१८५७ की क्रांति और बेगम हज़रत महल !
पहला था संग्राम महा ;आजादी-खातिर ,
अंग्रेजी सरकार कुटिल और बड़ी थी शातिर,
लखनऊ में विद्रोह की डोर थी जिसने थामी,
'बेगम हजरत महल 'नाम,थी अवध की रानी ,
अवध-नवाब को कैद किया कलकत्ता में था ,
इसीलिए यह काम संभाला बेगम ने था ,
नाबालिग बेटे को वारिस घोषित कर डाला ;
पर अंग्रेजो ने इसको वैध न माना ,
साजिश कर जब अवध मिलाने को थे तत्पर ;
युद्ध के बादल मंडरा आये अवध के ऊपर ,
बेगम ने हालातों से तब हार न मानी ,
ले किसान,जमीदार,सिपाही -युद्ध की ठानी ,
तीन,तीस व् मई इक्तीस -सन सत्तावन ;
अवध में था विद्रोह हुआ,लक्ष्य था पावन ,
बेगम ने विद्रोह का तब नेतृत्व किया था ;
किन्तु ये प्रयास जल्द ही विफल हुआ था ,
माह सितम्बर सन था अट्ठारह सौ अट्ठावन
ब्रिटिश सैनिको ने कब्जाया अवध का शासन ,
किन्तु बेगम ने झुकने से इंकार किया था ;
हो विवश नेपाल-गमन स्वीकार किया था ,
दुश्मन के आगे न जिसने किया समर्पण
ऐसी बेगम के साहस को नमन करे हम !
शिखा कौशिक
शिखा जी सुन्दर रचना देश प्रेम पर बेगम की सुन्दर झांकी
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभ कामनाएं
भ्रमर ५
भ्रमर की माधुरी
रस-रंग भ्रमर का
Hamaare lucknow ki sarjamin ki begam ko aaj ki post ka vishay banaane ka shukriya.
जवाब देंहटाएंshikha ji bahut bahut shukriya gadya ko kavya ka swaroop dene ke liye isse mere jaise sadharan jan bhi ab hamari etihasik hastiyon ke bare me aasani se jan payenge.abhi tak keval begam hazrat ke bare me suna tha aaj padh bhi liya .thanks a lot.
जवाब देंहटाएं