शनिवार, 30 अप्रैल 2016

ये मेआर

ये मेआर...

बेटियो से
मधु मिश्रित ध्वनि से पुछा

कहाँ से लाती हो, 
ये मेआर
नाशातो की सहर            
हुनरमंद तह.जीब,और तांजीम
सदाकत,शिद्दतो की मेआर,
जी..
मैने हँस कर कहाँ
मेरी माँ ने संवारा..
उसी ने बनाया है
स्वयं को कस कर
हर पलक्षिण में

इक नई कलेवर के लिए

शनैः शनैः पोशाक बदल कर

औरो को नहीं
बस..
खुदी को सवांरा...
इल्म इस बात की
कमर्जफ हम नहीं

हमी से जमाना है...
                © पम्मी 

7 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 01 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

Pammi singh'tripti' ने कहा…

लिंंक में शामिल करने के लिए आभार

Shikha Kaushik ने कहा…

WELCOME PAMMI JI ON THIS BLOG .VERY NICE BLOG POST .THANKS TO SHARE WITH US .

Pammi singh'tripti' ने कहा…

Ji, dhanywad..

बेनामी ने कहा…

वाह वाह

Pammi singh'tripti' ने कहा…

Ji, dhanyawad..

Unknown ने कहा…

कल और ख़ुदा था तो, आज और खु़दा है।
इस राहे-सियासत के, मेआर जुदा है।।

#पुष्कर 'गुप्तेश्वर'