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मंगलवार, 29 जनवरी 2019

आज वैचारिक अकाल क्यों--------डा श्याम गुप्त

आज वैचारिक अकाल क्यों
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क्या स्वामी विवेकानंद व स्वामी दयानंद के बाद कोई महान संत, ज्ञानी विद्वान् हुआ है ? क्या सत्यार्थप्रकाश के बाद कोई महान ग्रन्थ लिखा गया ? नहीं …. क्यों !
इसके मूलतः दो कारण हैं------
१.----स्त्रियों के धन कमाने हेतु सेवा कार्य में लग जाना…..पुरुषों से बराबरी / होड़ हेतु पुरुषों जैसे कार्य में जुट जाना, गृहकार्य त्याग कर घर से बाहर रहने, संतान के स्वयं पालन-पोषण से विरत हो जाने से… पुरुष व संतान में वैचारिक, सांस्कृतिक स्वतंत्र चिंतन का उत्पन्न न हो पाना ….

२.----पुरुषों का गृहकार्य में, बच्चों के लालन पालन में, स्त्रियों के कार्य लग जाने के कारण, विचार व वैचारिक कार्य, अध्ययन आदि हेतु समय न मिल पाने, उनमें इच्छा-शक्ति न रहने, महत्ता खो देने के कारण, पुरुष में सांस्कृतिक व स्वतंत्र चिंतन भाव एवं सतत ज्ञान प्राप्ति भाव, प्रतिभा संपन्नता का उत्पन्न न हो पाना ---


अतः भविष्य की संतति के सम्मुख केवल धन की महता, स्वयं के खाने-कमाने की महता का प्रदर्शन तथा देश, समाज, संस्कृति के बारे में माता-पिता द्वारा उचित दिशा निर्देश के न होने के कारण सारे समाज से ही चिंतन, धर्म, संस्कृति, ज्ञान हीनता ही इस वैचारिक अकाल का मूल कारण है |


हम समय रहते चेत जायें |

रविवार, 13 जनवरी 2019

गौर फरमायें


जब तक रहेगी स्त्री एक देह मात्र ,
नोचीं  जाएगी ऐसे ही
नर-गिद्धों द्वारा |
रोज़ छपेंगी ख़बरें
इंसानियत के शर्मसार होने की ,
और नाचेगी हैवानियत
क्या खूब होगा नज़ारा !!
देह तो देह है
सीधा- सा है इसका गणित ,
सात माह , सत्रह बरस या सत्तर साल ,
कामुक के लिए है बस लूटने का माल |
बनेंगे कानून , छिड़ेगी बहस -बालिग है या नाबालिग ,
फांसी दी जाये या उम्र कैद ,
कटते जायेंगें साल-दर-साल और कामुकता 
का राक्षस किसी और नाम ,रूप, स्थान पर 
कर डालेगा स्त्री-देह को हलाल 
और फिर उठेंगे 
स्त्री के चरित्र ,
उसके पहनावे ,
उसके होने पर ही अजीबोगरीब सवाल ||

                       

  पितृसत्ता जरा गौर फरमाए !

फिर हुआ बलात्कार ,
शुरू हुई छानबीन ,
लड़की ने पहना क्या था ?
लड़की घर से निकली क्यों थी ?
नतीजे आयेगें कुछ इस प्रकार -
लड़कियां बिगड़ती जा रही हैं ,
शर्म-हया बेच कर खा रही हैं ,
कुछ कारगर उपाय बतलाये जायेंगें -
इनसे मोबाइल फोन वापस लिए जाये ,
जींस पहनने पर प्रतिबन्ध लगाया जाये ,
अंत: वस्त्रों का रंग निर्धारित किया जाये ,
लेकिन 
लेकिन 
लेकिन जब  
बलात्कार हुआ हो  सात माह की बच्ची के साथ  ,
तब उस पर क्या-क्या थोपा जाये 
पितृसत्ता जरा गौर फरमाए !!!

                    -डॉ शिखा कौशिक 'नूतन'...

गुरुवार, 10 जनवरी 2019

महिलायें, घर में और बाहर -- डा श्याम गुप्त


महिलायें, घर में और बाहर -----देखें चित्र में --- 


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यह विचार #गलत है कि -----
स्त्री-पुरुष के मध्य कामों का बंटवारा महज़ एक परम्परा है और लिंग के मुकाबले काम की बजाय उसे काम का चुनाव करने दिया जाय
-------वस्तुतः यह महज़ एक परम्परा ही नहीं अपितु एक सोची समझी हुई सुदृढ़ परम्परा है| 
------ जव मानव समाज उन्नत होकर घुमंतू से स्थिर हुआ तो स्त्री-पुरुष दोनों ही भोजन की खोज में घर से बाहर जाया करते थे और आज के पशु पक्षियों के बच्चों की भांति उनकी संतान भी असुरक्षित रह जाती थी, अतः किसी एक को निवास स्थान पर रुकने की आवश्यकता उत्पन्न हुई |
------ स्त्री शारीरिक बल में कमजोर व गर्भधारण के समय अक्रिय परन्तु #आपत्तिकाल में सदा #प्रत्युत्पन्नमति एवं #तात्कालिक प्रयासों में #तेज होने के कारण उसने स्वयं ही गृह व संतति सुरक्षा का कार्य स्वीकार किया |
------- यह मानव इतिहास का #सर्वप्रथमकार्यविभाजन था, समाज व संतति की सुरक्षा हेतु | पुरुष का कार्य व दायित्व गृह, संतति व स्त्री का पालन पोषण स्थिर हुआ | 
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यह सही है कि----
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हम कर सकते हैं “ --महिलायें सब कुछ कर सकती हैं--- 
-------कब नहीं कर सकती थीं, परन्तु #आपत्तिकालमें क्योंकि “आपत्तिकाले मर्यादा नास्ति” | प्रथम कार्य-विभाजन का मूल अस्तित्व ही इस तथ्य पर था |
------ प्रत्येक ऐसे काल में जब पुरुष वर्ग असहाय हुआ है स्त्री ने ही समाज को संरक्षित करने की कमान सम्हालने का महत कार्य किया है |
------- चाहे सरमा-सरस्वती के रूप में या दुर्गा-पार्वती-काली के रूप में, घोषा, भारती, इडा, कैकेयी, सीता, राधा, सावित्री, मदालसा, या सत्यभामा व लक्ष्मीबाई, जीजाबाई मुगलों की सेना व आतातायी विधर्मियों से लोहा लेने वाली वीरांगनायें हों| 
------परन्तु सामान्य काल में उन्हें अपने स्वाभाविक कार्यों से विमुख होकर यह कृत्य करने के क्या आवश्यकता | 
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यह भी उचित विचार-कथ्य नहीं है ---
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कि एक महिला कमाएगी तो परिवार की स्थिति सुधरेगी और देश समाज की भी |
------- घर, पत्नी व संतान का पालन-पोषण ==दायित्व पुरुष का है== उसे क्यों इस कार्य से छुटकारा दिया जाय, नाकारा बनाया जाय | स्त्री क्यों इस कार्य को अपने हाथ में ले | 
-------फिर संतान, घर व समाज की देखभाल कौन करेगा जो अधिक महत्वपूर्ण है, पुरुष निश्चय ही इसमें उतना सक्षम नहीं है| 
------#माँ व #सेविका में अंतर होता है यह सभी जानते हैं गुणवान व सक्षम माँ से पलने वाले संतान का पालन अक्षम व बाहरी तत्व, अनपढ़ या कम गुणों वाली स्त्री से होना उसका ही नहीं ==देश-समाज का भी दुर्भाग्य ==है | ----------------#संततिवर्धन के दायित्व में कमी होना देश-समाज-राष्ट्र व मानवता की सबसे बड़ी क्षति है, जो आज युवाओं व बालकों के कृतित्वों से परिलक्षित हो रही है | 
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सोचिये कि क्यों आखिर महिलाओं को इतने लम्बे समय से सेवा एवं कार्य करने के इतने प्रगतिशील फैसलों के पूर्ण रूप से लागू होने के बाद भी अभी तक उनको ==पुरुषों के बराबर भुगतान नहीं किया जा रहा==है, क्यों सभी देशों में पुरुषों को उनसे बेहतर माना जाता है |
------- यह केवल नकारात्मक मानसिकता नहीं अपितु आर्थिक फैसले हैं जिनके अनुसार महिलायें कम प्रोडक्शन-लाभ देती हैं | एवं यह सत्य ही है |

बुधवार, 9 जनवरी 2019

कितना अस्थाई ,कम टिकाऊ व अवैज्ञानिक है आज का आधुनिक विज्ञान , वैज्ञानिक खोज व अनुसंधानिक सत्य ....डा श्याम गुप्त

कितना अस्थाई ,कम टिकाऊ व अवैज्ञानिक है आज का आधुनिक विज्ञान , वैज्ञानिक खोज व अनुसंधानिक सत्य ....

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----देखिये संलग्न चित्र में ---
-----वही विज्ञान (चिकित्सा विज्ञान व एलोपैथिक चिकित्सक ) जो आज से लगभग ३०-४० वर्ष पहले बच्चे को तुरंत माँ के स्तन का दूध पिलाने को मना करता था एवं माँ के स्तन की प्रथम दुग्ध-धार ( कोलोस्ट्रम ) को पिलाने से मना करता था कि वह हानिकारक है ....और डब्बा बंद पाउडर दुग्ध पिलाना प्रारम्भ कर दिया जिससे ....

-----न जाने कितने बच्चों की प्रतिरक्षा तंत्र खतरे में डाल कर रोगों का घर बना डाला ----माताओं को भी विभिन्न रोगों से ग्रसित कर दिया .....
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----वही आज उसी दुग्ध व कोलोस्ट्रम को प्रतिरक्षातंत्र के लिए लाभदायक बता रहा है ...|

---जबकि भारतीय माता व शिशु-ज्ञान सदा से ही उन्हें लाभदायक मानता आरहा था व है |



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