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रविवार, 21 अगस्त 2011

आधी आबादी की जनभागीदारी के मायने क्या हैं ? भाग:-2




जनसंख्या के आंकडे इस बात के गवाह हैं कि जागरूकता के अनेक प्रयासों के बावजूद स़्त्री पुरूष का अनुपात लगातार घट रहा है और स्त्रियां लगातार और अधिक शोषित होती जा रही हैं । महिलाओं की स्थिति को मजबूत करने के लिये सरकार को कानून तक बनाने पड रहे हैं । अभी हाल में केन्द्र सरकार ने पंचायती राज में महिला आरक्षण पचास प्रतिशत करने का निर्णय लिया है।
इस मामले में उत्तर प्रदेश की स्थिति समूचे देश की तुलना में अच्छी कही जायेगी क्योंकि यहाँ लोक सेवाओं में महिलाओं के लिये तीस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण पहले से अनुमन्य है। प्रदेश में जनसेवा में महिलाओं की भागी दारी के आंकडों पर नजर दौडाने पर उत्साहजनक स्थिति सामने आती है



क्रमांक जनप्रतिनिधि का पद कुल पद कार्यरत महिलाऐं प्रतिशत
1 सदस्य ग्राम पंचायत------------------------------------------ 38.56
2 ग्राम प्रधान------------------------------------------------- 38.80
3 सदस्य क्षेत्र पंचायत------------------------------------------- 38.46
4 प्रमुख क्षेत्र पंचायत------------------------------------------- 50.49
5 सदस्य जिला पंचायत-----------------------------------------
41.27
6 अध्यक्ष जिला पंचायत----------------------------------------- 59.72

यकीनन इन आंकडों पर गौर करने पर यह बात निर्विवाद रूप से सामने आती है कि पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढी है। ‘सहभागी शिक्षण केन्द्र’ संगठन ने उत्तर प्रदेश की पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी पर विस्तृत अध्ययन करते हुये यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रदेश की महिलाओं में घर से बाहर आकर काम करने का आत्मविश्वास तो बढा ही है इसके साथ ही उनमें सत्ता की भूख भी बढ़ी है।

सत्ता में भागीदारी की भूख ने प्रदेश में अनेक अवसरों पर शार्टकट अपनाती हुयी महिलाओं के साथ घटित बहुचर्चित घटनाओं ने राजनीति में अनेक आपराधिक पटकथाओं की रूपरेखा भी तैयार की है परन्तु ये दुर्घटनायें महिलाओं की सफलता की डगर में रूकावटें डाल पाने में सफल होती नहीं प्रतीत होती हैं। अनेक विरोधाभासों के बाद भी आज परिवार के मुखिया की सोच इस लिहाज से बदली हुयी दिखती है कि जो अब तक उन्हे घर के भीतर ही रहने की सीख दिया करते थे अब वे ही उन्हे घर की देहरी से बाहर कदम निकालने की सीख दे रहे हैं

राजनेताओं की पंचायतों में भागीदारी का असल उद्देश्य रसूख बढाना और मनरेगा के मद में आने वाला धन भी हो सकता है परन्तु यह तथ्य स्वयं में प्रमाणित है कि उपरोक्त आंकडों मे समाहित निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों में उत्साह जागा है । उत्तर प्रदेश के संदर्भ में ‘सहभागी शिक्षण केन्द्र’ संगठन की शालिनी ने पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी के विस्तृत अध्ययन में यह भी पाया है कि इन महिला जन प्रतिनिधियों में लगभग साठ प्रतिशत का पूर्व में कोई राजनैतिक आधार नही रहा है। इस आधार पर यह तथ्य निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि पुराने राजनेताओं द्धारा अपनी धमक कायम रखने के लिये या आरक्षित सीट पर वजूद बनाने की चाहत में हीे सही, उत्तर प्रदेश की पंचायतों में आम महिला की भागीदारी 50 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के पहले ही धमकदार है। बस अब केवल उन्हें अपनी जुबान और हाथ देने भर की ही जरूरत है।

7 टिप्‍पणियां:

  1. अनेक विरोधाभासों के बाद भी आज परिवार के मुखिया की सोच इस लिहाज से बदली हुयी दिखती है कि जो अब तक उन्हे घर के भीतर ही रहने की सीख दिया करते थे अब वे ही उन्हे घर की देहरी से बाहर कदम निकालने की सीख दे रहे हैं ..
    ab ghar mein dubak kar kuch hasil nahi hone wala..bahut sisak lee ghar mein....
    blog padhkar achha laga ..dhanyvad

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  2. shaadaar hai ye post aapka...achhi koshish

    http://teri-galatfahmi.blogspot.com/

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  3. आपको श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये .सुन्दर आलेख .सार्थक प्रस्तुति .आभार

    ब्लॉग पहेली न.1 के विजेता हैं श्री हंसराज ''सुज्ञ ' जी .

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  4. पर अशोक जी ये आंकड़े केवल दिखावा मात्र हैं आज भी स्त्रियों के हाथ में बागडोर का प्रयोग उनके घर के पुरुषों के हाथ में ही है वह तो मजबूरी है आरक्षण में उनके लिए सीट देने की तो उन्हें आगे किया जा रहा हहै वर्ना उनके तो हस्ताक्षर तक नहीं होते वह भी उनके पति ही करते हैं वे ही मीटिंग करते हैं और क्या क्या करते हैं ये सभी जानते हैं बहुत सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.आपको कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें

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  5. Shalini bahan
    mane aapne aalekh ki antim pankti me isi sawaal ka jawaab likha hai jara gaur kare
    बस अब केवल उह अपनी जुबान और हाथ देने भर क ह जरत है।

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