'भारतीय नारी'-क्या होना चाहिए यहाँ जो इस ब्लॉग को सार्थकता प्रदान करे ? आप साझा करें अपने विचार हमारे साथ .यदि आप बनना चाहते हैं 'भारतीय नारी ' ब्लॉग पर योगदानकर्ता तो अपनाE.MAIL ID प्रेषित करें इस E.MAIL ID PAR-shikhakaushik666@hotmail.com
पेज
▼
शनिवार, 3 सितंबर 2011
चीखों जैसी किलकारियाँ!
(भारतीय नारी ब्लाग के सितम्बर माह के विषय ‘मादा भ्रूण हत्या’ को समर्पित एक प्रश्नावली )
आखिर क्यों ?
शहनाई और किलकारी,
क्रमागत हैं एक दूसरे की!
कुछ महकाती हैं आँगन को
तो चीखों जैसी लगती हैं कुछ !
आखिर क्यों?
आखिर क्यों ?
किसी एक का सृजन पूज्य है
और दूसरे का त्याज्य ?
किसी का निर्माण वरदान सा हैं
और दूसरे का अभिशप्त !
आखिर क्यों ?
आखिर क्यों ?
हर सृजन का साकार होना
एक जैसा नहीं है!
‘उस’ सृजन से पूर्व भी तो बजी थी
मंदिर की वैसी ही घंटियाँ!
जिनको सुनकर
धरा पर उतर आयी थी वो शक्ति!
जिसके बगैर सब ‘मिट्टी’ है,
फिर क्योंकर तुम्हारे समाज में
शापित हैं कुछ किलकारियॉ
और कुछ हैं महिमामंडित ?
आखिर क्यों?
बहुत सही कहा है आपने.हमारे समाज में बेटा बेटी का फर्क हमारे समाज का कलंक है ओर यही वजह है की बेटे की जो बातें अच्छी मानी जाती है सराही जाती हैं बेटी को उन्ही बातों के लिए दुखी किया जाता है.बहुत सुन्दर व् सार्थक भावाभिव्यक्ति.बधाईपहेली संख्या -४४ का परिणाम और विजेता सत्यम शिवम् जी
aapne bahut achcha likha hai yahi prashn to jhakjhor karta hai ki itna fark kyun?kanya bhroon hatya humare desh par ek kalank ban gaya hai.yeh kaise rukega?isi vishya par maine ek kavita apne desh ki raashtrpati mahodaya ko likhi thi ki drs par shikanja kasen action ka uttar bhi mere pas aa gaya.dekho kya kuch karte hain.
Very well written poem... It is a very shameful thing that such practises are still prevalent in our country... Thanks for sharing this important topic with all of us.
aapke dwaara likhi gayi kavita aur desh ki top authority ka answer is vishay me aapki sajagta ka praman hai. Jaagrook rahne se hi hal niklega meri post par aane ka dhanyawaad
ASHOK JI -YOU HAVE RAISED A VERY RELEVANT QUESTION BUT NO ONE WANT TO GIVE RIGHT ANSWER .OUR MAN-DOMINATED SOCIETY IS NOT READY TO CHANGE IT'S MENTALITY .THIS IS REALLY SHAMEFUL .
thoughtful poem
जवाब देंहटाएंआखिर क्यों?
बहुत सही कहा है आपने.हमारे समाज में बेटा बेटी का फर्क हमारे समाज का कलंक है ओर यही वजह है की बेटे की जो बातें अच्छी मानी जाती है सराही जाती हैं बेटी को उन्ही बातों के लिए दुखी किया जाता है.बहुत सुन्दर व् सार्थक भावाभिव्यक्ति.बधाईपहेली संख्या -४४ का परिणाम और विजेता सत्यम शिवम् जी
जवाब देंहटाएंaapne bahut achcha likha hai yahi prashn to jhakjhor karta hai ki itna fark kyun?kanya bhroon hatya humare desh par ek kalank ban gaya hai.yeh kaise rukega?isi vishya par maine ek kavita apne desh ki raashtrpati mahodaya ko likhi thi ki drs par shikanja kasen action ka uttar bhi mere pas aa gaya.dekho kya kuch karte hain.
जवाब देंहटाएंShaliniji aur sunita ji
जवाब देंहटाएंaap dono ka aabhar...
Very well written poem... It is a very shameful thing that such practises are still prevalent in our country...
जवाब देंहटाएंThanks for sharing this important topic with all of us.
Rajesh kummari ji
जवाब देंहटाएंaapke dwaara likhi gayi kavita aur
desh ki top authority ka answer is vishay me
aapki sajagta ka praman hai.
Jaagrook rahne se hi hal niklega
meri post par aane ka dhanyawaad
सशक्त लेखन
जवाब देंहटाएंASHOK JI -YOU HAVE RAISED A VERY RELEVANT QUESTION BUT NO ONE WANT TO GIVE RIGHT ANSWER .OUR MAN-DOMINATED SOCIETY IS NOT READY TO CHANGE IT'S MENTALITY .THIS IS REALLY SHAMEFUL .
जवाब देंहटाएंसशक्त लेखन
जवाब देंहटाएंVandana ji
जवाब देंहटाएंshikhaji
vudyaji
Sanditaa ji
aap sab ka aabhar
सार्थक प्रश्न...
जवाब देंहटाएंसादर...