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शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते....ब्लागर डा0 सन्ध्या गुप्ता जी के निधन पर विनम्र श्रद्वांजलि

बीते नवम्बर की आठ तारीख को तरक्की के इस जमाने में एक जंगली बेल ... की मुहिम चलाने वाली सुश्री डा0 सन्ध्या गुप्ता जी नहीं रही । उनके असामयिक निधन की सूचना ब्लाग जगत में विलंब से प्राप्त हुयी । श्री अनुराग शर्मा जी के पिटरबर्ग से एक भारतीय नामक ब्लाग .. पर प्रकाशित श्रद्वांजलि से यह ज्ञात हो सका कि पर प्रकाशित श्रद्वांजलि से यह ज्ञात हो सका कि डा0 सन्ध्या गुप्ता जी नहीं रहीं।

वे विगत नवम्बर 2010 तक अपने ब्लाग पर सक्रिय रूप से लिखती रहीं फिर अचानक ब्लाग जगम में लगातार अनुपस्थित रही थी । इस अनुपस्थिति की बाबत अचानक अगस्त 2011 में एक दिन अचानक अपने ब्लाग पर‘फिर मिलेंगे’... नामक शीर्षक के छोटे से वक्तब्य के साथ प्रगट हुयी थीं तब उन्होने अवगत कराया था कि वे जीभ के गंभीर संक्रमण से जूझ रही थीं और शीघ्र स्वस्थ होकर लौट आयेंगी ।




सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ.संध्या गुप्ता अब इस दुनियां में नहीं रही। पिछले कई माह से बीमार चल रही डॉ.गुप्ता ने गुजरात के गांधी नगर में आठ नवम्बर 2011 को सदा के लिए आंखें मूंद ली हैं। वह अपने पीछे पति सहित एक पुत्र व एक पुत्री को छोड़ गयी है। पुत्र प्रो.पीयूष यहां एसपी कॉलेज में अंग्रेजी विभाग के व्याख्याता है। उनके आकस्मिक निधन पर विश्वविद्यालय परिवार ने गहरा दुख प्रकट किया है। प्रतिकुलपति डॉ.प्रमोदिनी हांसदा ने 56 वर्षीय डॉ.गुप्ता के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि दुमका से बाहर रहने की वजह से आखिरी समय में उनसे कुछ कहा नहीं जा सका इसका उन्हें सदा गम रहेगा। उन्होंने दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा कि हिंदी जगत ने एक अनमोल सितारा खो दिया है।

डॉ.गुप्ता को उनकी काव्यकृति 'बना लिया मैंने भी घोंसला' के लिए मैथिलीशरण गुप्त विशिष्ट सम्मान से सम्मानित किया गया था।

आज उन्हे श्रद्वांजलि स्वरूप प्रस्तुत है उनके ब्लाग पर नवम्बर 2010 को प्रकाशित उनकी कविता तय तो यह था...

तय तो यह था...


तय तो यह था कि
आदमी काम पर जाता
और लौट आता सकुशल

तय तो यह था कि
पिछवाड़े में इसी साल फलने लगता अमरूद

तय था कि इसी महीने आती
छोटी बहन की चिट्ठी गाँव से
और
इसी बरसात के पहले बन कर
तैयार हो जाता
गाँव की नदी पर पुल

अलीगढ़ के डॉक्टर बचा ही लेते
गाँव के किसुन चाचा की आँख- तय था

तय तो यह भी था कि
एक दिन सारे बच्चे जा सकेंगे स्कूल...

हमारी दुनिया में जो चीजें तय थीं
वे समय के दुःख में शामिल हो एक
अंतहीन...अतृप्त यात्राओं पर चली गयीं

लेकिन-
नहीं था तय ईश्वर और जाति को लेकर
मनुष्य के बीच युद्ध!

ज़मीन पर बैठते ही चिपक जायेंगे पर
और मारी जायेंगी हम हिंसक वक़्त के हाथों
चिड़ियों ने तो स्वप्न में भी
नहीं किया था तय!

नवभारत टाइम्स दैनिक ई पत्र पर श्रद्धांजलि के लिये क्लिक करें
तय तो यह था....विनम्र श्रद्वांजलि



और यह रही डा0 सन्ध्या जी की उनके ब्लाग पर दिनांक 18 सितम्बर 2008 को प्रकाशित पहली पोस्ट


बृहस्पतिवार, १८ सितम्बर २००८

कोई नहीं था.....

कोई नहीं था कभी यहां
इस सृष्टि में
सिर्फ
मैं...
तुम....और
कविता थी!
प्रस्तुतकर्ता sandhyagupta पर ८:३२:०० पूर्वाह्न

कोलाहल से दूर ब्लाग पर श्रद्धांजलि के लिये क्लिक करें
सचमुच
तय तो यह था कि
आदमी काम पर जाता
और लौट आता सकुशल



परन्तु ...



तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते....


ईश्वर डा0 सन्ध्या गुप्ता जी को स्वर्ग में स्थान दे इसी हार्दिक श्रद्वांजलि के साथ......


24 टिप्‍पणियां:

  1. श्रध्‍दांजलि......
    भगवान उनकी आत्‍मा को शांति दे.........

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  2. ----काव्यान्जलि-श्रद्धान्जलि समर्पित है......
    ---क्या जीव सचमुच
    मुक्त होजाता है,संसार से।
    कैद रहता है वह सदा-
    मन में;
    आत्मीयों के याद रूपी बन्धन में , और
    होजाता है..अमर ॥

    तथा....
    "कोई नहीं रहेगा यहां
    इस सृष्टि में
    रहेंगे सिर्फ-सत्कर्म
    और रहेगी
    कविता ।....."

    जवाब देंहटाएं
  3. श्रध्‍दांजलि......
    भगवान उनकी आत्‍मा को शांति दे.........

    जवाब देंहटाएं
  4. चकित कर देने वाला बहुत ही दुखद समाचार संध्या जी हमारे ब्लॉग पर भी आती थीं हम भी जाया करते थे |लेकिन नियति को कौन जान सका है |हमारी विनम्र श्रधांजलि

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  5. ओह दुखद समाचार
    ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति।

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  6. बहुत ही दुखद, विनम्र श्रद्वांजलि ...!

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  7. श्रध्‍दांजलि
    भगवान उनकी आत्‍मा को शांति दे..

    जवाब देंहटाएं
  8. भगवान उनकी आत्‍मा को शांति दे...:(

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  9. दुखद समाचार....
    विनम्र श्रद्धांजली.

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  10. दुखद समाचार ! आदरणीय संध्या जी को भावभीनी श्रद्धांजलि !

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  11. आपका पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  12. इस श्रद्धांजलि अनुष्ठान में हमारी और से भावपूर्ण पुष्पांजलि .प्रणाम उस पुन्य आत्मन को .तसल्ली दे परमात्मा उनके अपनों को उनके विछोह को सहने की .

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  13. डॉ गुप्ता को हमारी भाव भीनी हार्दिक श्रद्धांजलि ..प्रभु उनके परिवार को शक्ति दें सब कुछ सह आगे बढ़ समाज को बनाने की तरफ ...
    जानकारी के लिए आप का आभार
    भ्रमर ५

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  14. शिखा,
    तुम्‍हारी पोस्‍ट संध्‍या के बारे में पढ़ी । मेरे भी उनसे मैत्री और ताल्‍लुकात थे। उन्‍होंने मेरे कहने पर बना लिया मैने भी घोंसला की पांडुलिपि तेयार की थी और उसे भारतीय ज्ञानपीठ मे प्रकाशन हेतु विचारार्थ भेजा था। इसे पढ़कर मैंने अनूकूल संस्‍तुति की थी और उम्‍मीद थी कि संग्रह ज्ञानपीठ से ही छपेगा। पर किन्‍हीं कारणों से यह संग्रह वहॉं से नहीं आ सका और बाद में यह राधाकृष्‍ण से छपा।

    मेरी उनसे पटना और दिल्‍ली में रहते हुए बराबर बातचीत होती रहती थी। पटना से जुलाई में वाराणसी में आने के बाद से उनसे संपर्क नहीं रहा और इसी बीच यह हादसा हो गया। पिछले दिनों उनके निधन के समाचार से स्‍तब्‍ध रह गया। वे अपनी मॉं की सेवा में किस तरह जुटी रहती थीं, यह बात वे मुझे बताती थीं। एक बार वे अपनी बेटी और पतिदेव गुप्‍ता जी के साथ दिल्‍ली आई थीं तो मुझसे इलाहाबाद बैंक में मिलने आईं।
    काफी बातें हुईं। अपना ब्‍लाग बनाया तो भी सूचना दी। उन्‍हें पढ़ता भी रहता था। साहित्‍य और दीगर मसलों पर उनसे बातें भी होती थीं।

    शिखा जी, उनके न रहने का शून्‍य हमेशा सालता रहेगा।
    ईश्‍वर दिवंगत आत्‍मा को शांति दे।
    आपका भी आभार की आपने यह सूचना मन से यहॉं टॉंकी।
    डॉ.ओम निश्‍चल, वरिष्‍ठ राजभाषा प्रबंधक, इलाहाबाद बैंक, मंडलीय कार्यालय, वाराणसी, फोन: 9696718182

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  15. बहुत दुखद....
    विनम्र श्रद्धांजलि...

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  16. विनम्र श्रद्धांजलि...
    गर प्राण ,देह को असमय त्याग दें
    तो हे भगवन, करना मुझ पे इतनी कृपा

    एक नव देह देना मुझे को ,कुछ दिन को सही ,
    सभी अधूरे कार्य कर सकूँ ,कुछ अभिलाषाए
    पूर्ण कर सकूँ ......

    कुछ और देर मुंडेर पर बैठी चिड़ियों के
    कलरव गीत का रस पान कर सकूँ



    एक और बार सींच सकूँ उन पौधों को
    जो मेरे अकस्मात जाने के बाद सूख चले है

    कुछ और देर बच्चों की निर्दोष हँसीं सुन लूँ
    समेत लूँ ,अपने अंतर में ,उन की सुन्दर छवियाँ



    कुछ और देर आत्मीय जनों को अपनी
    मुस्कान से सुख शांति प्रदान कर सकूँ

    कुछ और देर बैठ सकूँ प्रीतम के पास, कह दूँ वो
    सब जो कभी कहा ही नहीं, प्रकट कर दूँ विशुद्ध प्रेम

    जिसके सहारे वो अपने अकेलेपन से जूझ पाए
    कर पाए जीवन की हर कठिनाई का सामना ,बिना थके .


    बूढी माँ को कह तो सकूँ के दवा टाइम से खाना ,अब
    मेरी तरह रोज दवा टाइम देने शायद कोई न भी आ पाए

    प्राणों ने देह ही तो छोड़ी है ,पर उन अभिलाषाओं को
    कहाँ छोड़ पाए है जो , अभी तक पल रही है
    इस अमर मन में....
    (स्व. संध्या गुप्ता को विनम्र श्रद्धांजलि.. )

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  17. दुखद समाचार !

    डॉ गुप्ता को विनम्र श्रद्धांजलि...

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