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सोमवार, 7 नवंबर 2011

स्व0 अमृता प्रीतम की सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिये भारत के राष्ट्रपति को एक पत्र



यह रही राष्ट्रपति भवन की शिकायत प्राप्ति रसीद

सेवा में

श्रीमान महामहिम भारत के राष्ट्रपति
भारतीय गणराज्य
राष्ट्रपति भवन
नई दिल्ली, भारत


द्वाराः- उचित माध्यम जिलाधिकारी लखनऊ (अग्रिम प्रति ई मेल द्वारा प्रेषित)

विषयः स्व0 अमृता प्रीतम के निवास स्थान को सांस्कृतिक स्मारक के रूप में संरक्षित करने विषयक।

आदरणीय महोदय,

अति विनम्रतापूर्वक अबगत कराना है कि विभिन्न ब्लागों पर प्रकाशित आलेखों तथा समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों के माध्यम से अभी हाल ही में यह ज्ञात हुआ है कि हिंदी एवं पंजाबी भाषा की महान लेखिका स्व0 अमृता प्रीतम जी का नई दिल्ली हौज खास स्थित वह भवन जिसमें वे अपनी मृत्यु पर्यन्त निवास करती रही थी वर्तमान के किसी भवन निर्माता द्वारा बहुमंजिली इमारत बनाने के उद्देश्य से तोड दिया गया है।

उत्तर प्रदेश में स्व0 मुशी प्रेमचन्द जी का जन्म स्थान लमही हो अथवा उत्तराखंड के स्व0 सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म स्थान कौसानी , इसे संबंधित सरकारों ने न केवल राष्ट्रीय विरासत के रूप में संजोया है अपितु समय समय पर इन सांस्कृतिक विरासतो के प्रति यथानुसार शासकीय सम्मान भी प्रदर्शित किया जाता है।

पंजाबी भाषा तथा हिंदी में रचित स्व0 अमृता प्रीतम जी के साहित्य में ‘दिल्ली की गलियां’(उपन्यास), ‘एक थी अनीता’(उपन्यास), काले अक्षर, कर्मों वाली, केले का छिलका, दो औरतें (सभी कहानियां 1970 के आस-पास) ‘यह हमारा जीवन’(उपन्यास 1969 ), ‘आक के पत्ते’ (पंजाबी में बक्क दा बूटा ),‘चक नम्बर छत्तीस’( ), ‘यात्री’ (उपन्यास1968,), ‘एक सवाल (उपन्यास ),‘पिधलती चट्टान(कहानी 1974), धूप का टुकडा(कविता संग्रह), ‘गर्भवती’(कविता संग्रह), आदि प्रमुख हैं जिन्हे पंजाब राज्य सरकार तथा भारत सरकार के संस्किृति विभाग द्वारा समय समय पर विभिन्न सम्मानों से भी अलंकृत किया गया है।

स्व0 अमृता प्रीतम जी की रचनाओं के संबंध में हमारे पडोसी देश नेपाल के उपन्यासकार धूंसवां सायमी ने 1972 में लिखा था किः-‘‘ मैं जब अम्रता प्रीतम की कोई रचना पढता हूं, तब मेरी भारत विरोधी भावनाऐं खत्म हो जाती हैं।’’

हिन्दुस्तान की साहित्यिक बिरादरी की ओर से मैं महोदय को इस अपेक्षा से अवगत कराना चाहता हूँ कि ऐसी महान साहित्यकार के निवास स्थान को उनकी मृत्यु के उपरांत साहित्यिक धरोहर के रूप में संजोना चाहिये था परन्तु यह सुनाई पडा है कि स्व0 अमृता जी के इस भवन को बच्चों की जरूरत के नाम पर किसी भवन निर्माता को बेच दिया गया है।
कोई भी जरूरत सांस्कृतिक विरासत से बडी नहीं हो सकती अतः इस संबंध में महोदय से विनम्र प्रार्थना है कि इस प्रकरण में महामहिम को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है तथा उसे अपने स्तर से दिल्ली राज्य की सरकार को निम्न प्रकार के निर्देश देने चाहिये:-



1ः-स्व0 अमृता प्रीतम जी के निवास स्थान 25 हौज खास के परिसर को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अधिग्रहीत करते हुये उस स्थान पर स्व0 अमृता प्रीतम जी की यादो से जुडा एक संग्रहालय बनाया जाय।



2ः-यदि किन्ही कारणों से उपरोक्तानुसार प्रार्थित कार्यवाही अमल में नहीं लायी जा सकती तो कम से कम यह अवश्य सुनिश्चित किया जाय कि संदर्भित स्थल 25 हौज खास पर बनने वाले इस नये बहुमंजिला भवन का नाम स्व0 अमृता प्रीतम के नाम पर रखते हुये कमसे कम इसके एक तल को स्व0 अमृता प्रीतम के स्मारक के रूप में अवश्य संरक्षित किया जाय।


हिन्दुस्तान की उस साहित्यिक बिरादरी की ओर से प्रार्थी सदैव आभारी रहेगा जिसके पास अपनी बात रखने के लिये बडे बडे फोरम या बैनर नहीं है।

महामहिम महोदय द्वारा हिन्दुस्तानी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिये किये गये इस कार्य के लिये सदैव कृतज्ञ रहेगा।
प्रार्थी /भवदीय

(अशोक कुमार शुक्ला)
‘तपस्या’ 2/614 सेक्टर एच’
जानकीपुरम्, लखनऊ
(उत्तर प्रदेश)
ईमेल: mailto:%20aahokshuklaa@gmail.com

और एक अपील

आदरणीय पाठकगण
प्रेम की उपासक अमृता जी उनकी सांस्कृतिक विरासत को बचाये रखने के लिये कोई अभियान अवश्य चलायें। पहली पहल करते हुये भारत के राष्ट्रपति को प्रेषित अपने पत्र की प्रति आपको भेज रहा हूँ । उचित होगा कि आप एवं अन्य साहित्यप्रेमी भी इसी प्रकार के मेल भेजे । अवश्य कुछ न कुछ अवश्य होगा इसी शुभकामना के साथ महामहिम का लिंक है


महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है । कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें!!!!
महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है । कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें!!!!

11 टिप्‍पणियां:

  1. पढने में आया है के इमरोज़ साहब ने अमृता जी के बच्चों पर आये किसी आर्थिक संकट के चलते घर को बेच दिया है. बिल्डर को बेचा है तो वो तो तोड़ेगा ही. इमरोज़ साहब जिस फ़्लैट में गए हैं उसके एक कमरे को उन्होंने अमृता जी की तस्वीरों पांडुलिपियों और उनके सामान से इस तरह से भर दिया है जैसे वो अभी भी वहीँ रह रहीं हों...सुना है ये कमरा उनके प्रशंशकों के लिए हमेशा खोल कर दिखाया जायेगा. इसकी कोई अधिकारीर सूचना मेरे पास मेरे पास नहीं है लेकिन जैसा कहीं पढ़ा उसी से ये सब लिख रहा हूँ...वैसे आपकी बात सही है...उनकी याद में संग्रहालय बनना ही चाहिए...उन जैसी संवेदन शील कवयेत्री पंजाबी साहित्य में फिर कब होगी कोई नहीं कह सकता...उनके प्रशंशक भाषा और मज़हब की दीवारें के बाहर हैं...

    नीरज

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  2. सराहनीय प्रयास । मेरे पोस्ट पर भी पधारें ।

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  3. अशोक जी का तहे दिल से शुक्रिया ....
    जो उन्होंने मेरे रुदन पर ये कदम उठाया ...
    ख़त मैंने भी लिखा है अब जवाब का इन्तजार है .....

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  4. बहुत बढ़िया लगा! प्रशंग्सनीय प्रयास!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.com/

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  5. bhagwan se prathan kerunga ki aapka sarahniya prayas avasya safal ho .hamari shubkamnaye aapke sath hai
    aabhar

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  6. एक मूर्खतापूर्ण क्रित्य है.....साहित्य्कार अपनी रचनाओं द्वारा जीवित रहते है ..मकानों से नहीं....

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