http://ahsaskiparten.blogspot. com/2011/08/classification-of- working-women.html
घर के कामों को भी काम काज की श्रेणी में रखा जाए तो कामकाजी औरतों का क्लासिफ़िकेशन यह है -
घरकाजी और बाहरकाजी
दोनों की समस्याएं हैं।
इन दोनों की ही समस्याओं पर विचार विमर्श करना ज़रूरी है।
जो औरतें अपने बाल बच्चों को छोड़ कर बाहर जाकर कमा रही हैं तो वे ऐसा मजबूरी में ही कर रही होंगी। बहरहाल औरत जिस हाल में , जिस मक़ाम पर अपनी योग्यताओं से काम लेकर देश का भला कर रही है, तारीफ़ के लायक़ है।
उन्हें सुरक्षा और सद्प्रेरणा देना हमारी ज़िम्मेदारी है।
जिस समाज की बेहतरी मंज़ूर हो तो उस समाज की औरतों को बेहतर बना दीजिए,
कामकाजी औरतों का क्लासिफ़िकेशन The classification of working women
आम तौर पर कामाकाजी औरत उस औरत को माना जाता है जो कि मर्दों की तरह घर से बाहर जाकर कुछ काम करती है और कुछ रक़म कमाकर लाती है। जबकि देखा जाय तो घर के काम काज भी काम काज की ही श्रेणी में ही आते हैं।घर के कामों को भी काम काज की श्रेणी में रखा जाए तो कामकाजी औरतों का क्लासिफ़िकेशन यह है -
घरकाजी और बाहरकाजी
दोनों की समस्याएं हैं।
इन दोनों की ही समस्याओं पर विचार विमर्श करना ज़रूरी है।
जो औरतें अपने बाल बच्चों को छोड़ कर बाहर जाकर कमा रही हैं तो वे ऐसा मजबूरी में ही कर रही होंगी। बहरहाल औरत जिस हाल में , जिस मक़ाम पर अपनी योग्यताओं से काम लेकर देश का भला कर रही है, तारीफ़ के लायक़ है।
उन्हें सुरक्षा और सद्प्रेरणा देना हमारी ज़िम्मेदारी है।
जिस समाज की बेहतरी मंज़ूर हो तो उस समाज की औरतों को बेहतर बना दीजिए,
जिस समाज की बेहतरी मंज़ूर हो तो उस समाज की औरतों को बेहतर बना दीजिए, ऐसा कहना है डा. अनवर जमाल का।
जवाब देंहटाएंजो असहमत हो, वह आकर बहस कर ले, वर्ना सब के सब सहमत समझे जाएंगे।
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यह एक हल्की फुल्की पोस्ट है, जिसे बस यूं ही लिख दिया लेकिन जो भी लिखा है, वह एक हक़ीक़त के तौर पर ही लिखा है।
जो भी आपने लिखा है एक एक शब्द सही है और आपसे बहस कर क्या किसी को फंसना है क्या सही गलत के मसले में.किन्तु आप ये मत समझिएगा की ये मैंने आपकी पूरी पोस्ट के लिए कहे हैं ये शब्द मात्र इन पंक्तियों के लिए हैं जो मैंने यहाँ प्रस्तुत की हैं .
कितनी ही महिलाएं वो योग्यता रखती हैं जो देश के नव निर्माण में ज़रूरी है और इसलिए सभी मजबूरी वश नहीं बल्कि योग्य होने पर भी काम के लिए घर से बाहर आती हैं ऐसे में जो पुरुष घर से बाहर काम के योग्य नहीं हैं उनके लिए भी ये बात कही जा सकती है की वे आदमी होने की मजबूरी के चलते बाहर काम को विवश हैं उन्हें ऐसे में घर संभालना चाहिए.
न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार
anvar ji aur shalini ji dono ki baat apni jagah sahi hai.main samajhti hoon ki yahan bhi jindagi do vargon me bat ti hai jinka ek aadmi ki aay me gujara nahi hota arthaat gareeb tabke ki hain vo majboori vash aur jo achche khaate peete ghar se hain vo shonk se ya ye kahiye apne vajood ko saabit karne apni shikshaa ka sadupyog karne ke liye baahar kaam karti hain.sahi kaha hai agar behtar samaaj banana hai to striyon ko samman karna unki sthiti sudharna jaroori hai.
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक पोस्ट ,श्रम तो श्रम है ,घर में हो या बाहर !नारी घर की शान ,बाहर का ग्लेमर !अधरों की मुस्कान !सुख औ चैन की छाँव ! अभी नहीं करना आराम ,पूरा करना है ये काम ,
जवाब देंहटाएंलगे रहो भई सुबहो शाम ....जय हो अन्ना भाई ,अन्ना भाभी !
सोमवार, २९ अगस्त २०११
क्या यही है संसद की सर्वोच्चता ?
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