भारतीय नारी ब्लाग’ ने अपने अगस्त माह के लिये जिस विषय का चयन किया है वह है ‘बहन’। यह महीना भाई बहिन के प्रेम के प्रतीक पर्व रक्षाबंधन का महीना है सो इस विषय पर एक ऐसे भाई बहन के प्रेम की कहानी याद करने को जी चाहा जिसकी जड़ें उस पंजाब की जमीन से जुडी हैं जो जमीन युगल प्रेमियों की दास्तान के लिये ही जानी जाती है , फिल्मकारों , लेखकों, कवियों के लिये लैला मजनू , सोहनी महीवाल जैसी लोकप्रिय कथायें हमेशा ताजगी भरा अहसास दिलाती हैं । यह प्रेम कथाये हर युग के प्रेमी युगलों के लिये प्रेरणास्प्रद स्त्रोत रही हैं। परन्तु आज इस क्षेत्र से जुड़ी एक ऐसी प्रेम कहानी की चर्चा कर रहे हैं जिसमें प्रेमी युगल का प्रेमालाप नहीं अपितु एक भाई का अपनी बहिन के प्रति प्रदर्शित प्रेम का समर्पण प्रदर्शित होता है।
यह घटना है वर्तमान पाकिस्तान और तब के हिन्दुस्तानी प्रांत पंजाब के गुजरांवाला क्षेत्र की जहाँ एक साहूकार परिवार रहता था । इस परिवार में चार बच्चे थे तीन भाई थे और एक बहन सबसे छोटे बच्चे का नाम था ‘नंद’ और उसकी बडी बहिन जिसका नाम था ‘हाको’, हाको और नंद के तीन भाइयों में से दो मर गये । बालक ‘नंद’ जब छह महीने का था तब उसकी माँ साथ छोडकर चली गयी। उसकी नानी ने उस बालक को अपनी गोद में डाल लिया और साधुओ के एक डेरे में माथा टेकने आने वाली एक औरत के दूध पर पाल लिया।
समय के साथ साथ नंद उसका बड़ा भाई तथा बहिन सयाने हुये लेकिन दुर्भाग्य ने यहाँ भी उसका पीछा नहीं छोडा और उनका भाई गोपाल सिंह घर गृहस्थी छोडकर शराबी हो गया। अब ‘नंद’ का सारा स्नेह अपनी बहन ‘हाको’ के प्रति हो गया। बहन बड़ी थी, बेहद खूबसूरत थी । जब उसका ब्याह हुआ तो अपने पति बेताल सिंह को देखकर वह ठगी सी रह गयी । उस बेहद खूबसूरत लडकी का पति बेताल सिंह बेहद कुरूप था। अंततः उस बालिका ने यह जिद पकड़ ली कि वह बेताल सिंह से कोई संबंध नहीं रखेगी। गौने में ससुराल जाने की जगह उसने अपने मायके में एक तहखाना खुदवा लिया और अपने चारों ओर एक अनदेखी दीवार खिंचवा ली । पंजाब के शब्दों में कहे तो अपने चारों ओर ‘चालीसा खींच लिया’ और गेरूआ बाना धारण कर वैराग्य की राह पकड़ ली। वह रात को कच्चे चने पानी में भिगो देती और दिन में खा लेती । नंद की बहिन ‘हाको’ ने अपने मामा मामी से कहकर अमृतसर में कहीं नंद की सगाई कर दी परन्तु नंद ने वह सगाई छोड दी और बैरागी होकर कवितायें लिखने लगा। वास्तव में अपनी बहिन को इस हालत में देखकर ‘नंद’ ने बहन की इस स्थिति के लिये स्वयं को ही उत्तरदायी मानते हुये स्वयं भी गेरूवे वस्त्र पहन लिये।
पर हाय रे दुर्भाग्य नंद की बहन बहुत दिन जीवित नहीं रही उसकी मृत्यु के बाद ‘नंद’ को लगा कि संसार से सच्चा वैराग्य उस अब हुआ हैं। अपने साहूकार नाना सरदार अमर सिंह सचदेव से मिली हुयी भारी जायजाद को त्याग कर वह गुजरांवाला के संत दयाल जी के डेरे में जा बैठा। यहाँ पहुँचकर संस्कृत सीखी, ब्रजभाषा सीखी, हिकमत सीखी और इस डेरे में ‘बालका साधु’ कहलाने लगा। संत दयाल जी के डेरे पर अनेक श्रद्धालुजन आया करते थे उन्ही में से एक थी गांव मांगा की राज बीबी। राज बीबी का जिससे ब्याह हुआ वह अचानक गायब हुआ फिर कभी उसकी कोई खबर नहीं आयी। उसकी भाभी भी विधवा थी दोनो अकेली थीं सो साथ साथ रहने लगी थीं। राज बीवी वहीं के एक छोटे से स्कूल में पढाने लगी । अपने स्कूली बच्चों के साथ दयाल जी के डेरे में माथा टेकने आती थी ।
दयालजी बालका साधु से उनकी कविताएँ सुना करते थे। एक दिन दयालजी ने बालका साधु से सारे भक्तो को कविता सुनाने के लिये कहा और आँखें बंद कर तन्मयता से कविता सुनने लगे। जब दयाल जी ने आँखे खोली तो देखा कि बालका साधु की आंखे राज बीबी की तरफ भटक रही हैं । उन्होंने राजबीबी की ब्यथा पहले से ही सुन रखी थी सो नंद केा बुलाकर उससे कहा:-‘नंद बेटा यह....संन्यास... आश्रम....तेरे लिये नहीं है। यह भगवे वस्त्र त्याग दो और जाकर गृहस्थ आश्रम में कदम रखो।’
बालका साधु ने दयाल जी का आदेश मानकर जब गृहस्थ आश्रम स्वीकार कर लिया और अपना नया नाम करतार सिंह रख लिया। वे कविता लिखते थे सो एक उपनाम भी रख लिया पीयूष! यही राज बीबी अमृता प्रीतम जी की माँ बनी और नंद साधु उनके पिता।
अमृता प्रीतम के जीवन से संबंधित कई महत्पपूर्ण पहलू अभी बाकी हैं। उनके जन्म से जुड़ी कुछ और रोचक तथ्यों का ब्यौरा प्रस्तुत करूँगा अगली पोस्ट में ।
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सोहनी-महीवाल की भूमि पर भाई-बहन के प्रेम की अनोखी मिसाल !!
ashok ji bahut bhavpoorn likh rahe hain aap.amrita ji ke bare me jo jankari aap de rahe hain vah ab tak hame nahi pata thi aur aaj aapke aalekh padhkar ham eapna blog jagat se judna sarthak prateet ho raha hai. aabhar aise hi nirantarat banaye rakhiye.
जवाब देंहटाएंashok ji bahut marmik v bhai bahan ke sachche pyar ki prateek yah katha aapne hamare sath sajha ki -aapka bahut bahut aabhar
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