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शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

सीख माँ की काम आये--

गर गलत घट-ख्याल आये,
रुत   सुहानी   बरगलाए 
कुछ   कचोटे  काट  खाए,
रहनुमा   भी   भटक  जाए
वक्त   न   बीते   बिताये,
काम हरि का नाम आये- 
सीख माँ की  काम आये--

हो कभी अवसाद में जो,
या कभी उन्माद  में  हो
सामने  या  बाद  में  हो,
कर्म सब मरजाद में हो
शर्म  हर औलाद  में हो,
नाम कुल का न डुबाये-
काम हरि का नाम आये- 
सीख माँ  की  काम आये--

कोख में  नौ  माह ढोई,
दूध का  न मोल  कोई,
रात भर जग-जग के सोई,
कष्ट  में  आँखे   भिगोई
सदगुणों  के  बीज  बोई
पौध कुम्हलाने  न  पाए
काम हरि का नाम आये- 
सीख माँ  की  काम आये--

4 टिप्‍पणियां:

  1. माँ की महिमा को विश्लेषित करती बेहद उम्दा प्रस्तुति .आभार

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  2. सीख माँ की काम आये

    बहुत सुन्दर आग्रह...बहुत सुन्दर कविता...

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  3. बहुत सुंदर ||
    माँ हस्ती ही ऐसी होती है ||

    "माँ सबूत हैं मोहब्बत के अंधी होने का
    हमें देखने से पहले भी ,
    माँ को हमसे प्यार ज़ो हुआ करता हैं |"

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