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बुधवार, 24 अगस्त 2011

कोरे सपने.......


बिना तुम्हारे बंजर होगा आसमान 
उजड़ी सी होगी सारी जमीन 
फिर उसी धधकते हुए सूर्य के प्रखर तले 
सब ओर चिलचिलाती काली चट्टानों पर 
ठोकर खाता, टकराता भटकेगा समीर 
भौंहों पर धुल-पसीना ले तन-मन हारा 
बेचैन रहूंगा फिरता मैं मारा-मारा
देखता रहूँगा क्षितिजों की 
सब तरफ गोल कोरी लकीर 
फिर भी सूनेपन की आईने में  चमकेगा लगातार 
मेरी आँखों में रमे हुए मीठे आकारों का निखर 
मैं संभल न पाऊंगा डालूँगा दृष्टि जिधर 
अपना आँचल फैलायेगी वह सहज उधर.......
नीलकमल वैष्णव"अनिश"
०९६३०३०३०१०
०९६३०३०३०१७

10 टिप्‍पणियां:

  1. शुक्रवार --चर्चा मंच :

    चर्चा में खर्चा नहीं, घूमो चर्चा - मंच ||
    रचना प्यारी आपकी, परखें प्यारे पञ्च ||

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  2. सुन्दर रचना , सार्थक सृजन

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  3. फिर भी सूनेपन की आईने में चमकेगा लगातार
    मेरी आँखों में रमे हुए मीठे आकारों का निखर
    मैं संभल न पाऊंगा डालूँगा दृष्टि जिधर
    अपना आँचल फैलायेगी वह सहज उधर.......बेहद अप्रतिम भावाभिव्यक्ति अनुपम शब्द और प्रतीक विधान लिए .

    मुस्लिम समाज में भी है पाप और पुण्य की अवधारणा ./

    http://veerubhai1947.blogspot.com/
    Wednesday, August 24, 2011
    योग्य उत्तराधिकारी की तलाश .
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
    बृहस्पतिवार, २५ अगस्त २०११
    संसद की प्रासंगिकता क्या है ?/
    http://veerubhai1947.blogspot.com

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  4. प्रिय मित्र नीलकमलजी बेहद खूबसूरत रचना आभार

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  5. श्रेष्ठ रचनाओं में से एक ||
    बधाई ||

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  6. सार्थक रचना...
    नीलकमल जी को बधाई...

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  7. मैं संभल न पाऊंगा डालूँगा दृष्टि जिधर
    अपना आँचल फैलायेगी वह सहज उधर......
    Sunder prastuti

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  8. आप सब लोगों ने मेरी रचना को पसंद कर इतने अच्छे विचार प्रकट किये मैं बहुत बहुत आभारी हूँ आप सबका
    मेरी रचनाये नीचें यहाँ पर भी हैं आप आये और अपने मित्रता की पंक्तियों में मुझे भी शामिल कर अनुग्रहित करें
    MITRA-MADHUR
    MADHUR VAANI
    BINDAAS_BAATEN

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