बिना तुम्हारे बंजर होगा आसमान
उजड़ी सी होगी सारी जमीन
फिर उसी धधकते हुए सूर्य के प्रखर तले
सब ओर चिलचिलाती काली चट्टानों पर
ठोकर खाता, टकराता भटकेगा समीर
भौंहों पर धुल-पसीना ले तन-मन हारा
बेचैन रहूंगा फिरता मैं मारा-मारा
देखता रहूँगा क्षितिजों की
सब तरफ गोल कोरी लकीर
फिर भी सूनेपन की आईने में चमकेगा लगातार
मेरी आँखों में रमे हुए मीठे आकारों का निखर
मैं संभल न पाऊंगा डालूँगा दृष्टि जिधर
अपना आँचल फैलायेगी वह सहज उधर.......
नीलकमल वैष्णव"अनिश"
०९६३०३०३०१०
०९६३०३०३०१७
sarthak prastuti .aabhar
जवाब देंहटाएंशुक्रवार --चर्चा मंच :
जवाब देंहटाएंचर्चा में खर्चा नहीं, घूमो चर्चा - मंच ||
रचना प्यारी आपकी, परखें प्यारे पञ्च ||
सुन्दर रचना , सार्थक सृजन
जवाब देंहटाएंफिर भी सूनेपन की आईने में चमकेगा लगातार
जवाब देंहटाएंमेरी आँखों में रमे हुए मीठे आकारों का निखर
मैं संभल न पाऊंगा डालूँगा दृष्टि जिधर
अपना आँचल फैलायेगी वह सहज उधर.......बेहद अप्रतिम भावाभिव्यक्ति अनुपम शब्द और प्रतीक विधान लिए .
मुस्लिम समाज में भी है पाप और पुण्य की अवधारणा ./
http://veerubhai1947.blogspot.com/
Wednesday, August 24, 2011
योग्य उत्तराधिकारी की तलाश .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
बृहस्पतिवार, २५ अगस्त २०११
संसद की प्रासंगिकता क्या है ?/
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kore sapno ki sundar rachna....
जवाब देंहटाएंप्रिय मित्र नीलकमलजी बेहद खूबसूरत रचना आभार
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ रचनाओं में से एक ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंनीलकमल जी को बधाई...
मैं संभल न पाऊंगा डालूँगा दृष्टि जिधर
जवाब देंहटाएंअपना आँचल फैलायेगी वह सहज उधर......
Sunder prastuti
आप सब लोगों ने मेरी रचना को पसंद कर इतने अच्छे विचार प्रकट किये मैं बहुत बहुत आभारी हूँ आप सबका
जवाब देंहटाएंमेरी रचनाये नीचें यहाँ पर भी हैं आप आये और अपने मित्रता की पंक्तियों में मुझे भी शामिल कर अनुग्रहित करें
MITRA-MADHUR
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