शुक्रवार, 9 मार्च 2012

2- लिंक और मेरी टिप्पणी


संजय की दृष्टी सजग, जात्य-जगत जा जाग ।
जीवन में जागे  नहीं, लगे पिता पर दाग ।
लगे पिता पर दाग, पालिए सकल भवानी।
भ्रूण-हत्या आघात, पाय न पातक पानी ।
निर्भय जीवन सौंप, बचाओ पावन सृष्टी ।
कहीं होय न लोप, दिखाती संजय दृष्टी ।।

प्रतियोगी बिलकुल नहीं, हैं प्रतिपूरक जान ।
इक दूजे की मदद से, दुनिया बने महान ।
दुनिया बने महान, सही आशा-प्रत्याशा ।
पुत्री बने महान, बाँटता पिता बताशा ।
बच्चों के प्रतिमोह, किसे ममता ना होगी ।
पति-पत्नी माँ-बाप, नहीं कोई प्रतियोगी ।। 

3 टिप्‍पणियां:

Mamta Bajpai ने कहा…

बहुत सुन्दर भावनाएं ....होली की शुभकामनाएं

Shikha Kaushik ने कहा…

sarthak prastuti .aabhar

डा श्याम गुप्त ने कहा…

सुन्दर भाव....हां पहली कुन्डलिया में कुछ सम्बद्ध शब्द प्रतीत होते हैं...