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रविवार, 20 मार्च 2022

अभिव्यक्त क्या करे " शालिनी "

 


भावुकता स्नेहिल ह्रदय ,दुर्बलता न नारी की ,
संतोषी मन सहनशीलता, हिम्मत है हर नारी की .
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भावुक मन से गृहस्थ धर्म की , नींव वही जमाये है ,
पत्थर दिल को कोमल करना ,नहीं है मुश्किल नारी की.
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होती है हर कली पल्लवित ,उसके आँचल के दूध से ,
ईश्वर के भी करे बराबर ,यह पदवी हर नारी की .
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जितने भी इस पुरुष धरा पर ,जन्मे उसकी कोख से ,
उनकी स्मृति दुरुस्त कराना ,कोशिश है हर नारी की .
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प्रेम प्यार की परिभाषा को ,गलत रूप में ढाल रहे ,
सही समझ दे राह दिखाना ,यही मलाहत नारी की .
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भटके न वह मुझे देखकर ,भटके न संतान मेरी ,
जीवन की हर कठिन डगर पर ,इसी में मेहनत नारी की .
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मर्यादित जीवन की चाहत ,मर्म है जिसके जीवन का ,
इसीलिए पिंजरे के पंछी से ,तुलना हर नारी की .
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बेहतर हो पुरुषों का जीवन ,मेरे से जो यहाँ जुड़े ,
यही कहानी कहती है ,यहाँ शहादत नारी की .
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अभिव्यक्त क्या करे ''शालिनी ''महिमा उसकी दिव्यता की, 
कैसे माने कमतर शक्ति ,हर महिका सम नारी की .
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                      शालिनी कौशिक 
                                एडवोकेट 
                      कांधला (शामली) 

शब्दार्थ -मलाहत-सौंदर्य 
                                     

रविवार, 13 मार्च 2022

लड़की को लड़ने न देगी ये जनता

अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
आंचल में है दूध और आंखों में पानी. 
        और यह उपरोक्त उक्ति सही कही जाएगी 10 मार्च 2022 को आए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के परिणामों को देखने के पश्चात, नारी समाज की संघर्षशील महिला प्रत्याशियों की जिस तरह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जमानत जब्त हुई है वह नारी को लेकर आम जनता की सोच को दिखाने के लिए पर्याप्त है.
           देश की राजनीति में संघर्षरत कॉंग्रेस पार्टी द्वारा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 40% महिलाओं को टिकट दिए गए. कॉंग्रेस पार्टी की 159 महिला उम्मीदवारों में मात्र एक महिला उम्मीदवार विजयी हुई और 158 उम्मीदवारों को 3000 से कम वोट मिलें जिससे उन सभी बाकी महिला उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई.
              संघर्षशील, गरीब, पीड़ित-शोषित और दलित समाज की महिलाओं को कॉंग्रेस पार्टी ने टिकट दिए. कॉंग्रेस पार्टी इस समय जनता की नजरों में उसके लिए कुशल नेतृत्व वाली पार्टी नहीं है किन्तु जिन महिलाओं को कॉंग्रेस पार्टी ने टिकट दिए थे, वे तो हमारे बीच से ही थी और हमने स्वयं उनका संघर्ष देखा था. कॉंग्रेस पार्टी की कुछ विशेष महिला उम्मीदवारों का परिचय इस प्रकार है -
1 - आशा सिंह - उन्नाव सदर सीट से एक रेप पीड़िता की माँ, उस रेप पीड़िता की माँ, जिसके रेप के आरोप में सत्तारूढ़ पार्टी का विधायक ही आरोपी हो, ऐसे में आशा देवी के संघर्ष का अंदाजा लगाया जाना आम जनता के लिए शायद कठिन नहीं होगा. आशा सिंह की मदद के लिए कॉंग्रेस पार्टी ने राजस्थान और मध्य प्रदेश के कार्यकर्ताओं की टीम लगाई और आशा सिंह ने घर घर जाकर अपनी पीड़ा सबके सामने रखी उसके बाद भी संवेदनहीन जनता द्वारा इन्हें वोट मिली मात्र - 1555- जमानत जब्त 👎


2- सदफ जफर- नागरिकता संशोधन अधिनियम और एन आर सी के विरोध में जेल जा चुकी सदफ जफर को कॉंग्रेस पार्टी ने लखनऊ मध्य से टिकट दिया था. सदफ केंद्र सरकार के कानूनों का विरोध कर रही थी, सही कर रही थी या गलत, ये न्यायालय के निर्णय के अधीन है, अपनी जनता के हितों को लेकर लड़ रही थी, कोई अनैतिक कार्य नहीं कर रही थी, सदफ जफर ने खुलासा किया था, 'मुझे महिला पुलिस स्टेशन में पुलिस हिरासत में बेरहमी से पीटा गया था। यहां तक कि पुरुष पुलिस वालों ने भी मुझे पीटा। पुरुष पुलिस अधिकारियों ने मेरे पेट में लात मारी और उन्होंने मेरे बाल बेरहमी से खींचे। मेरे परिवार को मेरी गिरफ्तारी के बारे में सूचित नहीं किया गया. सदफ जफर ने लखनऊ सेंट्रल सीट से कांग्रेस का टिकट मिलने के बाद एनडीटीवी से कहा कि वह उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने और उनका समाधान करने के लिए लड़ेंगी। सदफ जफर ने कहा है, मैं प्रियंका गांधी की शुक्रगुजार हूं और मैं पहले भी बहादुर थी अब भी बहादुर हूं।'' संविधान ने सभी भारतीय नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है. कॉंग्रेस पार्टी ने सही समझकर उन्हें टिकट दिया किन्तु जनता ने नारी का अपनी आदत के अनुसार साथ नहीं दिया. उन्हें वोट मिली - 2927-जमानत जब्त 👎


3- निदा अहमद - टीवी पत्रकारिता छोडकर राजनीति में सेवा का जज्बा ले ETV और समाचार प्लस की तेज तर्रार पत्रकार निदा अहमद को कॉंग्रेस ने सम्भल से टिकट दिया. राजनीतिक परिवार से होने के बावजूद जनता को ये राजनीति में योग्य नेतृत्व देने वाली नजर नहीं आई और वोट मिली मात्र - 2256- ज़मानत जब्त 👎


4-  अर्चना गौतम - मिस कोस्मो वर्ल्ड - 2018, मिस यू पी - 2014, अर्चना गौतम को कॉंग्रेस पार्टी ने हस्तिनापुर से टिकट दिया और क्योंकि ये कॉंग्रेस पार्टी से थी, इसलिये विपक्ष के हमेशा से नारी विरोधी सोच रखने वाले नेताओं ने इनके खिलाफ बदजुबानी का हथियार अपनाया, जिसका मात्र प्रियंका गांधी के कड़े विरोध के सिवाय इनके दलित चेहरा भी होने के कारण आंखों पर पट्टी बांधे हुए जनता द्वारा कोई विरोध नहीं किया गया, मात्र एक अभिनेत्री होने पर हेमा मालिनी जनता का कोई काम न कर बार बार विजय हासिल करती हैं, वहीं अर्चना गौतम को वोट मिली मात्र - 1519 - जमानत जब्त 👎


5- नेहा तिवारी - खुशी दुबे की बड़ी बहन, जिन्हें कॉंग्रेस पार्टी द्वारा खुशी दुबे के साथ हुए अन्याय को देखते हुए, फिर खुशी दुबे की माँ की वोट गायब होने के कारण टिकट दिया गया, वो खुशी दुबे, जो राजनीतिक साजिश का शिकार है. बिकरू कांड पीड़िता, वो कांड जिस के दो घटनाक्रम ने तमाम सवाल खड़े किए हैं। सीधे पुलिस पर ये सवाल थे। मगर पुलिस ने किसी की एक न सुनी। हर पहलू को नजरअंदाज किया और मनमर्जी कार्रवाई की। हम बात कर रहे हैं नाबालिग खुशी दुबे की जिन्हें 17 धाराओं का आरोपी बना जेल भेजने और मनु पांडेय पर मेहरबानी करने की।तत्कालीन एसएसपी ने खुशी को निर्दोष बता जेल से रिहा कराने की बात कही थी लेकिन दो दिन के भीतर पुलिस मुकर गई थी। लिहाजा खुशी आज भी महिला शरणालय में बंद है। दूसरी तरफ मनु पांडेय आजाद है। अमर दुबे की 29 जून 2020 को शादी हुई थी। 30 जून को खुशी दुबे बिकरू गांव ब्याह कर पहुंची थी। एक जुलाई का दिन बीता और दो जुलाई की रात विकास दुबे ने कांड कर दिया। पुलिस ने इसमें खुशी दुबे को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. खुशी दुबे को न्याय दिलाने के लिए कॉंग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी जी आगे आई और खुशी दुबे के खिलाफ सभी राजनीतिक कुचक्रों को ठेंगा दिखाकर उनकी बड़ी बहन नेहा तिवारी को कानपुर की कल्याणपुर सीट से टिकट दिया किन्तु जनता ने न्याय का साथ नहीं दिया, वोट मिली मात्र - 2302- जमानत जब्त 👎
      ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हो रहा है, नारी के प्रति आम जनता और राजनीतिक दलों का हमेशा से ही दमनात्मक रवैय्या रहा है. सभी जानते हैं हमारे देश के राज्य मणिपुर की महान नारी शक्ति - इरोम चानू शर्मिला को, इनके साथ भी मणिपुर की जनता और राजनीति ने जो साजिश की है वह भी शर्मनाक इतिहास में सम्मिलित की जाएगी. पिछले मणिपुर विधानसभा चुनाव इस मामले में ख़ास रहा क्योंकि 16 साल के अनशन के बाद मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला चुनाव मैदान में थीं. इरोम ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफस्पा) के ख़िलाफ़ 16 वर्ष तक भूख हड़ताल की थी. भूख हड़ताल ख़त्म करने के बाद वह इस उम्मीद के साथ चुनाव में उतरी थीं कि जीत के बाद वे राजनीति में आएंगी और इस क़ानून को ख़त्म करेंगी.इरोम पीपुल्स रिइंसर्जेंस एंड जस्टिस अलाएंस नाम की पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतरी थीं. इरोम से ज़्यादा वोट नोटा को मिले. मणिपुर की जनता ने संघर्ष की राजनीति की जगह उस यथास्थितिवादी राजनीति का चुनाव किया जिसके ख़िलाफ़ इरोम 16 वर्षों से लड़ रही थीं. इरोम विधानसभा चुनाव में थउबल सीट से मुख्यमंत्री ओकराम ईबोबी सिंह के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ीं, लेकिन उन्हें मात्र 90 वोट ही मिल सके. इस सीट पर उनसे ज़्यादा वोटा नोटा (नन आॅफ द अबव) को मिला. 143 लोगों ने नोटा पर बटन दबाया, जबकि इरोम को मात्र 90 वोट मिले. 
      कथाकार मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा, इरोम शर्मिला, तुम को तुम्हारे राज्य में केवल नब्बे वोट मिले हैं. तुमने स्त्रियों की सुरक्षा के लिए सोलह साल अनशन उपवास रख कर संघर्ष किया. क्या इस राज्य में नब्बे ही औरतें थीं? नहीं, वोट इसलिये नहीं मिले क्योंकि तुम्हारे ऊपर किसी आका की कृपा नहीं थी, तुमने अपने संघर्ष के दम पर यह फ़ैसला लिया था. मगर हमारे देश की स्त्रियां अपना फ़ैसला आज भी अपने पुरुषों पर छोड़ती हैं.’
संजीव सचदेवा ने फेसबुक पर लिखा है, ‘इरोम शर्मिला तेरी हार तुझे मिले हुए मात्र 90 वोट साबित करते हैं कि जनता को उसके लिए भूखे रहने वाले नेता नहीं पसंद बल्कि हवाई जहाज से उड़ने वाले नोट छीनने वाले खाऊ नेता ही पसंद हैं. तेरी हार यहां के प्रजातंत्र के गिरे हुए स्तर को साबित करती है.’
       ये है भारतीय जनता जिसे कभी भोली भाली कहकर बचाया जाता है तो कभी जागरूक कहकर महिमामंडित किया जाता है. जो जब कोई बेटी अपने पिता के उन कार्यों और जीवन भर के उन त्याग-बलिदान के लिए इंसाफ़ मांगने के लिए खड़ी होती है तो उसे विद्वानों की सभा में खड़े होकर कहा जाता है - "कि मुझे तो इससे हेट हो गई" और तब उस बेटी के पिता का उस बेटी के सामने गुणगान करने से न थकने वालों में से एक भी ज़बान उस बेटी के समर्थन में नहीं उठती.
      और यही जनता इसी नारी जाति द्वारा गलत के खिलाफ आवाज़ उठाए जाने पर उससे कहती हैं कि - अपनी स्थिति देखनी चाहिए, तू स्वतंत्र है, तुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता आदि कहकर अधर्म के खिलाफ उठते उसके कदमों को रोकने की भरसक कोशिश करती है. ऐसे विद्रूपताओं भरे इस समाज में पता नहीं क्या सोचकर प्रियंका गांधी - लड़की हूं लड़ सकती हूं - का नारा देती हैं जबकि ये जागरूक जनता सिवाय अपने स्वार्थ को आगे बढ़ाने के किसी को आगे नहीं बढ़ाती है क्योंकि अगर बढ़ाती होती तो किसी भी हाल में इरोम चानू शर्मिला, आशा सिंह और नेहा तिवारी को हार का सामना नहीं करना पड़ता. कहा भी गया है -
" तू छोड़ दे कोशिशें इंसान को पहचानने की,
  यहां जरूरतों के हिसाब से, सब बदलते नकाब हैं.
  अपने गुनाहों पर सौ पर्दे डालकर 
  हर शख्स कहता है " ज़माना बड़ा खराब है "

शालिनी कौशिक
 एडवोकेट 
कांधला (शामली) 

शनिवार, 12 मार्च 2022

नारी मांगे अधिकार

 Indian Village Women Royalty Free Stock Photo


      हमारी संविधान व्यवस्था ,कानून व्यवस्था हम सबके लिए गर्व का विषय हैं और समय समय पर इनमे संशोधन कर इन्हें बदलती हुई परिस्थितयों के अनुरूप भी बनाया जाता रहा है किन्तु हमारा समाज और उसमे महिलाओं की स्थिति आरम्भ से ही शोचनीय रही है .महिलाओं को वह महत्ता समाज में कभी नहीं मिली जिसकी वे हक़दार हैं .बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक उसके लिए ऐसे पल कम ही आते हैं जब वह अपने देश के कानून व् संविधान पर गर्व कर सके इसमें देश के कानून की कोई कमी नहीं है बल्कि कमी यहाँ जागरूकता की है इस देश की आधी आबादी लगभग एक तिहाई प्रतिशत में नहीं जानती कि कानून ने उसकी स्थिति कितनी सुदृढ़ कर रखी है .
         आज गर्व होता है जब हम लड़कियों को भी स्कूल जाते देखते हैं हालाँकि मैं जिस क्षेत्र की निवासी हूँ वहाँ लड़कियों के लिए डिग्री कॉलिज तक की व्यवस्था है और वह भी सरकारी इसलिए लड़के यहाँ स्नातक हों या न हों लड़कियां आराम से एम्.ए.तक पढ़ जाती हैं और संविधान में दिए गए समान शिक्षा के अधिकार के कारण आज लड़कियां तरक्की के नए पायदान चढ़ रही हैं .
              शिक्षा का स्थान तो नारी के जीवन में महत्वपूर्ण है ही किन्तु सर्वाधिक ज़रूरी जो कहा जाता है और जिसके बिना नारी को धरती पर बोझ कहा जाता है वह उसकी जीवन की सबसे बड़ी तकलीफ भी बन जाता है कभी दहेज़ के रूप में तो कभी मारपीट ,कभी तलाक और पता नहीं क्या क्या ,घरेलू हिंसा से संरक्षण विधेयक द्वारा कानून ने सभी महिलाओं की सुरक्षा का इंतज़ाम किया है और ऐसे ही महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा तलाक के ज्यादा अधिकार देकर उन्हें, जबर्दस्ती के सम्बन्ध को जिसे जनम जनम का नाता कहकर उससे ढोने की पिटने की अपेक्षा की जाती है ,मुक्ति का रास्ता भी दिया है महिलाओं को अबला जैसी संज्ञा से मुक्ति दिलाने की हमारे कानून ने बहुत कोशिश की है किन्तु कुछ सामाजिक स्थिति व् कुछ अज्ञानता के चलते वे सहती रहती हैं और इस सम्बन्ध को अपनी बर्दाश्त की हद से भी बाहर तक निभाने की कोशिश करती हैं किन्तु जहाँ शिक्षा का उजाला होगा और कानून का साथ वहाँ ऐसी स्थिति बहुत लम्बे समय तक चलने वाली नहीं है और ऐसे में जब हद पार हो जाती है तो कहीं न कहीं तो विरोध की आवाज़ उठनी स्वाभाविक है और यही हुआ अभी हाल ही में हमारे क्षेत्र की एक युवती ने पारिवारिक प्रताड़ना का शिकार होने पर अपने पति से हिन्दू विधि की धारा १३ -बी में दिए गए पारस्परिक सहमति से तलाक के अधिकार का प्रयोग किया और अपनी ज़िंदगी को रोज रोज की घुटन से दूर किया .
        साथ ही आज बहुत सी महिलाएं दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १२५ के तहत भरण पोषण के वाद दायर कर भी अपने पतियों से अपने व् अपने बच्चों के लिए कानून की छाँव में एक सुन्दर व् सार्थक आशियाना का सपना अपनी संतान की आँखों में पाल रही हैं .
         भारतीय कानून व् संविधान महिलाओं की समाज में बेहतर स्थिति के लिए प्रयासरत हैं और इसका उदाहरण दामिनी गैंगरेप कांड के बाद इस तरह के मामलों में उठाये गए कानूनी  कदम हैं .ऐसे ही विशाखा बनाम स्टेट ऑफ़ राजस्थान के मामले से भी सुप्रीम कोर्ट ने कामकाजी महिलाओं की स्थिति बहुत सुदृढ़ की है जिसके कारण तरुण तेजपाल जैसे सलाखों के पीछे हैं और रिटायर्ड जस्टिस अशोक गांगुली जैसी हस्ती पर कानून की तलवार लटकी।
        पर जैसी कि रोज की घटनाएं सामने आ रही हैं उन्हें देखते हुए कानून में अभी बहुत बदलावों की ज़रुरत है इसके साथ ही महिलाओं की आर्थिक सुदृढ़ता की कोशिश भी इस दिशा में एक मजबूत कदम कही जा सकती है क्योंकि आर्थिक सुदृढ़ता ही वह सम्बल है जिसके दम पर पुरुष आज तक महिलाओं पर राज करते आ रहे हैं समाज में स्वयं देख लीजिये जो महिलाएं इस क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी कर रही हैं उनके आगे पुरुष दयनीय स्थिति में ही नज़र आते हैं .और जैसे कि पंचायतों में महिलाओं के लिए स्थान आरक्षित किये गए हैं ऐसे ही अब संसद व् विधान सभाओं में भी ३३% आरक्षण हो जाना चाहिए साथ ही सरकारी नौकरियों में भी उनके लिए स्थानों का आरक्षण बढ़ाये जाने की ज़रुरत है .



शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कांधला (शामली) 

सोमवार, 7 मार्च 2022

विश्व में सिरमौर - नारी शक्ति

  


  

          राजनीति का सुनहरा आकाश हो या बिजनेस का चमकीला गगन ,अंतरिक्ष का वैज्ञानिक सफर हो या खेत -खलिहान का हरा-भरा आँगन ,हर जगह आज की नारी अपनी चमक बिखेर रही है ,अपनी सफलता का परचम लहरा रही है .आज घर की दहलीज को पार कर बाहर निकल अपनी काबिलियत का लोहा मनवाने वाली महिलाओं की संख्या में दिन-दूनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है .पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ती हुई महिलाएं आज हर क्षेत्र में घुसपैठ कर चुकी हैं और यह घुसपैठ मात्र पाला छूने भर की घुसपैठ नहीं है वरन कब्ज़ा ज़माने की मजबूत दावेदारी है और इसीलिए पुरुषों की तिलमिलाहट स्वाभाविक है .सदियों से जिस स्थान पर पुरुष जमे हुए थे और नारी को अपने पैरों तले रखने की कालजयी महत्वाकांक्षा पाले हुए थे आज वहां की धरती खिसक चुकी है .
भारत एक धर्म-प्रधान देश है और यहाँ हिन्दू-धर्मावलम्बी बहुतायत में हैं .धर्म यहाँ लोगों की जीवन शैली पर सर्वप्रमुख रूप में राज करता है और धर्म के ठेकेदारों ने यहाँ पुरुष वर्चस्व को कायम रखते हुए धर्म के संरक्षक ,पालनकर्ता आदि  प्रमुख पदों पर पुरुषों को ही रखा और पुरुषों की सोच को ही महत्व दिया .यहाँ नारी को अपवित्र की संज्ञा दी गयी जिससे वह धार्मिक कार्यों से ,अनुष्ठानों से लगभग वर्जित ही कर दी गयी .बृहस्पतिवार व्रतकथा के अंतर्गत नारी को ब्रह्मा जी द्वारा शापित भी बताया गया है , उसमे वर्णन किया गया है -
''......इंद्र द्वारा विश्वरूपा का सिर काट दिए जाने पर जब वे ब्रह्म-हत्या के पापी हुए और देवताओं के एक वर्ष पश्चाताप करने पर भी इंद्र का ब्रह्महत्या का पाप न छूटा तो देवताओं के प्रार्थना करने पर ब्रह्माजी बृहस्पति जी के सहित वहां आये ,उस ब्रह्म-हत्या के चार भाग किये जिसका तीसरा भाग स्त्रियों को दिया ,इसी कारण स्त्रियां हर महीने रजस्वला होकर पहले दिन चण्डालनी,दुसरे दिन ब्रह्मघातिनी ,तीसरे दिन धोबिन के समान रहकर चौथे दिन शुद्ध होती हैं ....''
और इसी अशुद्धता को अवलंब बना नारी को धार्मिक क्रियाकलापों से बहिष्कृत की श्रेणी में ला खड़ा किया गया .उसे ''ॐ '' शब्द के उच्चारण से प्रतिबंधित किया गया .सोलह संस्कारों में से केवल विवाह संस्कार ही नारी के लिए रखा गया और वह भी इसलिए क्योंकि यहाँ उसका सम्बन्ध एक पुरुष से जुड़ता है और पुरुष का नारी से मिलन ही उसके इस संस्कार की वजह बना .यह भी संभव था कि यदि पुरुष का पुरुष से ही विवाह हो सकता होता तो नारी इस संस्कार से भी वंचित कर दी जाती .स्त्रियों को उपनयन संस्कार से भी वंचित रखा जाने लगा जिससे उनका अग्निहोत्र व् वेद और स्वाध्याय का अधिकार भी छीन लिया गया .उनके लिए गायत्री मन्त्र -
''ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात ''
का प्रयोग वर्जित कर दिया गया .गायत्री मन्त्र एक अपूर्व शक्तिशाली मन्त्र है , जिसे रक्षा कवच मन्त्र भी कहा गया है ,यह एक वैदिक मन्त्र है ,यह मन्त्र वैज्ञानिक कसौटी पर खरा उतरता है ,विज्ञान भी इस मन्त्र की महत्ता के आगे नतमस्तक रहता है , इस मन्त्र को आज के समाज से पहले स्त्री जाति के लिए बोलना ,सुनना व् पढ़ना दंडनीय अपराध था और अगर कोई स्त्री इसे सुन लेती थी तो उसके कानों में सीसा घोल दिया जाता था ,पढ़ लेती थी तो जीभ काट दी जाती थी ,लिखने पर हाथ काट दिए जाते और पढ़ने पर आँखें निकाल ली जाती  और भले ही आज शिक्षित ,अभिजात्य वर्ग की स्त्रियों को आज ऐसी बर्बरता से मुक्ति मिल चुकी हो किन्तु अशिक्षित ,असभ्य आदिम जातियों की नारियां आज भी पुरुषों की इस बर्बरता की शिकार हैं .
नारी का रजस्वला होना उसकी अपवित्रता माना गया और कहा गया कि वह इस कारण न तो व्यास गद्दी पर बैठ सकती है [ रामायण पाठ के लिए जिस आसन पर बैठते हैं उसे व्यास गद्दी कहा जाता है ] और जब व्यास गद्दी पर नहीं बैठ सकती तो रामायण पाठ के सर्वथा अयोग्य है और यह चलन तो आज भी कथित आधुनिक ,अभिजात्य व् उच्च शिक्षित घरों में भी प्रचलन में है जहाँ रामायण पाठ आदि के लिए पुरुष ही अधिकारी माने जाते हैं और वे ही रामायण पाठ करते हैं .नारी के लिए उसकी अपवित्रता का बहाना बना उसे यज्ञ ,वेद अध्ययन से वंचित रखा जाता है और कहा जाता है कि वह इतने कठोर नियमों का पालन नहीं कर सकती ,उसके लिए तो घर परिवार की सेवा में ही यज्ञादि का फल निहित है और इस तरह की भावनात्मक बातों में उलझाकर नारी को यज्ञ ,हवन ,वेद अध्ययन ,अंतिम संस्कार ,श्राद्ध कर्म आदि कार्यों से वंचित रखने का प्रयत्न किया गया और किया जा रहा है जबकि इस अपवित्रता की नींव अर्थात नारी का रजस्वला होना और नारी का इन कार्यों का अधिकारी होने की जो सच्चाई व् वास्तविकता है उसे न कभी सामने आने दिया गया और न ही आने देने का कभी प्रयत्न ही किया गया ,जो कि ये है -
मासिक चक्र -डॉ. नीलम सिंह ,गाइनेकोलॉजिस्ट ,वात्सल्या .लखनऊ कहती हैं -
''महिलाओं के जीवन की एक आम अहम घटना है मासिक धर्म या पीरियड्स , पर हमारी सांस्कृतिक स्थितियां ऐसी हैं कि इतनी अहम बात को आमतौर पर लड़कियों को बताया नहीं जाता और जब पहली बार
उन्हें पीरियड्स का सामना करना पड़ता है ,तो वे अंदर आये इस परिवर्तन को लेकर काफी दिनों तक डरी-डरी रहती हैं .शहरों में पीरियड्स को लेकर लड़कियों और महिलाओं में जो जागरूकता है ,उतनी काफी नहीं है क्योंकि आज भी ग्रामीण इलाकों में इसे छूत माना जाता है .शहरों में भी ऐसा नहीं है कि महिलाएं सार्वजानिक स्थल पर इसके बारे में बात करती हों .''
मासिक धर्म को नारी की पवित्रता -अपवित्रता से जोड़ दिए जाने के कारण इस विषय पर बात करने में हिचक महसूस की जाती है जबकि ये महिलाओं की सेहत व् स्वास्थ्य से जुड़ा एक सामान्य चक्र है जिसका असर महिलाओं के हार्मोन्स पर पड़ता है ,उसके स्वभाव पर पड़ता है न की उसके धार्मिक क्रिया कलाप पर .
मासिक चक्र के बारे में अक्सर महिलाओं की यह धरना होती है की यह एक गन्दा रक्त है और जितना यह शरीर से निकलेगा उतना अच्छा है लेकिन यह बेहद गलत धारणा है .दरअसल मासिक की वजह है गर्भाशय के भीतर एण्डोमीट्रियम लाइन यानि त्वचा की भीतरी दीवार का क्षत होना .यह दीवार जितनी महीन होगी उतना ही रक्तस्राव होगा .इसके कारण शरीर में लौहतत्व की कमी हो जाती है और महिला एनीमिया की शिकार हो सकती है .
क्या है मासिक चक्र -दरअसल मासिक चक्र महिलाओं में एक ऐसा शारीरिक परिवर्तन है जो पूरी तरह से जनन-तंत्र प्रणाली के तहत आता है और प्रजनन के लिए बेहद जरूरी है .हर माह आने वाला मासिक यौवन के आरम्भ और रजोनिवृति के बीच का समय है .मासिक चक्र के दौरान पूर्णतः विकसित महिला के शरीर से डिंबक्षरण के दौरान अंडा निकलता है ,साथ ही गर्भाशय की लाइनिंग ,एण्डोमीट्रियम उसी समय विकसित होती है .डिंबक्षरण के बाद यह लाइनिंग प्रजनित अंडे को तैयार करती है और गर्भधारण होता है .यदि गर्भधारण नहीं हो पाता ,तो एक नया मासिक चक्र होता है .यह एण्डोमीट्रियम और रक्त उत्पादकों का हिस्सा होता है जो योनि के रास्ते बाहर निकलता है .
Circular flow chart with shiny center with a female figure showing the average number of days days in a menstrual cycle and the period on menstruation and ovulation - stock vector
आमतौर पर मासिक चक्र औसतन २८ दिन का होता है -
इसके तीन चरण होते हैं -
पहले चरण में माहवारी [एक से पांच दिन तक ]
हार्मोन्स चक्र [६ से १३ दिन तक ]
प्रजनन के लिए उपयुक्त [१४ से २८ ]
इस प्रकार यह माहवारी पूर्णतः महिलाओं की गर्भधारण की क्षमता से जुड़ा मासिक चक्र है जिसे भारतीय समाज में फैली अशिक्षा ,अज्ञानता व् पुरुष वर्ग की नारी जाति पर आधिपत्य की भावना के कारण पूर्णरूपेण उसके पवित्र-अपवित्र होने से जोड़ दिया गया और परिणामतः उसे धार्मिक क्रियाकलाप से वर्जित की श्रेणी में खड़ा कर दिया गया .नारी जाति द्वारा स्वयं पुरुषों की सोच को ऊपर रखना ,घर गृहस्थी के कार्यों के लिए उनके अधीन होना और अशिक्षित होना भी उसे अपवित्र बनाता चला गया जबकि प्राचीन काल की जो राजसी व् ब्राह्मण कन्यायें थी वे उच्च शिक्षित होने के कारण वे सभी धार्मिक कार्य करती थी जो पुरुष वर्ग किया करता था .कैकयी ,कौशल्या ,सीता ,सावित्री आदि राजवधू व् राजकन्याएँ जहाँ गायत्री मन्त्र का खुले रूप में उच्चारण करती थी वहीं गार्गी ,अपाला ,विदुषी आदि ब्राह्मण कन्यायें भी गायत्री मन्त्र का उच्चारण करती थी .
हमारी भारतीय सामाजिक संरचना आरम्भ से ही ऐसी रही कि पुरुष घर के बाहर की जिम्मेदारियां सँभालते रहे और महिलाएं घर-परिवार और उससे जुडी जिम्मेदारियां निभाती रही .घर के धार्मिक रीति-रिवाजों में सक्रियता ने महिलाओं को सामाजिक परिवेश में भी धार्मिक रूप से सक्रिय किया .यहाँ भी पुरुषों ने नारी को केवल श्रोता की भूमिका तक सीमित करने का प्रयास करते हुए उसे अशुद्ध शरीर की संज्ञा दी किन्तु नारी ने अपनी आध्यात्मिक सक्रियता और धार्मिक आयोजनों से प्राप्त उच्च ज्ञान को हासिल कर पुरुषों को उनके ही जाल में फंसा दिया और परिणाम यह हुआ कि आज महिलाएं प्रवचन भी दे रही हैं .गृह प्रवेश की पूजा से लेकर शादी और श्राद्धकर्म भी करवा रही हैं यानि अब इस क्षेत्र में भी सामाजिक बेड़ियां टूट रही हैं .पिछले २० सालों में काफी संख्या में महिलाएं पुजारी बन रही हैं .धार्मिक कर्मकांड को उसी कुशलता से करवा रही हैं जिस कुशलता से पिछले कई सालों से पुरुष पुजारी करवाते रहे हैं .लखनऊ की मीनाक्षी दीक्षित ,सावित्री शुक्ला व् सरिता सिंह आदि कुछ ऐसी ही उदाहरण हैं .मीनाक्षी की उम्र तो मात्र २४ साल है और वह कई जगहों पर पूजा पाठ और मुंडन संस्कार ,जन्मदिन संस्कार आदि करवा चुकी है .पुणे स्थित महिला पुजारी मञ्जूषा के अनुसार ,'' धार्मिक रीति रिवाजों में महिलाओं की भूमिका हमेशा से रही है और इसे कोई नकार भी नहीं सकता .''
भारतीय समाज में आध्यात्मवाद एवं सांसारिकता में समन्वय स्थापित करने का प्रारम्भ से ही प्रयत्न किया गया है .यहाँ त्याग एवं भोग दोनों को ही महत्व दिया गया है .भारतीय संस्कृति में इस बात को विशेष महत्व दिया गया है कि मनुष्य धर्म के अनुसार अपने कर्तव्य का पालन करे .वह संसार में रहता हुआ त्याग व् भोग की ओर प्रेरित हो और अंत में मोक्ष की प्राप्ति करे .इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर एक क्रमबद्ध जीवन व्यवस्था बानी और परिणाम स्वरुप व्यक्ति का जीवन चार भागों में बाँटा गया जिसे आश्रम व्यवस्था कहा गया और इसी आश्रम व्यवस्था का दूसरा आश्रम है ''गृहस्थाश्रम '' जिसमे एक हिन्दू विवाह संस्कार के पश्चात ही प्रवेश करता है और हिन्दुओं के लिए विवाह एक आवश्यक संस्कार एवं कर्तव्य माना गया है .प्रत्येक गृहस्थ से यह अपेक्षा की जाती है कि वह प्रतिदिन ब्रह्मयज्ञ ,देवयज्ञ एवं नृयज्ञ आदि पांच महायज्ञ करे .यज्ञ में पति एवं पत्नी दोनों का होना आवश्यक है .तैतरीय ब्राह्मण नमक धर्मग्रन्थ में उल्लेख है कि बिना पत्नी के पुरुष को यज्ञ करने का कोई अधिकार नहीं है .अविवाहित पुरुष अधूरा है , पत्नी उसका अर्ध भाग है .मर्यादा पुरुषोत्तम राम जब अश्वमेघ यज्ञ करने लगे तो सीताजी की अनुपस्थिति के कारण वह यज्ञ पूरा करने के लिए उन्हें सीताजी की सोने की प्रतिमा बनानी पड़ी थी .
यह तो रही नारी के पत्नी रूप में सहयोग की बात पर जब बात मुख्य रीति रिवाज को करने की आती है तो पुरुष आगे आ जाते हैं और इस बात की व्याख्या इस रूप में भी की जाती है कि महिलाएं अशुद्ध होती हैं और धार्मिक अनुष्ठानों को करवाने की क्षमता उनमे नहीं है .वे यह भी कहते हैं कि हिन्दू सनातन धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी सोलह संस्कार यज्ञ से ही प्रारम्भ होते हैं एवं यज्ञ में ही समाप्त हो जाते हैं और यज्ञ कौन करा सकता है इस सम्बन्ध में कई स्थानों पर वर्णित है कि उपनयन संस्कार के पश्चात ही व्यक्ति वेद व् स्वाध्याय का अधिकारी बनता है और तत्पश्चात यज्ञ का अधिकारी और स्त्रियां यज्ञ करने की अधिकारी नहीं मानी जाती क्योंकि न तो उन्हें वेदों के अध्ययन का अधिकार प्राप्त है और न ही वे यज्ञोपवित धारण करती हैं और इसी बात को ध्यान में रख पुणे स्थित महिला पुजारी मञ्जूषा कहती हैं कि -''यही वजह है कि जब मुझ जैसी महिलाएं इस क्षेत्र में आने लगी तो इसका प्रखर विरोध भी हुआ .''
हिन्दू आर्य समाजियों में सर्वविदित है कि महिलाओं का भी उपनयन संस्कार होता है पर इस तथ्य से भी पुरुषों के नारी विरोध पर लेशमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ता ,वे महिलाओं को अपवित्र व् भावुक कह यज्ञ व् श्राद्ध संस्कार जैसे धार्मिक कार्य कराने के अधिकार को सिरे से ख़ारिज कर देते हैं .उनके अनुसार वे इन कठिन रीतियों को सही तरीके से नहीं निभा सकती .
पर आज यज्ञ , पूजा-पाठ हो या फिर प्रवचन पुरुषों का वर्चस्व टूट रहा है और नारी को अपवित्र व् कमजोर दिखाने का उनका कुटिल जाल भी क्योंकि आज महिलाएं ये सब काम कर रही हैं ,करा रही हैं .माँ आनंदमूर्ति ,माँ अमृतानंदमयी ,साध्वी ऋतम्भरा ,प्रेमा पांडुरंग ,निर्मल देवी आदि नाम बस उदाहरण मात्र हैं कि कैसे ये साध्वी धर्म और आस्था के क्षेत्र में भी अपनी स्थिति मजबूत कर चुकी हैं .माता अमृतानंदमयी उर्फ़ अम्मा पूरी दुनिया में जादू की झप्पी यानी असीम प्रेम बाँटने वाली अम्मा के नाम से प्रसिद्द हैं .संसार भर से आये असंख्य श्रद्धालु इनकी शरण में आकर अपनी समस्याओं और कष्टों से मुक्ति पाते हैं .साध्वी निर्मला देवी कर्मकांड के विपरीत जीवन को सरल बनाने के लिए सहजयोग का प्रवचन देती हैं .मन्त्र के माध्यम से जीवन को कैसे सुखमय और स्वस्थ बनाया जाये यह उनके प्रवचन का मुख्य आधार है .सभी धर्मों में विश्वास करने वाली आनंदमूर्ति गुरु माँ विभिन्न चैनलों पर प्रवचन देने के साथ साथ देश विदेश में होने वाले धार्मिक आयोजनों में भी हिस्सा लेती हैं .
इसके साथ ही शास्त्रीय मत के हिसाब से महिलाओं का श्राद्धकर्म करना भी वर्जित नहीं है .विशेष परिस्थितियों में वह श्राद्धकर्म कर सकती हैं .पुत्र को वंश का प्रतीक कहा गया है .शास्त्रों के अनुसार पुम् नामक नरक से मुक्ति दिलाने वाले को पुत्र कहा गया है लेकिन बेटी को भी पुत्री कहा गया है इसका स्पष्ट अर्थ है कि बेटी को श्राद्धकर्म से अलग नहीं किया गया है .वह श्राद्धकर्म कर सकती है .गरुड़ पुराण में भी महिलाओं के इस अधिकार को शास्त्रसम्मत माना गया है और इसी का परिणाम है कि आज सोच बदल रही है .प्राचीन काल के समान ही नारी को उसके शास्त्र सम्मत ये अधिकार मिल रहे हैं .आये दिन समाचार पत्रों में बेटी द्वारा अपने माता-पिता के अंतिम संस्कार व् श्राद्ध कर्म करने के समाचार सामने आ रहे हैं .प्रसिद्द नृत्यांगना शोभना नारायण के पिता को जब अग्नि देने का प्रश्न उठा तो माँ ने कहा ,'' शोभना देगी .'' विरोध के स्वर उठे किन्तु इंदिरा गांधी के वहां पहुँचने पर और उनके यह कहने पर कि अग्नि शोभना ही देगी शोभना ने ही पिता की चिता को अग्नि दी और दो दिन बाद उनके फूल चुनने शोभना की छोटी बहन रंजना गयी .
आज इन महिला पंडितों की इच्छाशक्ति और नारी सशक्तिकरण का ही नतीजा है कि भले ही शंकराचार्य इन्हें मान्यता नहीं दे रहे पर समाज इन्हें स्वीकार रहा है .इनकी शुद्ध चित्तवृत्ति और लगन को पुरुषों की अशुद्ध अपवित्र सोच से ऊपर स्थान मिल रहा है .वर्षों से जिस बहकावे में नारी को घेर और उसे निरक्षर रख घर की चारदीवारी में उसकी सुरक्षा देखभाल को केंद्र बना पुरुषों ने जो उसे कूपमंडूक बनाने की चेष्टा की आज वह निष्फल होती जा रही है .विज्ञान उन्नति कर रहा है .शिक्षा पैर पसार रही है . हर तरफ या कहें चंहु ओर ये उजाला फ़ैल रहा है और सच सामने आ रहा है .
गर्भधारण महिलाओं को माँ बनने के सौभाग्य स्वरुप प्राप्त होता है और यह नारी को ब्रह्मा जी द्वारा प्राप्त वरदान भी है और मासिक धर्म उसी का एक पूर्व चरण ,जिसे पुरुषों द्वारा महिलाओं के दिलों-दिमाग में उनकी अशुद्धता का एक लक्षण बता कर भर दिया गया.वह पुरुष जिसका शुक्राणु [स्पर्म ] महिला के अंडे [एग ] से मिलता है और जो पुरुषों के वंशवृद्धि का जरिया बनता है उसे महिला के शरीर में धारण करने की क्षमता इस सृष्टि से मिली .नौ महीने कोख में उसे संभलकर रख एक नए जीवन को जन्म दे वह पुरुष द्वारा कमजोर अशुद्ध ठहराई गयी और पुरुष मात्र अपने शुक्राणु का स्थानांतरण कर शुद्धता का फरिश्ता बन गया ,जिसे आज के विज्ञान की तरक्की ने और सृष्टि के आरम्भ से मौजूद हमारे आध्यात्म दोनों ने स्पष्ट रूप से खोलकर रख दिया और बता दिया कि ''अशुद्ध नारी शरीर नहीं बल्कि पुरुष सोच है .''और नारी मन यह जान बस इतना ही कह पाया -
''हमीं को क़त्ल करते हैं हमीं से पूछते हैं वो ,
शहीदे नाज़ बतलाओ मेरी तलवार कैसी है .''

शालिनी कौशिक
एडवोकेट 
कांधला (शामली)