सोमवार, 17 मार्च 2014

कैसे रंगे बनवारी... डा श्याम गुप्त.....























सोचि सोचि राधे हारी, कैसे रंगे बनवारी ,
कोइ तौ न रंगु चढ़े, नीले अंग वारे हैं |
बैजनी वैजन्तीमाल, पीत पट कटि डार,
ओठ लाल लाल श्याम, नैन रतनारे हैं |
हरे बांस वंसी हाथ, हाथन भरे गुलाल,
प्रेम रंग सनो कान्ह, केस कज़रारे हैं |
केसर अबीर रोली, रच्यो है विशाल भाल ,
रंग रंगीलो तापै,  मोर मुकुट धारेहैं |


चाहें कौउ रंग डारौ, चढिहै न लालजू पै,
क्यों न चढ़े रंग, लाल, राधा रंग हारौ है |
राधे कहौ नील तनु, चाहें स्याम घन सखि ,
तन कौ है कारौ पर मन कौ न कारौ है |
जन कौ दुलारौ कहौ, सखियन  प्यारौ कहौ ,
तन कौ रंगीलौ कहौ, मन उजियारौ है |
ऐरी सखि ! जियरा के प्रीतिरंग ढारि देउ,
श्याम' रंग न्यारौ चढे, सांवरो नियारो है ||



                                                               ---- चित्र गूगल साभार ..



5 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

happy holi

Shikha Kaushik ने कहा…

bahut sundar post .holi parv kee hardik shubhkamnayen .

Shikha Kaushik ने कहा…

bahut sundar post .holi parv kee hardik shubhkamnayen .

Shikha Kaushik ने कहा…

bahut sundar post .holi parv kee hardik shubhkamnayen .

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद शिखाजी व साबन कुमार ...