गुरुवार, 17 नवंबर 2011

माननीय राष्ट्रपति भारतीय गणराज्य से स्व0 अमृता प्रीतम जी की विरासत को बचाने के लिये किये जा रहे अनुरोध अनुष्ठान



हिन्दू संस्कृति में जब कोई अनुष्ठान किया जाता है तो सर्वपृथम अनुष्ठान स्थल पर देवताओं का आह्वाहन करते हैं । इस अवसर पर देवताओं के साथ असुर आत्माओं का भी आह्वाहन करने की परंपरा रही है । कहा जाता है कि यदि इन्हें आंमंत्रण न दिया जाय तो ये स्वयं बिना बुलाये आकर अनुष्ठाान में बिध्न डालने आ जाती है । सम्मान पूर्वक पहले हे बुला लेने की दशा में अनुष्ठान में बिध्न की संभावना समाप्त हो जाती है। आज मुझे यह परंपरा इसलिये याद आयी क्योंकि माननीय राष्ट्रपति भारतीय गणराज्य से स्व0 अमृता प्रीतम जी की विरासत को बचाने के लिये किये जा रहे अनुरोध अनुष्ठान में ऐसे विध्नकारी तत्वो की आवाजाही लगातार बनी हुयी है ।
कुछ बानगी पेश हैंः.


********* ने कहा३
हां अशोक जी बिल्कुल मूर्खतापूर्ण मुहिम है ण्ण्ण्इस प्रकार तो सारा देश ही साहित्यिक धरोहर बन जायगाण्ण्ण्ण्ण्किसी साहित्य्कार की क्रितियां धरोहर हुआ करती हैंण्ण्ण्उनके मकान नहीं ण्ण्ण्
.********** ने कहा३ .
.यह उसी प्रकार की मूर्खता है जो राजघाटध् शक्ति स्थल पर सभी प्रधानमन्त्रियों के स्थल बनाकर की जारही हैण्ण्ण्इस प्रकार सारी दिल्ली कब्र्गाह बन जायगीण्ण्ण्ण्बन्द कीजिये ये व्यर्थ की चौंचले बाजी ण्ण्ण्ण्

********** ने कहा३
अशोक शुक्ला जी / क्या सोच कर आपने ये नेक सलाह दे डाली. मैंने केवल नारी.पक्ष को रखा तो दूध ही बना डाला और आपको बताऊँ तथाकथित पुरुष जो होते हैं ऐसे बिल्ला होते हैं जिनपर हमेशा कीड़े.मकोड़े ए मक्खियाँ ही भिनभिनाया करते हैंण- आप भी नारी.विमर्श करके अपनी रोटी ही तो सेंकने पर लगे हुए हैंण. जरा अपने अन्दर झाँका भी कीजिय
********** ने कहा३
. यह ओछी मनोव्रित्ति आज के व्यापारी साहित्य्कार की है------ण्ण्ण्ण्क्या प्रेम्चन्द या अम्रता का मकान नष्त होजाने से समाज में उनकी मौजूदगी उनका काल्जयी साहित्य नष्ट होजायगा ----

...छोडये ये व्यर्थ की बातें -----हित्य रचिये-----ण्ण्ण्कहिये -----ण्ण्ण्छ----पवाइये----ण्ण्ण्ण्ण्---बिना किसी भी लाभ की सोच के-----ण्ण्ण्

********** ने कहा३
...वैसे ये अम्रता..इमरोज़ है कौन ?

********** ने कहा३
हर चीज़ नाशवान है ! ३अपने वश में है उतना तो हम अफ़सोस करें ए बाकी चिंता परमात्मा पर छोड़दें तो बेहतर नहीं होगा घ् माफ़ करें ए अगर मैं आपकी भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा हूं ३
३और अब जब मकान ढह ही चुका है ए वहां किसी प्रयास से फिर वहां वैसा ही मकान बना भी दिया जाए ; जिसकी संभावना है भी नहीं द्ध तो भी वह बात तो बननी नहीं न !
********** ने कहा३
सच भी है . अपने आप का पता और कोई नहीं होता ए अपना आप ही होता है------बाकी नश्वर चीज़ों में किसी का अस्तित्व तलाशना ए और ख़ुद को तबाह करके तलाशना सही नहीं ।
आपसे अपनत्व महसूस होने के कारण कह रहा हूं ३
ख़ुद को संभालें ३
********** ने कहा३
लेकिन इमरोज़ ने जो फैसला लिया ए वो सोच समझ कर ही लिया होगा ण्
इस नश्वर संसार में किसी भी वस्तु से मोह नहीं पालना चाहिए ए यह गीता का उपदेश है ण्
यादें दिल में रहेंगी ..लेकिन उस मकां की नहीं ए उन पलों की जो एक साथ गुजारे गए ण्
आपकी कोमल भावनाओं को ठेस न पहुंचेए यही कामना है

********** ने कहा३

क्या कवि. साहित्यकार ण्ण्ण्नामए याद रखे जाने के लिये लिखते हैंण्ण्ण्क्या कभी किसी साहित्य्कार ने स्वयं यह कहा घ्घ्घ्घ्घ्
********** ने कहा३
महज़ ईंट पत्थर गारे से घर नहीं बनता और उनके मिट जाने से मिटता भी नहींण्ण्ण्घर घरवालों से बनता हैण्ण्ण्इमरोज़ जी ने क्या खूब कहा हैरू.
********** ने कहा३
आप भी नारी.विमर्श करके अपनी रोटी ही तो सेंकने पर लगे हुए हैं.
********** ने कहा३

जिस्म गयाए जान गयी एरूह गयी
अब ईंट. पत्थरों को समेटने से क्या होगा
मै तो फ़िज़ा के जर्रे जर्रे मे बिखर गयी
अब मिट्टी को खंगालने से क्या होगा
********** ने कहा३
साहित्यकार और लेखको ने आज तक समाज का उत्थान कम किया है और पतन ज़्यादा | अस्तु इनकी संख्या भी आजकल काफ़ी बढ़ गयी है हर एक कस्बे मे दस बारह धरोहर बन जाएँगी |
********** ने कहा३
राष्ट्रपति को अपना काम करने दो बेटा ऐसे फ़िजूल मे अगर उसको उलझाओगे तो महत्वपूर्ण कार्य अटक जाएँगे |
********** ने कहा३
क्या राष्ट्रपति के पास कोई काम नही होता ? इस विशाल भारत मे अनेको लेखिकाए और लेखक हुए है और उनके मूरीद भी बड़ी संख्या मे है तो क्या राष्ट्रपति पूरे पाँच साल इन्ही स्मारको के पीछे भागता रहे ?
********** ने कहा३
पता नही क्या हो गया है आजकल के लड़के लड़कियो को चार आखर क्या पढ़ लेते है नाम के लिए कुछ ना कुछ शगूफा करते ही रहते है |
********** ने कहा३
बेटी, कोई ढंग का काम करो |बाबा का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है | अमृता प्रीतम को छोड़ दो उसके आशिको के भरोसे |

तमाम विध्न बाधाओ के बाद भी अनेक साहित्य प्रेमी इस मुहिम से जुडे है माननीय राष्ट्रपति के कार्यालय से मुझे एक मेल आया है जिसमे लिखा है कि स्वयं राष्ट्रपति सचिवालय इस प्रकरण को देख रहा है । मेरा विश्वाश है कि हमें शीध्र ही कुछ न कुछ सार्थक परिणाम मिलेंगें। कृपया अपना उत्साह बनाये रखें ।



यह है हमारी मुहिम
1ः-स्व0 अमृता प्रीतम जी के निवास स्थान 25 हौज खास के परिसर को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अधिग्रहीत करते हुये उस स्थान पर स्व0 अमृता प्रीतम जी की यादो से जुडा एक संग्रहालय बनाया जाय।


2ः-यदि किन्ही कारणों से उपरोक्तानुसार प्रार्थित कार्यवाही अमल में नहीं लायी जा सकती तो कम से कम यह अवश्य सुनिश्चित किया जाय कि संदर्भित स्थल 25 हौज खास पर बनने वाले इस नये बहुमंजिला भवन का नाम स्व0 अमृता प्रीतम के नाम पर रखते हुये कमसे कम इसके एक तल को स्व0 अमृता प्रीतम के स्मारक के रूप में अवश्य संरक्षित किया जाय।
कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें
भवदीय

डा0अशोक कुमार शुक्ला !

6 टिप्‍पणियां:

Shikha Kaushik ने कहा…

YOUR VIEW IS VERY RIGHT.I JUST WANT TO SAY -''JAI HO ''

रविकर ने कहा…

बहुत सुन्दर ||

दो सप्ताह के प्रवास के बाद
संयत हो पाया हूँ ||

बधाई ||

डा श्याम गुप्त ने कहा…

अशोक जी ...आपके द्वारा पोस्ट में जो भी नाम छुपाकर टिप्पणियां दी गयी हैं...वे सभी एक दम उचित व सटीक हैं....
---आपने जो असुर आत्माओ कहा है , वह कथन आपकी ओछी मानसिकता को दर्शाता है..विरोधी विचार वालों को गलत कहना....क्या स्वयं आप जो कह -कर रहे है वही सत्य है ????? यह आपकी विचार धारा आसुरी विचार धारा है ...
---- निश्चय ही इस व्यर्थ की मुहिम द्वारा प्रसिद्धि व राज्नैतिक रोटियां सेकना ही मकसद हैं ...

अशोक कुमार शुक्ला ने कहा…

डा0 श्यामजी,
आभार आपका कि आपने मेरेे लिखे शब्दों को गंभीरता से पढा।

अब उत्तर आपकी बात का

मैने किसी को आसुरी आत्मा नहीं कहा है अपितु किसी अनुष्ठान को आरंभ करने पर निभायी जाने वाली हिन्दू संस्कृति से अवगत कराया है।

असुर और सुर की व्याख्या के लिये र्स्वगीय भगवती चरण वर्मा जी के उपन्यास चित्रलेखा का उद्यरण याद दिलाना चाहूँगा कि ‘इस संसार में पाप और पुण्य की परिभाषा हो ही नहीं सकती’।

किसी एक की नजर में एक कार्य अनुचित और व्यर्थ हो सकता है किसी अन्य के लिये उचित और आवश्यक सो इसमें राजनैतिक रोटियाँ सेंकने वाली बात कहाँ से आ गयी?

एक तथ्य और अवगत करा दूँ किसी चट्टान को तोडने के लिये उस पर हजारों चोटें करनी पडती है तभी जाकर वह टूटती है । अब अगर चट्टान एक हजारवीं चोट पर टूटी तो उस पर की गयी पहली चोट को निरर्थक नहीं कहा जा सकता। प्रत्येक प्रयास का अपना महत्व होता है ।

मैं विनम्रतापूर्वक आपसे भी यह अनुरोध करूगा कि कृपया इस मुहिम में महामहिम को एक छोटा सा मेल भेज कर चट्टान तोडने हेतु एक चोट आप भी अवश्य करें। क्या मालूम आपकी ही चोट पर चट्टान को टूटना हो?

शुभकामनाओं सहित।

अशोक कुमार शुक्ला ने कहा…

shikha ji
thanks to you to support the muhim

अशोक कुमार शुक्ला ने कहा…

shikha ji
thanks to you to support the muhim