सोमवार, 15 अगस्त 2011

स्वतंत्रता दिवस को छुट्टी का दिवस के स्थान पर गंभीर चर्चा दिवस क्यों नहीं मानते हम लोग?


आज भारतीय नारी ब्लाग पर बहन के स्थान पर माँ के संबंध में कुछ बताना चाहता हूँ वह माँ है भारत माँ जिसे बेडियों से आजाद कराने के लिये आजादी के हजारों दीवानों ने अपने प्राण निछाावर किये । ऐसे ही एक दीवाने से जुडी एक दास्तान आपके साथ साझा कर रहा हूँ
आजादी के नायक चंद्रशेखर आजाद के जन्मदिवस के दो दिन पूर्व यानी 21 जुलाई की बात थी मै एक आवश्यक राजकीय कार्य के चलते उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले शहर इलाहाबाद गया हुआ था। थोडा समय बचा तो इलाहाबाद राजकीय पुस्तकालय पहुँच गया।
पुस्तकालय में पुराने समाचार पत्रों में आजादी के नायक चंद्रशेखर आजाद के संबंध में छपी खबरों को ढूँढकर उसके चित्रों के साथ एक आलेख बनाने की योजना थी। (इससे संबंधित पोस्ट 23 जुलाई 2011 को कोलाहल से दूर... ब्लाग पर जारी हुयी थी जिसे आप सबका भरपूर सम्मान और समर्थन मिला था)
आजाद जी की खबरों वाले समाचार पत्र का छायाचित्र लेने के दौरान ही उसी समाचार पत्र में छपी एक खास खबर पर निगाह अटक गयी। जिस दिन चंद्रशेखर आजाद को इलाहाबाद के एन्फेड पार्क में घेरकर पुलिस द्वारा आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया गया था उसी दिन समीपवर्ती जनपद फतेहपुर मे सरकारी धनराशि की वसूली हेतु पहुँचे एक सरकारी अधिकारी (तहसीलदार) को लाठी डंडों से पीट पीट कर मार डाला गया था। आजाद जी की मृत्यु के साथ यह समाचार भी समाचार पत्र के मुख्यपृष्ठ पर ही छापा गया था।


चित्र-1 .1मार्च 1931 का समाचार पत्र जिसमें चन्द्रशेखर आजाद की मृत्यु के समाचार के साथ तहसीलदार की हत्या का भी समाचार छपा था

इस महत्ववपूर्ण समाचार को पढने के बाद बाद मुझे पिछले दिनो मे महाराष्ट्र के अमरावती जिले में तेल माफियाओं के विरूद्ध कार्यवाही करने वाले एक अपर जिलाधिकारी को कैरोसीन तेल डालकर जलाकर मार डालने का समाचार याद हो आया। साथ ही याद हो आया लगभग 90 वर्ष पूर्व महात्मा गांधी का असहयोग आन्दोलन और आज के अन्ना हजारे का अनशन।
प्रशासन के प्रतीक उसके अधिकारियों से जुडी उक्त दोनो घटनाओं में मुझे यह साम्यता दिखी कि 1931 में जहाँ आम भारतीय का आक्रोश सरकारी अधिकारी की मृत्यु का कारण बना वहीं 2011 में अपनी इच्छानुसार कालाबाजारी न कर पाने में सक्षम माफिया का दुस्साहस एक सरकारी अधिकारी की मृत्यु का कारण बना।


चित्र-2 समाचार का क्लोज-अप जिसमें तहसीलदार केा लाठी डंडों से पीट-पीटकर मार डालने की सूचना थी
इस स्थान पर मैं यह विचार करने के लिये विवश हो गया कि आज से लगभग 90 वर्ष पूर्व 1920 में महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन के रूप में जिस निर्णायक लड़ाई का आरंभ हुआ था उसकी गंभीर परिणति के रूप में सरकार के विरूद्ध जिस जनाक्रोश ने 1931 में शासन के प्रतीक तहसीलदार को लाठी डंडो से पीट पीट कर मार डालने जैसा विध्वंसकारी स्वरूप ले लिया था क्या वैसा ही जनाक्रोश इस देश की जनता के मध्य 80 वर्षो के बाद पुनः जाग उठा है? शायद हमें इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है ।
संभव है जब आप यह पोस्ट पढ़ रहे हों तब तक अन्ना हजारे के अनशन को सरकारी अनुमति मिल चुकी हो लेकिन स्वतंत्रता दिवस की यह चौसठवीं वर्षगांठ इस मायने में महत्वपूर्ण है कि हमारे लोकतंत्र में घर कर गयी अनेक गंभीर खामियों के प्रति एक गंभीर चर्चा आम जन ने आरंभ तो कर ही दी है।
इस प्रश्न का उत्तर ढूँढने में हम सबको बराबर की मेहनत करनी होगी कि कहीं हम लोकतंत्र मे घर करती जा रहीं गंभीर कमियों के प्रति नरम रवैया अपनाकर कर कोई ऐतिहासिक गलती तो नहीं कर रहे है?
स्वतंत्रता दिवस को छुट्टी का दिवस के स्थान पर गंभीर चर्चा दिवस क्यों नहीं मानते हम लोग? आइये इस दिवस को हम इस विषय में सोचने के दिवस के रूप में मनायें। जै हिन्द! जै भारत!! भारत माता की जै

4 टिप्‍पणियां:

Shikha Kaushik ने कहा…

sarthak vichar hai ki is din ko gambheer chintan divas ka roop diya jana chahiye .nice post .
''BHARAT MATA KI JAY ''

virendra sharma ने कहा…

यौमे आज़ादी की सालगिरह मुबारक .सार्थक सवाल उठाते हुए गुजिस्ता सालों के बदलाव को आपने शिद्दत से महसूस करवाया .

http://veerubhai1947.blogspot.com/
संविधान जिन्होनें पढ़ा है .....
रविवार, १४ अगस्त २०११


http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
Sunday, August 14, 2011
चिट्ठी आई है ! अन्ना जी की PM के नाम !

virendra sharma ने कहा…

संविधान जिन्होनें पढ़ा है .....
अन्नाजी को कटहरे में खड़े करने वालों से सीधी बात -
अन्नाजी ने संविधान नहीं पढ़ा है ,वह जो चाहे बोल देतें हैं ?
मेरे विद्वान दोश्त कपिल सिब्बल जी ,संविधान इस देश में जिन्होनें पढ़ा था उन्होंने इमरजेंसी लगा दी थी .और संविधान में यह कहाँ लिखा है ,कि किसी व्यक्ति की उम्र नहीं पूछी जा सकती ,उससे ये नहीं कहा जा सकता ईश्वर ने आपको सब कुछ दिया है ,अब आप उम्र दराज़ हो गए राष्ट्र की सेवा करो ।आपके पास नैतिक ताकत है ,आप ईमानदार हैं .
संविधान में यह भी मनाही नहीं है कि एक साथ चार -मूर्खों को मंत्री बना दिया जाए ,और एक षड्यंत्र रच के १४ अगस्त की शाम एक साथ सारे एक ही स्वर में ,एक ही आरोह अवरोह में झूठ बोलना शुरु करें ।
और ये कौन से सावंत की बात हो रही है अदालत तो राखी सावंत भी लगातीं थीं ?
क्या किसी नैतिक शक्ति से संचालित होकर भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने की संविधान में मनाही है या फिर प्रजातंत्र में यह नैतिक शक्ति ही उसे प्रासंगिक बनाए रहती है ?
किसी नवीन चावला को भी संविधान के ऊपर थोपने की मनाही नहीं है ।
विदूषी अंबिका सोनी जी कहीं संजय गांधी जी की तो बात नहीं कर रहीं ।?गांधी तो वह भी थे .
महात्मा गांधीजी को तो यह हक़ हासिल था कि वह पंडित नेहरु या सुभाष चन्द्र बोस की उम्र पूछ सकें ।
ये काले कोट वाले सुदर्शन कुमारजी जांच तो भगत सिंह की भी करवा सकतें हैं -संसद में बम गिराने का असलाह और पैसे कहाँ से जुटाए थे ज़नाबभगत सिंह ने ?
सारे महानुभाव मय मनीष तिवारीजी ,सुदर्शन हैं ,सुमुखी हैं ,वाणी से इनकी अमृत झर रहा है ,संविधान में इसकी भी मनाही नहीं है इन्हें कुछ भी बोलने की छूट न दी जाए ।
"अनशन स्थल और अवधि वही जो सरकार बतलाये ,आन्दोलन वही जो सरकार चलवाए ।".
अन्ना का खौफ क्यों भाई ,कल को कोई अन्नभी मांगेगा ,अन्न कहेगा तो सरकार "अन्ना "समझेगी ?इस नासमझी की भी संविधान में मनाही नहीं है ?

Shalini kaushik ने कहा…

dr.ashok ji,
bahut sahi bat kahi hai aapne .swatantrta divas ko aaj ham sabhi ek chhuti ka divas man kar baith gaye hain aur is divas ke liye hamne kya kya nahi gavayan aur kya kya papad nahi bele ye ham apni kathit vyastta ke nam par bhoolete ja rahe hain .ham apne adhikaron ke liye lad rahe hain aur kartvya band dibbe ne dal kar desh ke prati apni jimmedari se muhn modte ja rahe hain aur iska parinam hhai ki aaj desh me bhrashtachar sursa kee tarah badhta ja raha hai.sarthak post abhar.