भारतीय नारी ब्लाग शिखा जी के उच्च दृष्टिकोण और समाज के प्रति किसी जिम्मेदार नागरिक की कर्तव्य भावना को स्पष्ट उजागर करता है । शिखा जी शालिनी जी सामाजिक बुराईयों और भृष्टाचारी व्यवस्था के प्रति सदैव ही आवाज उठाती रहीं हैं । और सिर्फ़ कलम की आवाज ही नहीं । वे अपने जीवन में इसको क्रियान्वित करती हुयी न सिर्फ़ अमल भी करती हैं । बल्कि दूसरों को प्रेरित भी करती हैं । इनसे मेरे विचारों की साम्यता होने के कारण मैं इन कौशिक बहनों को अपना मित्र मानता हूँ ।
जब इस ब्लाग के लिये पहली बार कुछ लिखने को विचार किया । तो मेरे मन में हमारी सीनियर महिला ब्लागर निर्मला कपिला जी का ख्याल आया । जिनकी गजलें और खास उनका बेबाक अन्दाज मुझे बेहद प्रभावित करता है । चीफ फार्मासिस्ट पद से रिटायर जीवन के अनुभवों से परिपक्व निर्मला जी हमारे बीच सम्मानित बुजुर्ग भी हैं ।
अतः मैं अपनी भावना अनुसार उनका स्वलिखित परिचय विवरण और उनकी कुछ गजलें साभार यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ । क्योंकि बुजुर्गों के सम्मान के साथ कोई शुरूआत करना मेरा अटल नियम है ।
निर्मला जी अपने बारे में कहती हैं -
अपने लिये कहने को कुछ नहीं मेरे पास । पंजाब मे एक छोटे से खूबसूरत शहर नंगल मे होश सम्भाला । तब से यहीं हूँ । B.B.M.B अस्पताल से चीफ फार्मासिस्ट रिटायर हूँ । अब लेखन को समर्पित हूँ । मेरी 3 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । 1 - सुबह से पहले ( कविता संग्रह ) 2 - वीरबहुटी ( कहानी संग्रह ) 3 - प्रेमसेतु ( कहानी संग्रह ) आजकल अपनी रूह के शहर इस ब्लाग पर अधिक रहती हूँ । आई थी । एक छोटी सी मुस्कान की तलाश में । मगर मिल गया । खुशियों का समंदर । कविता । कहानी । गज़ल
। मेरी मनपसंद विधायें हैं । पुस्तकें पढना और ब्लाग पर लिखना मेरा शौक है । इनका ब्लाग - वीर बहूटी । वीरांचल गाथा ।
-----
डर सा इक दिल मे उठाती गर्मियों की ये दुपहरी । घोर सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी ।
चिलचिलाती धूप सी रिश्तों में भी कुछ तल्खियाँ हैं । तन्हाई बढाती गर्मियों की ये दुपहरी ।
हाँ वही मजदूर जो डामर बिछाता है सडक पर । मुश्किलें उसकी बढाती गर्मिओं की ये दुपहरी ।
है बहुत मुश्किल बनाना दाल रोटी गर्मिओं मे । औरतों पर ज़ुल्म ढाती गर्मिओं की ये दुपहरी ।
आग का तांडव और हैं कहीं उठते बवंडर । यूँ लगे सब से हो रूठी गर्मिओं की ये दुपहरी ।
तैरना तालाब मे कैसे घडे पर पार जाना । याद बचपन की दिलाती गर्मियों की ये दुपहरी ।
रात तन्हा थी मगर कुछ ख्वाब तेरे आ गये थे । पर भला कैसे कटेगी गर्मियों की ये दुपहरी ।
बर्फ मे शहतूत रख,तरबूज खरबूजे खुमानी । मौसमी सौगात लाती गर्मियों की ये दुपहरी ।
चमचमाते रंग लिये चमका तपाशूँ आस्माँ पर । धूप की माला पिरोती गर्मिओं की ये दुपहरी ।
दिल पे लिखती नाम तेरा ज़िन्दगी की धूप जब । ज़ख्म दिल के है तपाती गर्मिओं की ये दुपहरी ।
जब से छत पर काग बोले आयेगा परदेश से वो । तब शज़र सी छाँव देती गर्मिओं की ये दुपहरी ।
याचना करती सी आँखें प्यार के लम्हें बुलाती । बिघ्न आकर डाल जाती गर्मिओं की ये दुपहरी ।
-----
दर्द आँखों से बहाने निकले । गम उसे अपने सुनाने निकले ।
रंज़ में हम से हुआ है ये भी । आशियां अपना जलाने निकले ।
गर्दिशें सब भूल भी जाऊँ पर । रोज रोने के बहाने निकले ।
आग पहले खुद लगायी जिसने । जो जलाया फिर , बुझाने निकले ।
आज दुनिया पर भरोसा कैसा ? उनसे जो शर्तें लगाने निकले ।
प्यार क्या है नहीं जाना लेकिन । सारी दुनिया को बताने निकले ।
खुद तो रिश्ता ना निभाया कोई । याद औरों को दिलाने निकले ।
झूम कर निकले घटा के टुकडे । ज्यूँ धरा कोई सजाने निकले ।
सबके अपने दर्द दुख कितने हैं । आप दुख किसको सुनाने निकले ।
-------
न वो इकरार करता है न तो इन्कार करता है । मुझे कैसे यकीं आये, वो मुझसे प्यार करता है ।
फ़लक पे झूम जाती हैं घटाएं भी मुहब्बत से । मुहब्बत का वो मुझसे जब कभी इज़हार करता है ।
मिठास उसकी ज़ुबां में अब तलक देखी नहीं मैंने । वो जब मिलता है तो शब्दों की बस बौछार करता है ।
खलायें रोज देती हैं सदा बीते हुये कल को । यही माज़ी तो बस दिल पर हमेशा वार करता है ।
उड़ाये ख़्वाब सारे बाप के बेटे ने एबों में । नहीं जो बाप कर पाया वो बरखुरदार करता है ।
नहीं क्यों सीखता कुछ तजरुबों से अपने ये इन्सां । जो पहले कर चुका वो गल्तियां हर बार करता है ।
उसी परमात्मा ने तो रचा ये खेल सारा है । वही धरती की हर इक शै: का खुद सिंगार करता है ।
अभी तक जान पाया कौन है उसकी रज़ा का सच । नहीं इन्सान करता कुछ भी, सब करतार करता है ।
कहां है खो गई संवेदना, क्यों बढ़ गया लालच । मिलावट के बिना कोई नही व्यापार करता है ।
बडे बूढ़े अकेले हो गये हैं किस क़दर निर्मल । नहीं परवाह कुछ भी उनका ही परिवार करता है ।
इनका ब्लाग - वीर बहूटी । वीरांचल गाथा ।
जब इस ब्लाग के लिये पहली बार कुछ लिखने को विचार किया । तो मेरे मन में हमारी सीनियर महिला ब्लागर निर्मला कपिला जी का ख्याल आया । जिनकी गजलें और खास उनका बेबाक अन्दाज मुझे बेहद प्रभावित करता है । चीफ फार्मासिस्ट पद से रिटायर जीवन के अनुभवों से परिपक्व निर्मला जी हमारे बीच सम्मानित बुजुर्ग भी हैं ।
अतः मैं अपनी भावना अनुसार उनका स्वलिखित परिचय विवरण और उनकी कुछ गजलें साभार यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ । क्योंकि बुजुर्गों के सम्मान के साथ कोई शुरूआत करना मेरा अटल नियम है ।
निर्मला जी अपने बारे में कहती हैं -
अपने लिये कहने को कुछ नहीं मेरे पास । पंजाब मे एक छोटे से खूबसूरत शहर नंगल मे होश सम्भाला । तब से यहीं हूँ । B.B.M.B अस्पताल से चीफ फार्मासिस्ट रिटायर हूँ । अब लेखन को समर्पित हूँ । मेरी 3 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । 1 - सुबह से पहले ( कविता संग्रह ) 2 - वीरबहुटी ( कहानी संग्रह ) 3 - प्रेमसेतु ( कहानी संग्रह ) आजकल अपनी रूह के शहर इस ब्लाग पर अधिक रहती हूँ । आई थी । एक छोटी सी मुस्कान की तलाश में । मगर मिल गया । खुशियों का समंदर । कविता । कहानी । गज़ल
। मेरी मनपसंद विधायें हैं । पुस्तकें पढना और ब्लाग पर लिखना मेरा शौक है । इनका ब्लाग - वीर बहूटी । वीरांचल गाथा ।
-----
डर सा इक दिल मे उठाती गर्मियों की ये दुपहरी । घोर सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी ।
चिलचिलाती धूप सी रिश्तों में भी कुछ तल्खियाँ हैं । तन्हाई बढाती गर्मियों की ये दुपहरी ।
हाँ वही मजदूर जो डामर बिछाता है सडक पर । मुश्किलें उसकी बढाती गर्मिओं की ये दुपहरी ।
है बहुत मुश्किल बनाना दाल रोटी गर्मिओं मे । औरतों पर ज़ुल्म ढाती गर्मिओं की ये दुपहरी ।
आग का तांडव और हैं कहीं उठते बवंडर । यूँ लगे सब से हो रूठी गर्मिओं की ये दुपहरी ।
तैरना तालाब मे कैसे घडे पर पार जाना । याद बचपन की दिलाती गर्मियों की ये दुपहरी ।
रात तन्हा थी मगर कुछ ख्वाब तेरे आ गये थे । पर भला कैसे कटेगी गर्मियों की ये दुपहरी ।
बर्फ मे शहतूत रख,तरबूज खरबूजे खुमानी । मौसमी सौगात लाती गर्मियों की ये दुपहरी ।
चमचमाते रंग लिये चमका तपाशूँ आस्माँ पर । धूप की माला पिरोती गर्मिओं की ये दुपहरी ।
दिल पे लिखती नाम तेरा ज़िन्दगी की धूप जब । ज़ख्म दिल के है तपाती गर्मिओं की ये दुपहरी ।
जब से छत पर काग बोले आयेगा परदेश से वो । तब शज़र सी छाँव देती गर्मिओं की ये दुपहरी ।
याचना करती सी आँखें प्यार के लम्हें बुलाती । बिघ्न आकर डाल जाती गर्मिओं की ये दुपहरी ।
-----
दर्द आँखों से बहाने निकले । गम उसे अपने सुनाने निकले ।
रंज़ में हम से हुआ है ये भी । आशियां अपना जलाने निकले ।
गर्दिशें सब भूल भी जाऊँ पर । रोज रोने के बहाने निकले ।
आग पहले खुद लगायी जिसने । जो जलाया फिर , बुझाने निकले ।
आज दुनिया पर भरोसा कैसा ? उनसे जो शर्तें लगाने निकले ।
प्यार क्या है नहीं जाना लेकिन । सारी दुनिया को बताने निकले ।
खुद तो रिश्ता ना निभाया कोई । याद औरों को दिलाने निकले ।
झूम कर निकले घटा के टुकडे । ज्यूँ धरा कोई सजाने निकले ।
सबके अपने दर्द दुख कितने हैं । आप दुख किसको सुनाने निकले ।
-------
न वो इकरार करता है न तो इन्कार करता है । मुझे कैसे यकीं आये, वो मुझसे प्यार करता है ।
फ़लक पे झूम जाती हैं घटाएं भी मुहब्बत से । मुहब्बत का वो मुझसे जब कभी इज़हार करता है ।
मिठास उसकी ज़ुबां में अब तलक देखी नहीं मैंने । वो जब मिलता है तो शब्दों की बस बौछार करता है ।
खलायें रोज देती हैं सदा बीते हुये कल को । यही माज़ी तो बस दिल पर हमेशा वार करता है ।
उड़ाये ख़्वाब सारे बाप के बेटे ने एबों में । नहीं जो बाप कर पाया वो बरखुरदार करता है ।
नहीं क्यों सीखता कुछ तजरुबों से अपने ये इन्सां । जो पहले कर चुका वो गल्तियां हर बार करता है ।
उसी परमात्मा ने तो रचा ये खेल सारा है । वही धरती की हर इक शै: का खुद सिंगार करता है ।
अभी तक जान पाया कौन है उसकी रज़ा का सच । नहीं इन्सान करता कुछ भी, सब करतार करता है ।
कहां है खो गई संवेदना, क्यों बढ़ गया लालच । मिलावट के बिना कोई नही व्यापार करता है ।
बडे बूढ़े अकेले हो गये हैं किस क़दर निर्मल । नहीं परवाह कुछ भी उनका ही परिवार करता है ।
इनका ब्लाग - वीर बहूटी । वीरांचल गाथा ।
राजीव जी
जवाब देंहटाएंमैं भी यह सोच रही थी कि इस ब्लॉग पर एक एक कर वरिष्ठ व् कनिष्ठ महिला ब्लोगर्स का परिचय प्रस्तुत किया जाये .आपने प्रथम पोस्ट द्वारा ''निर्मला जी '' का परिचय देकर सराहनीय कार्य किया है .इस ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है .
निर्मला जी को समर्पित यह पोस्ट एक सुखद आश्चर्य लगी ...वे माननीय हैं ..
जवाब देंहटाएंbehtreen prstuti....
जवाब देंहटाएंराजीव जी आपकी पोस्ट भारतीय नारी पर एक नयी बहार लेकर आई है . आपकी हर प्रस्तुति जहाँ कहीं भी हो शानदार होती है और सबसे शानदार होते हैं वे फोटो जो आप हर पोस्ट पर लगाते हैं .निर्मला जी की ये शानदार प्रस्तुति यहाँ करने के लिए आप बधाई के पात्र हैं और हमारा आभार स्वीकार करें .
जवाब देंहटाएंbahut achhha....thanks for sharing...ek gauravsheel insaan ki baat karke aapne blog ko aur gauravmayi banaaya hai :)
जवाब देंहटाएंhttp://teri-galatfahmi.blogspot.com/
निर्मला जी पर इस जानकारी का आभार.
जवाब देंहटाएंbeautiful pics
जवाब देंहटाएंnice post
निर्मला जी का परिचय बहुत सुन्दरता से दिया है आपने! लाजवाब प्रस्तुती! बधाई!
जवाब देंहटाएंहाँ वही मजदूर जो डामर बिछाता है सडक पर । मुश्किलें उसकी बढाती गर्मिओं की ये दुपहरी ।
जवाब देंहटाएंहै बहुत मुश्किल बनाना दाल रोटी गर्मिओं मे । औरतों पर ज़ुल्म ढाती गर्मिओं की ये दुपहरी ।जन जीवन ,समर्पित नारी और श्रमिक श्रम को रूप आदार देती यह दुपहरी . .कृपया यहाँ भी पधारें -http://veerubhai1947.blogspot.com/ /
सोमवार, ८ अगस्त २०११ /
सोमवार, ८ अगस्त २०११
What the Yuck: Can PMS change your boob size?
बेहतरीन अशआर और अंदाज़ साथ साथ ,राजीव जी कश्यप जी बधाई सम्मानित वर्शिठ साहित्य कर्मी निर्मला जी की चुनिन्दा रचनाएं पध्वाइन आपने .. ..कृपया यहाँ भी आयें - http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_09.html
जवाब देंहटाएंTuesday, August 9, 2011
माहवारी से सम्बंधित आम समस्याएं और समाधान ...(.कृपया यहाँ भी पधारें -)
निर्मलाजी का लेखन बहुत प्रभावित करता है...... उनके बारे में पढ़कर, जानकर बहुत अच्छा लगा...आभार
जवाब देंहटाएंनिर्मला जी एक भावुक,सहृदय महिला हैं। ब्लॉग जगत में उनकी उपस्थिति मातृतुल्य है।
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की शुभ कामनाएँ।
जवाब देंहटाएंकल 23/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सार्थक पहल , सुन्दर प्रस्तुति. निर्मला जी को जानना सुखद है. शुभकामना.
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना....
जवाब देंहटाएंनिर्मला जी की बहुत खूबसूरत गज़ल पढवाई है ... उतना ही आनन्द आया जितना पहली बार पढ़ने में आया था ..आभार
जवाब देंहटाएं