tag:blogger.com,1999:blog-1698062258639618592.post6807065831025352501..comments2024-02-10T00:26:10.275-08:00Comments on भारतीय नारी: ऐसे घरों में लड़की न पैदा हो-लघु कथाShikha Kaushikhttp://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-1698062258639618592.post-86630484226707311422013-11-05T05:31:31.391-08:002013-11-05T05:31:31.391-08:00शिखा जी कहानी का अंत उस अंत की और इसारा कर गया जहा...शिखा जी कहानी का अंत उस अंत की और इसारा कर गया जहां हम नैतिकता के नियमों का अंत करते जा रहे हैं।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16758905606510875826noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1698062258639618592.post-24433148838238442992013-11-04T20:01:29.997-08:002013-11-04T20:01:29.997-08:00इस प्रकार के वीभत्स किस्से न ही लिखें तो अच्छा है ...इस प्रकार के वीभत्स किस्से न ही लिखें तो अच्छा है इंसान का भरोसा टूटता है वैसे भी ये अपवाद हैं नियम नहीं कुछ आदर्श लाओ। अलबता दल्लों से और क्या उम्मीद रखोगी ये तो आज हर तरफ हैं राजनीति से लेकर घर दुआरे तक। और फिर दोनों लड़कियों को लघु कथा में क्यों मरवा दिया दादी को भी चाक़ू मारा जा सकता था। बाप के मुंह पे भी थूक के बजाय पेट्रोल छिड़का जा सकता था। <br /><br />एक प्रतिक्रिया ब्लॉग :<br /><br />ऐसे घरों में लड़की न पैदा हो-लघु कथा<br /><br />इक्कीस वर्षीय मुस्कान के गाल पर उसकी दादी ने जोरदार तमाचा जड़ते हुए कड़े शब्दों में पूछा -'' बोल बेहया कहाँ है ख़ुशी ? बताती है या नहीं ...ज़िंदा गाड़ दूँगी ज़मीन में ...हरामजादी खुद भी नखरे दिखाने लगी है और छोटी बहन को भी भगा डाला ..'' ये कहते कहते दादी ने मुस्कान की चोटी कस कर पकड़ ली .असहनीय दर्द से मुस्कान चीख उठी पर दांत भींचते हुए बोली -'' कर ले डायन जो करना है ...ख़ुशी अब आज़ाद है .वो मेरी तरह घुट-घुट कर रोज़ नहीं मारेगी ..मेरी देह का रोज़ सौदा करने वाली डायन मैंने तेरे अरमानों पर पानी फेर दिया .सारी दुनिया अपनी बेटियों की इज्जत के लिए मरने-मारने को तैयार रहती है और तूने मुझे इंसान से माल बना दिया ..उस पर बदचलन भी मैं ?..कितने में बेचा है मुझे उस दलाल को बता डायन ?'' मुस्कान के ये पूछते ही एक और जोरदार तमाचा उसके गाल पर लगा .कुछ देर के लिए उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया .होश आने पर उसने देखा उसका बाप सामने खड़ा था .ये तमाचा उसने ही मारा था .मुस्कान ने थोडा आगे बढ़कर उसके मुंह पर थूक दिया और लड़खड़ाती हुई बोली -'' तू भी मार ले पर याद रख यदि मैं न होती तो तू गाड़ियों में कैसे घूमता ,ऐय्याशी कैसे करता ...बेशरम तू ही बता दे कितने में बेचीं है मेरी देह ?'' मुस्कान के बाप ने मुंह पर से थूक हटाते हुए पलक झपकते ही मुस्कान की गर्दन पर अपना पंजा कस दिया और बोला -'' चुप हो जा छिनाल वरना यही तेरे टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा ..याद नहीं पिछली बार कैसे गरम पानी उड़ेला था तुझ पर वो तो तेरी माँ बीच में आ गयी वरना तेरे बदन को उसी दिन जला डालता ...इतराती है खुद पर सब इतराना निकाल दूंगा ...हां बेच दिया है हमने तुझे .....ये कहते कहते मुस्कान के बाप ने उसके पेट पर जोरदार लात दे मारी और बोला -'' हमारे पेट पर लात मारेगी तो ऐसी ही लात लगेंगी तेरे ..बता कहाँ है ख़ुशी ?'' मुस्कान पेट पकड़कर दर्द से बिलबिलाती हुई ज़मीन पर गिर पड़ी और कराहते हुए बोली -'' ज़ालिमों स्टोर रूम देख लो ..फांसी पर लटकी हुई है ख़ुशी और अब मैं भी नहीं बचूंगी क्योंकि मैंने भी ज़हर खा रखा है .'' ये कहते कहते मुस्कान के मुंह से झाग निकलने लगे .तभी उसकी माँ कमरे के पीछे से निकलकर दौड़कर उसके पास पहुँच गयी और उसका सिर अपनी गोदी में रख लिया .मुस्कान ने जरा सी आँख खोली और माँ को देखा .माँ बदहवास हो रही थी .मुस्कान फुसफुसाते हुए बोली -'' माँ प्रार्थना करना ऐसे घरों में कभी कोई लड़की न पैदा हो जो लड़की से धंधा करवाते हैं ............................'' ये कहकर मुस्कान ठंडी पड़ गयी और माँ की आत्मा चीत्कार कर उठी .आज एक ओर एक माँ की कोख उजड़ गयी थी ओर दूसरी ओर दलालो की तिजोरी .<br />शिखा कौशिक 'नूतन<br />प्रस्तुतकर्ता shikha kaushik पर 8:21 am virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1698062258639618592.post-32880016031573331892013-11-04T20:00:15.150-08:002013-11-04T20:00:15.150-08:00इस प्रकार के वीभत्स किस्से न ही लिखें तो अच्छा है ...इस प्रकार के वीभत्स किस्से न ही लिखें तो अच्छा है इंसान का भरोसा टूटता है वैसे भी ये अपवाद हैं नियम नहीं कुछ आदर्श लाओ। अलबता दल्लों से और क्या उम्मीद रखोगी ये तो आज हर तरफ हैं राजनीति से लेकर घर दुआरे तक। और फिर दोनों लड़कियों को लघु कथा में क्यों मरवा दिया दादी को भी चाक़ू मारा जा सकता था। बाप के मुंह पे भी थूक के बजाय पेट्रोल छिड़का जा सकता था। virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1698062258639618592.post-86790495245417495562013-11-04T17:32:42.740-08:002013-11-04T17:32:42.740-08:00बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!<br />--<br />आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (05-11-2013) <a href="http://charchamanch.blogspot.in/2013/11/1420.html" rel="nofollow"> भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर : चर्चामंच 1420 </a> पर भी होगी!<br />--<br />सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।<br />--<br />दीपावली के पंचपर्वों की शृंखला में <br />भइया दूज की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।<br />सादर...!<br />डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.com