके की खटरस में,
ताल बंद लय मिल जाते हैं |
थाली बेलन चकले के स्वर,
सुर और राग बता जाते हैं ||
दाल झोल अदहन के स्वर भी,
नाद अनाहत बन जायेंगे |
मन में प्रिय रागिनी बसी हो,
गीत स्वयं ही सज जायेंगे ||
गरमा गर्म रसोई की जब,
उठती भीनी गंध सुहानी |
लगती सुन्दर काव्य-भाव सी ,
बन जाती इक कथा कहानी ||
मेरे गीतों में जीवन की,
खुशियों की थिरकन होती है |
उन गीतों में जन जन मन की ,
ह्रदय की धड़कन होती है ||
चूल्हे चौके की खट-पट में,
समय कहाँ फिर मिल पाता है |
मन में प्रिय रागिनी बसी हो,
गीत लवों पर खिल आता है ||
प्रस्तुति---- सुषमा गुप्ता, लखनऊ
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंगुन-गुन में मनमीत बसा हो ,
जवाब देंहटाएंतो मन गीत सजा जाता है ||
ati sundar.
चूल्हे चौके की खट-पट में,
जवाब देंहटाएंसमय कहाँ फिर मिल पाता है |
मन में प्रिय रागिनी बसी हो,
गीत लवों पर खिल आता है ||बहुत प्रेरक और सुंदर अभिव्यक्ति..
सुन्दर प्रस्तुती के लिए बधाई | भारतीय नारी के ब्लॉग पर आते समय एक विचार मन में रहता है की कुछ नया पढ़ने के लिए अवश्य मिलेगा | क्यों आज भी एक स्त्री के विषय में लिखते या बोलते समय एक निरीह चेहरा,अस्त-व्यस्त बाल,कामों में उलझे हाथ की ही कल्पना की जाती है | माना के एक वक्त था ऐसा, पर आज शहर तो क्या गाँव में भी स्थितियां बदल गई हैं | यह तो भारत है जहाँ सरस्वती दुर्गा, लक्ष्मी, आदि रूपों में नारी ही पूजी जाती है | शिक्षा के व्यापक प्रसार तथा सहजता से उपलब्ध होने से लड़कियों को भी शिक्षित किया जा रहा है वे स्वावलंबी हो रहीं हैं| विवाह पश्चात उन्हें स्वयं को एक नए परिवेश में सामंजस्य के साथ ढालना होता है और उस वक्त भी वे अपने संस्कारों व् शिक्षा के कारण पूरी दक्षता व् आत्मविश्वास के साथ बखूबी सभी रिश्ते निभाती हैं | भारतीय नारी ने समय-समय पर स्वयं को शक्ति रूप में सिद्ध भी किया है | तात्पर्य यह है की नारी की शालीनता और संकोच ही जो उसके व्यक्तित्व का मुख्य अंग माने जाते हें उसके निरीह होने की घोषणा करते हैं|
जवाब देंहटाएंनारी की शालीनता को उसका आत्मविश्वास समझना आवश्यक है | उसे वक्त कुछ कम तो मिलता है,पर रसोई के अलावा वो अन्य जगह भी व्यस्त होती है जैसे हम और आप |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद..सुषमाजी, शुक्ला जी, निशाजी व सन्गीता जी ...विशद टिप्पणी के लिये...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति | मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसुषमा जी नवीन और सौंधी गंध लिए रचना है। बहुत आनन्ददायी, बधाई।
जवाब देंहटाएंधन्य्वाद प्रेम जी एवं अजित जी....
जवाब देंहटाएंbahut achchhi v sateek prastuti .aabhar
जवाब देंहटाएंdhanyavaad shikhaa jee ....
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