सोमवार, 27 मई 2013

क्योंकि मैं हूँ.... नारी

शायद ,मैं फेल हो गई!!
जिंदगी के हर इम्तिहान में,
कभी कभी यह सोचकर ,
मन बहुत विचलित हुआ
क्योंकि एक शिक्षित,जागरूक महिला 
होने के बावजूद, हरेक को 
मैं अपने अनुरूप नही ढाल पाई,
जैसे एक घरेलू,अशिक्षित महिला ने कर दिखाया
मैं किसी अपने पर हुकुम तो नही चला पाई
पर मुझे खुशी है कि 
मैं अपने को उनके अनरूप ढाल पाई
मैने तय किया, 
हर गम का ,खुशी का सफ़र
उन सब अपनों के साथ
लिए हाथों में अपनों का हाथ
कभी बेटी,कभी बहन,
कभी पत्नी,कभी माँ,
कभी एक दोस्त बनकर,
कभी पास,कभी दूर रहकर
फिर क्या फ़र्क पड़ता है अगर 
मैं किसी के लिए फेल हो गई
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7 टिप्‍पणियां:

डा श्याम गुप्त ने कहा…

फेल पास तो सबके साथ लगा रहता है|
बस सोचें अपना यह मन क्या कहता है |

राहुल ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
ashokkhachar56@gmail.com ने कहा…

are kya bat hai bhot khub

देवदत्त प्रसून ने कहा…

नारी आधा जगत है, युग की आधी शक्ति |
नारी का सम्मान हो, ढूढ़ें ऐसी युक्ति ||

Shikha Kaushik ने कहा…

bahut badhiya prastuti .badhai

punita singh ने कहा…

saritajee
yahee to baat hai ki naare apane ko kabhe pass nahe maanate, jabaki uasaka sthan bhagavaan se bhe ucha maanaa gayaa hai.badhai

Shalini kaushik ने कहा…

bahut sundar bhavabhivyakti sarita ji .aabhar