शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

अन्दर के कायर को मार दो.

जंग में ना जा सको तो जाने वालों को आधार दो
नारे ना लगा सको समर में तो कम से कम शब्दों को तलवार दो
और कुछ ना कर सको तो , क्रांति को विस्तार दो
इस बार कम से कम अपने अन्दर के कायर को मार दो.

 पूरी कविता पढने के लिए लिंक पर क्लिक karein

अपने अन्दर के कायर को मार दो.

1 टिप्पणी:

Shikha Kaushik ने कहा…

कनु जी -आपकी पोस्ट बहुत प्रेरक है पर ''भारतीय नारी '' ब्लॉग पर नारी से सम्बंधित पोस्ट ही प्रकाशित करें जैसे इस पोस्ट को आप इस तरह प्रकाशित करें की भारतीय नारियों को ''अन्ना के समर्थन व् भ्रष्टाचार निवारण '' हेतु कैसा रुख अपनाना चाहिए ? आप जब भी इस ब्लॉग पर पोस्ट करें पूरी पोस्ट करें -इससे इस ब्लॉग के पाठकों को सुविधा रहेगी .