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मंगलवार, 26 जुलाई 2011

चौखट-प्रदीप कुमार साहनी


                                    चौखट

चौखट के भीतर का जीवन जीने को मजबूर थी जो,
सहमी हुई सी, दर से दबकर जीने को मजबूर थी जो |

पहले पापा के इज्ज़त को चौखट भीतर बंद रहना,
शादी बाद सासरे में चौखट का उसपे पाबंद रहना |

सपना कोई देख लेना उसके लिए गुनाह होता था,
जीवन जीने का लक्ष्य उसका बच्चे और निकाह होता था |

वो अबला अब बलशाली बन चौखट का दंभ तोड़ चुकी है,
वो नारी स्वयं अपने पक्ष में हवा के रुख को मोड़ चुकी है |

नैनों में चाहत भी होती लक्ष्य भी इनके अपने होते,
चौखट और वो चाहरदीवारी अब तो बस वे सपने होते |

कोई काम नहीं धरा में इनके बस की बात नहीं जो,
कोई बात नहीं रहा अब इनके हक की बात नहीं जो |

नीति से राजनीति तक हर क्षेत्र में इनकी साझेदारी है,
देश रक्षा से रॉकेट साईंस तक हर चीज में भागेदारी है |

चौखट के भीतर-बाहर, हर तरफ सँभाले रखा है,
अबल से सबला बनकर भी मर्यादा भी सँभाले रखा है |

हर जिम्मा अब अपना इनको खुब निभाना आता है,
घर, गाड़ी या देश हो इनको सब चलाना आता है |

पुरुषों से कंधा हैं मिलाती देश की नारी नहीं है कम,
इस आँधी को बाँध के रखले,चौखट में नहीं वो दम |


7 टिप्‍पणियां:

  1. इस आँधी को बाँध के रखले,चौखट में नहीं वो दम |
    प्रदीप जी -बहुत सार्थक बातें कही है आपने .मुझे ख़ुशी है की आज के युवा इतनी अच्छी सोच रखते हैं .इतनी सार्थक प्रस्तुति के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद .

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  2. भाई साहब ! हवाई जहाज उड़ाने से भी बड़ा काम है एक घर चलाना । हमारी वाइफ़ मोहतरमा जब कभी बीमार हो जाती हैं तो भी बच्चों को तैयार करके टाइम पे स्कूल भेजती हैं लेकिन एक बार जब वे हिल भी न पा रही थीं तो बच्चों को तैयार मुझे करना पड़ा और उनकी ड्रेसेज़ भी मुझे धोनी पड़ गई । एक दिन में ही आँखों के सामने धुआँ सा हो गया ।
    घर के काम बड़े मुश्किल काम हैं और आज भी चौखट के अंदर औरतें इन्हें अंजाम दे रही हैं ।

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  3. अनवर जी आप की बात इस मायने में तो ठीक है कि महिलाएं घर के भीतर जो काम करती है उसका महत्त्व बहुत कम पुरुष जानते व् मानते हैं लेकिन स्त्री को यह अधिकार तो मिलना ही चाहिए कि वो अपनी मर्जी से यह चुने कि उसे घर के काम करने हैं या अन्य क्षेत्रों में अपनी प्रतिभाका लोहा मनवाना है .

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  4. आदरणीया शिखा जी ! मैं आप से सहमत हूँ । मेरे कहने का तात्पर्य केवल यह है कि घर ही वह जगह है जहाँ राष्ट्र के नागरिकों के चरित्र का निर्माण होता । औरत चाहे इंदिरा गाँधी ही क्यों न बन जाए लेकिन बच्चों को संस्कार आया और नौकर नहीं दे सकते । तब बच्चे संजय गाँधी बन जाते हैं और औरत की सारी उपलब्धियाँ ख़ाक में मिल जाती हैं ।
    बच्चे पैदा करना और उन्हें ढंग से पालना दुनिया का सबसे अहम और सबसे बड़ा काम है , जिसे केवल घर में रह कर ही अंजाम दिया जा सकता है और फिर भी कोई घर से बाहर निकलती है तो अपने बच्चों को कमज़ोर ही करती है ।

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  5. प्रदीप जी बहुत सुन्दर भावों से भरी है आपकी कविता और आपके भाव जितने सराहे जाएँ कम हैं .पर जैसे कि शिखा जी और अनवर जी में बहस छिड़ी है उसे देखते हुए और मेरे अपने विचार में भी घर के काम करना भी कोई आसन काम नहीं है और जैसे कि आज सभी महिलाएं इस क्षेत्र में हाथ आजमाने निकल पड़ी हैं वह भी सही नहीं है क्योंकि जब घर और बाहर की बात आयेगी तो नारी पर घर की जिम्मेदारी को ही प्रमुखता दी जाएगी और ये सही भी है .और यदि बाहर की बात की जाये तो कुछ नारी होती हैं इस विलक्षण प्रतिभा की कि वे दोनों जगह की जिम्मेदारी बखूबी निभाती हैं और कुछ को इसकी आवश्यकता होती भी है तब चौखट का बंधन उन पर नहीं सही है.

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  6. यही तो मैं इस कविता के माध्यम से कहना चाहता था | आज की नारी इतनी सुदृढ़ है की घर और बाहर एक साथ संभाल सके | ये मैंने कही और से नहीं बल्कि अपने ही घर में देखा है | घर संभालना और बाहर भी देखना, दोनों कार्य अपने आप में उतना ही महत्वपूर्ण है और मुश्किल भी | पर सबसे ख़ुशी की बात यह है कि आज वो पहले कि तरह चौखट का दंभ नहीं रहा |

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  7. शिखा जी में आपकी बात से पूरी तरह सहमत हू.ये अधिकार नारी का है की वो क्या चुनना चाहती है.घर चलाना आसान नहीं पर ये सही है पर ये कठिन काम जबजस्स्ती नारी पर नहीं थोपा जाना चाहिए.बहुत सारे उदाहरन है जहा नारी हर काम बेहतर ढंग से कर रही है..

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