कुछ कचोटे काट खाए,
रहनुमा भी भटक जाए
वक्त न बीते बिताये,
काम हरि का नाम आये-
सीख माँ की काम आये--
हो कभी अवसाद में जो,
या कभी उन्माद में हो
सामने या बाद में हो,
कर्म सब मरजाद में हो
शर्म हर औलाद में हो,
नाम कुल का न डुबाये-
काम हरि का नाम आये-
सीख माँ की काम आये--
कोख में नौ माह ढोई,
दूध का न मोल कोई,
रात भर जग-जग के सोई,
कष्ट में आँखे भिगोई
सदगुणों के बीज बोई
पौध कुम्हलाने न पाए
काम हरि का नाम आये-
सीख माँ की काम आये--
सीख माँ की काम आये--
माँ की महिमा को विश्लेषित करती बेहद उम्दा प्रस्तुति .आभार
जवाब देंहटाएंसीख माँ की काम आये
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आग्रह...बहुत सुन्दर कविता...
bahut uttam prastuti.hari aur ma ek hi to hai.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ||
जवाब देंहटाएंमाँ हस्ती ही ऐसी होती है ||
"माँ सबूत हैं मोहब्बत के अंधी होने का
हमें देखने से पहले भी ,
माँ को हमसे प्यार ज़ो हुआ करता हैं |"