पेज

रविवार, 31 दिसंबर 2017

अब हज अकेले कर लियो मुस्लिम औरतों

pm modi says muslim women can go on haj without male guardian
तीन तलाक के खिलाफ लोकसभा से बिल पारित किए जाने के ठीक बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हज यात्रा को लेकर मुस्लिम महिलाओं के हक में आवाज उठाई है। पुरुष अभिभावक के बिना महिलाओं के हज यात्रा पर रोक को भेदभाव और अन्याय बताते हुए पीएम ने कहा कि उनकी सरकार ने इसे खत्म कर दिया है। पीएम ने साल के अंतिम 'मन की बात' में कहा कि मुस्लिम महिलाएं अब पुरुषों के बिना भी हज यात्रा पर जा सकती हैं।     मुस्लिम महिलाओँ को लेकर प्रधानमंत्री मोदी जी कुछ ज्यादा ही सक्रिय हैं और पहले तीन तलाक के मुद्दे पर वे मुस्लिम  महिलाओँ का साथ देते नज़र आये और अब वे महिलाओँ के अभिभावक के साथ के बिना हज पर जाने को लेकर उन्हें ललचाते नज़र आ रहे हैं लेकिन ये सब करते हुए वे मुस्लिम महिलाओँ के लिए कुरान में दिए गए निर्देशों की तरफ तनिक भी ध्यान नहीं दे रहे हैं जबकि स्वयं मुस्लिम महिलाओँ के अनुसार ''चलना तो हमें पाक कुरान के हुकुम के अनुसार ही है '' और कुरान में महिलाओँ के लिए कहा गया है -
सर्वप्रथम -
फुक़हा इस बात पर सहमत हैं कि पत्नी के लिए - बिना किसी ज़रूरत या धार्मिक कर्तव्य के - अपने पति की अनुमति के बिना बाहर निकलना हराम (निषिद्ध) है। और ऐसा करने वाली पत्नी को वे अवज्ञाकारी (नाफरमान) पत्नी समझते हैं।
‘‘अल-मौसूअतुल फिक़हिय्या’’ (19/10709) में आया है कि :
‘‘मूल सिद्धांत यह है कि महिलाओं को घर में ही रहने का आदेश दिया गया है, और बाहर निकलने से मना किया गया है ...  अतः उसके लिए बिना उसकी - अर्थात पति की - अनुमति के बाहर निकलना जायज़ नहीं है।
इब्ने हजर अल-हैतमी कहते हैं : यदि किसी महिला को पिता की ज़ियारत के लिए बाहर निकलने की ज़रूरत पड़ जाए, तो वह अपने पति की अनुमति से श्रृंगार का प्रदर्शन किए बिना बाहर निकलेगी। तथा इब्ने हजर अल-असक़लानी ने निम्न हदीस :
(''अगर तुम्हारी औरतें रात को मस्जिद जाने के लिए अनुमति मांगें तो तुम उन्हें अनुमति प्रदान कर दिया करो।’’ )
पर टिप्पणी के संदर्भ में इमाम नववी से उल्लेख किया है कि उन्हों ने कहा : इससे इस बात पर तर्क लिया गया है कि औरत अपने पति के घर से बिना उसकी अनुमति के नहीं निकलेगी, क्योंकि यहाँ अनुमति देने का आदेश पतियों से संबंधित है।’’ संक्षेप के साथ ‘‘अल-मौसूआ’’  से उद्धरण समाप्त हुआ।
दूसरा -
और इसी के समान वह लड़की भी है जो अपने वली (अभिभावक) के घर से उसकी अनुमति के बिना निकलती है। अगर उसका अभिभावक उसकी शादी करने के मामले का मालिक है, तो वह उसके सभी मामलों में उसके ऊपर निरीक्षण करने का तो और अधिक मालिक होगा। और उन्हीं में से यह भी है कि : वह उसे अपने घर से बाहर निकलने की अनुमति दे, या अनुमति न दे ; विशेषकर ज़माने की खराबी, भ्रष्टाचार और परिस्थितियों के बदलने के साथ। बल्कि वली (अभिभावक) पर - चाहे वह बाप हो या भाई - अनिवार्य है कि वह इस ज़िम्मेदारी को उठाए, और उसके पास जो अमानत (धरोहर) है उसकी रक्षा करे, ताकि वह अल्लाह तआला से इस हाल में मिले कि उसने अपनी बेटी को सभ्य बनाया हो, उसे शिक्षा दिलाई हो और उसके साथ अच्छा व्यवहार किया हो। तथा लड़की पर अनिवार्य है कि वह इस तरह की चीज़ों में, और भलाई के सभी मामले में उसका विरोध न करे, और अपने घर से अपने अभिभावक की अनुमति के बिना बाहर न निकले।
            और ऐसे में मोदी जी उन्हें हज पर अभिभावक के बिना जाने की आज़ादी दिलवा रहे हैं क्या वे नहीं जानते कि इस भारतीय समाज में औरतों की स्थिति कितनी ख़राब है ,मुस्लिम समाज तो आज तक पिछड़ेपन को अपनाये हुए है और ऐसे में उसमे महिलाओँ की स्थिति बद से बदतर हुई जा रही है और ऐसा नहीं है कि मुस्लिम महिलाओँ की इच्छाओं के खिलाफ ऐसा हो रहा है ,ये सब उनकी इच्छाओं को अनुसार ही हो रहा है और उन्होंने पाक कुरान का आदेश मानकर इन परम्पराओं को अपनाया हुआ है और जब कोई अपना सुधार खुद ही न चाहे तो उसका कोई कुछ नहीं कर सकता ,
         न केवल मुस्लिम महिला बल्कि हिन्दू महिला की स्थिति भी कुछ बेहतर नहीं है और वे भी आज अपने आदमी से मार खाना बुरा नहीं समझती हैं और यही कारण है कि आदमी औरत को अपने पिंजरे का पंछी ही मानता है ,हमारी फ़िल्में इसका जीता जागता सबूत हैं जिनमे ख़ुशी से गाया जाता है -
 ''शादी के लिए रजामंद कर ली ,
मैंने एक लड़की पसंद कर ली ,
अब ध्यान दीजिये -
''उड़ती चिड़िया पिंजरे में बंद कर ली 
मैंने एक लड़की पसंद कर ली ''
ऐसे ही -
''तेरे लिए चाँदी का बंगला बनाऊंगा 
 बंगले में सोने का ताला लगाऊंगा
ताले में हीरे की चाबी लगाऊंगा ''
       मतलब कुछ भी है यही है कि औरत आदमी के लिए बंद रखने की एक चीज़ है और औरत इस सबके बाद भी उसी मर्द की पूजा करती है उसके व्यव्हार को अपना भाग्य मानती है ,उदाहरण के लिए यशोदा बेन हैं जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने त्याग दिया और उन्होंने अपना सारा जीवन मोदी जी की भक्ति में लगा दिया मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने पर यशोदा बेन को आशा जगी भी कि शायद उनका वनवास समाप्त हो जाये किन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ लेकिन मोदी जी स्त्री स्वतंत्रता के पक्षधर हैं ये उन्होंने साबित भी किया है यशोदा बेन को छोड़कर ,न कि मुस्लिम या अन्य महिलाओँ को सामाजिक स्थिति के अनुसार बंदिनी बनाकर ,ये तो स्त्री मन है जो स्वयं बंदिशें स्वीकार करता है और उन्हें निभाता है और उसके द्वारा सब कुछ निभाने के बावजूद पुरुष मन अपने द्वारा अत्याचार की सारी हदें पार करा देता है ,
        ऐसे में ,हमें आवश्यकता होती है ऐसे मार्गदर्शक की जिसने अपने जीवन  में ऐसे उदाहरण को अपनाया हो और तभी अपने जैसा कुछ करने की प्रेरणा औरों को दी हो और प्रधानमंत्री मोदी जी के द्वारा अपने मन की बात में औरतों को अभिभावक के बिना जाने की बात कहना इसलिए संग्रहणीय है क्योंकि जब औरत को अभिभावक के बगैर छोड़ दिया जायेगा तब धार्मिक कर्तव्य निभाने के लिए उसे स्वयं ही तो जाना होगा ,कम से कम किसी ऐसे अभिभावक की तरफ तो नहीं देखना होगा जिसने उसे त्याग दिया हो और पाक कुरान के नियमों को न समझते हुए मोदी जी मुस्लिम महिलाओँ की स्थिति यशोदा बेन वाली ही करने जा रहे हैं ,
शालिनी कौशिक 
  [कौशल ]

रविवार, 17 दिसंबर 2017

गरमागरम मामला -लघुकथा

कॉलेज के स्टाफ रूम में  पुरुष सहकर्मियों के साथ यूँ तो रोज़ किसी न किसी मुद्दे पर विचार विनिमय होता रहता था पर आज निवेदिता को दो पुरुष सहकर्मियों की उसके प्रति की गयी टिप्पणी और उससे भी बढ़कर प्रयोग की गयी भाषा बहुत अभद्र लगी थी . हुआ ये था कि दिसंबर माह में पड़ रही सर्दी के कारण निवेदिता ने लॉन्ग गरम  कोट पहना हुआ था  ,इसी पर टिप्पणी करता हुआ  एक पुरुष सहकर्मी निवेदिता को लक्ष्य कर बोला- 'देखो मैडम को आज कितनी सर्दी लग रही है ,लॉन्ग गरम कोट ,नीचे पियोर वूलन के कपडे !''इस पर दूसरे पुरुष सहकर्मी ने भी उसका साथ देते हुए कहा-'' बहुत ही गरमागरम मामला है .'' ये सुनकर पहला पुरुष सहकर्मी ठहाका लगता हुआ बोला -'' अरे आप भी क्या कह रहे हो ....गरमागरम मामला .'' और उसके ये कहते ही दोनों मिलकर मुस्कुराने लगे और निवेदिता का ह्रदय पुरुष के इस आचरण पर क्षुब्ध हो उठा जो स्त्री को हर समय इस प्रकार प्रताड़ित करने से  बाज नहीं आता .निवेदिता ने सोचा कि वो इनसे पूछे कि क्या आप लोग अपनी बहन के साथ बाहरी पुरुषों को ऐसी मजाक करने की इजाज़त  दें सकेंगें ...यदि नहीं तो आप मेरे साथ ऐसी मज़ाक कैसे कर सकते हैं ?'' पर ये शब्द निवेदिता के मन में ही दबकर रह गए .
शिखा  कौशिक नूतन 

इस डर के आगे जीत नहीं




     कांधला के गांव श्यामगढ़ी में छात्रा सोनी को उसी के गांव के अमरपाल ने कथित एकतरफा प्रेम में बलकटी से मारकर मौत के घाट उतार दिया और जिस वक़्त ये घटना हुई छात्रा सोनी के साथ तकरीबन 50 छात्राएं  मौजूद थी किन्तु सिवाय सोनी की अध्यापिका के किसी ने उसे बचाने की कोशिश नहीं की और अब घटना के बाद छात्राएं स्कूल जाने से डर रही हैं .समाचारपत्र की खबर के मुताबिक घटना के चौथे दिन केवल चार छात्राएं स्कूल पहुंची .कितने कमाल की बात है कि अपनी जान की कितनी फ़िक्र होती है सभी को जो अपने सामने एक जीते जागते इंसान को मर जाने देते हैं और कातिल को उसे मारते देखते रहते हैं और आगे अगर घटना की गवाही की बात आये तो अपनी चश्मदीदी से भी मुकर जाते हैं .
        ऐसा नहीं है कि ये पहली घटना है कांधला में जो कई लोगों के सामने हुई .यहाँ अपराधी तत्व को पता है कि आम इंसान अपनी जान की कितनी फ़िक्र करता है इतनी कि उसके सामने कोई भी बड़े से बड़ी घटना हो जाये वह मुंह नहीं खोलता .16 फरवरी सन 1997 सुबह का वक्त था .कांधला के एक डाक्टर अपनी क्लिनिक पर गए जहाँ उन्होंने देखा कि उनका क्लिनिक का सामान वहां नहीं है ,पता करने पर पता चला कि उनके दुकान मालिक ने ,जिससे उनका उसे खाली करने को लेकर केस चल रहा था ये उसी का काम है और उसी ने उनका सामान नहर किनारे फेंक दिया है बस ये जानकर उन्हें गुस्सा आ गया ,जो कि स्वाभाविक भी था ,वे घर आकर अपने परिजनों को लेकर वहां फिर पहुंचे और वहां उस वक्त जबरदस्त भीड़ इकठ्ठा हो गयी जिसमे उनके दुकान मालिक व् उसके बेटों ने उन्हें पीट -पीटकर मौत के घाट उतार दिया और भीड़ में से न किसी ने उन्हें रोका और न ही इस घटना का कोई चश्मदीद गवाह मिला .
         ऐसे ही सितम्बर सन 1997  कांधला से एक व्यापारी साथ के व्यापारियों के पैसे लेकर सामान लेने के लिए दिल्ली जाता था उस दिन उसके साथ उसका पुत्र भी था ,कांधला से रेलवे स्टेशन का रास्ता ऐसा है जो अकेले में पड़ता है बस उस व्यापारी व् उसके पुत्र को लुटेरों ने घेर लिया ये नज़ारा पीछे आने वाले बहुत से व्यापारियों ने देखा क्योंकि उस दिन बाजार की छुट्टी होने के कारण और भी बहुत से व्यापारी सामान लेने जाते थे .घटना होती देख वे पीछे रुक गए क्योंकि घटना उनके साथ थोड़े ही हो रही थी लुटेरों ने पीटकर व् गोली मारकर दोनों बाप-बेटों को मार दिया और इस घटना का भी कोई चश्मदीद गवाह नहीं मिला जबकि शहर वालों को आकर घटना का पता उन्ही पीछे के डरपोक अवसरवादी व्यापारियों ने बताया .
       ऐसे ही अभी 11 दिसंबर 2017 को कांधला में स्टेट बैंक के पास एक कोचिंग सेंटर में गांव मलकपुर की एक छात्रा पढ़ने जा रही थी सारी सड़क चलती फिरती थी पूरी चहल पहल थी तभी एक लड़का जो लड़की के ही गांव का था उसे छेड़ने लगा ,लड़की ने थोड़ी देर बर्दाश्त किया पर और लोगों ने ये देखा भी और किसी ने कुछ नहीं कहा ,आख़िरकार लड़की का धैर्य जवाब दे गया और उसने चप्पल निकालकर लड़के को खूब पीटा तब दो एक लोग भी सड़क पर उसके समर्थन में आये पर पहले शायद ये सोचकर नहीं आये कि हमारी बहन बेटी थोड़े ही है जो हम बोलें.
       इसी तरह अगर लोग डरते रहे तो अपराधियों का हौसला बढ़ता ही जायेगा .ये एक निश्चित बात है कि वारदात करने वाले अपराधी बहुत कम होते हैं और चश्मदीद बहुत  ज्यादा किन्तु एक आम मानसिकता अपराधी जानता है कि तेरी दुर्दांतता के सामने कोई नहीं आएगा ,तू कुछ भी कर कोई नहीं बोलेगा इसलिए भीड़ भी उनका वारदात करने का इरादा डिगा नहीं पाती और अगर देखा जाये तो लड़के-लड़की का भेद करने वाले कितने गलत हैं अरे जो गुण लड़कों में है वही तो लड़कियों में भी है फिर काहे का अंतर .लड़के अगर अपनी जान की फ़िक्र करते हुए अपराधी को अपराध करने देते हैं तो लड़कियां भी तो यही कर रही हैं .लड़के अगर किसी की हत्या होने पर बाजार-क़स्बा सूना कर देते हैं तो लड़कियां स्कूल सूना कर रही हैं फिर कम से कम अब तो ये भेद ख़त्म हो जाना चाहिए और इसमें गढ़ीश्याम की लड़कियों के सिर पर बहादुरी का सेहरा बांधना चाहिए .
         चलिए यह तो रहा दुःख इंसानी मतलबी मिजाज व् अवसरवादिता की आदत का जिसमे इंसान यह नहीं देखता कि जो हश्र आज दूसरा झेल रहा है कल को तू भी झेल सकता है इसलिए तुझे अपना हौसला बढ़ाना चाहिए न कि अपराधी या अपराध का .अभी  हाल ही में एक डब्ड  फिल्म ''बेख़ौफ़ खाकी ''देखी उसी की प्रेरणा से मैं आप सबसे भी यही कहती हूँ कि हमारी मदद को हमेशा पुलिस नहीं आएगी हम सब जिस आपदा का सामना स्वयं कर सकते हैं उसका सामना हमें स्वयं करना चाहिए क्योंकि यदि हम अपने में हौसला रख इन विपदाओं का सामना करेंगे तो ये विपदाएं हमारे सामने पड़ने से पहले कम से कम 100 बार सोचेंगी और अगर ऐसा नहीं करेंगे तो हमेशा डरते डरते ही ज़िंदगी गुजारते रहेंगे और ये डर ऐसा डर है जिसके आगे जीत नहीं .
शालिनी कौशिक
   [कौशल] 

गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

और बचा लो इज़्ज़त - बेटी तो फालतू है ना


     छेड़खानी महिलाओं विशेषकर स्कूल-कॉलेज जाने वाली छात्राओं के साथ प्रतिदिन होने वाला अपराध है जिससे परेशानी महसूस करते करते भी पहले छात्राओं द्वारा स्वयं और बाद में अपने परिजनों को बताने पर उनके द्वारा दरकिनार कर दिया जाता है किन्तु यही छेड़खानी कभी छात्रा के विरोध या छात्रा द्वारा पहले लड़के की पिटाई ,यहाँ तक की चप्पलों तक से पिटाई तक जाती है ,कभी कभी छात्रा के परिजनों द्वारा विरोध या फिर परिजनों के व् छेड़छाड़ करने वाले लड़के व् उसके समूह की मार-पिटाई तक पहुँच जाती है .कभी कभी रोज-रोज की छेड़छाड़ से तंग आ छात्रा आत्महत्या कर लेती है और कभी लड़के द्वारा छात्रा की हत्या की परिस्थिति भी सबके समक्ष यह चुनौती बन खड़ी हो जाती है कि अब हम अपनी बेटियों को कैसे पढ़ाएं ?
    अभी 10  दिसंबर 2017 को ही कांधला कस्बे में स्टेट बैंक के पास कोचिंग सेंटर में जाती छात्रा को छेड़ने पर लड़के को छात्रा से ही चप्पलों से पिटना पड़ा था किन्तु अभी कल 13  दिसंबर 2017 को कांधला के गांव गढ़ीश्याम में गांव के अमरपाल ने गांव की ही 16 वर्षीय सोनी को 50  छात्राओं के बीच से खींचकर बलकटी से मार दिया और वहशीपन इतना ज्यादा था कि वह तब तक लड़की को बलकटी से मारता रहा जब तक कि वह मर नहीं गयी ,यहाँ तक कि उसे बचाने में उसकी टीचर को भी चोट आयी उन्होंने कातिल के पैर भी पकडे पर बात नहीं बनी , वह लड़की को मारकर ही माना .   
        इन दोनों ही मामलों में लड़के बहुत पहले से छेड़छाड़ कर रहे थे और ये बात परिजनों को भी पता थी ,पर वे कथित इज़्ज़त ,जो वे अपने मन में स्वयं सोच लेते हैं कि अगर किसी को पता चल गया कि हमारी लड़की के साथ ऐसा हो रहा है तो हमारी क्या इज़्ज़त रहेगी ,की खातिर चुप रहे .छेड़खानी अपराध भी है ये जानते हुए भी रिपोर्ट नहीं की .पहले मामले में एस.पी.शामली के द्वारा स्वयं संज्ञान लेने पर लड़के का सामना कर उसकी पिटाई करने पर जब छात्रा का सम्मान किया गया तब उसके परिजनों का हौसला बढ़ा और उन्होंने रिपोर्ट दर्ज कराई किन्तु दूसरे मामले में रिपोर्ट न कराकर जो इज़्ज़त लड़की के परिजनों ने बचाई थी वह लड़की की जान पर भरी पड़ गयी और ऐसा नहीं है कि ऐसे हादसे यहीं हो रहे हों इलाहबाद के मेजा में भी 16 वर्षीय प्रेमा की भी कातिल ने गर्दन काटकर हत्या कर दी .   
    ये हादसे थमने वाले नहीं हैं अगर लोग अपनी इज़्ज़त को इतनी मामूली समझ अपराधियों को यूँ ही खुले में घूमने देंगें जबकि कानून ने इस सम्बन्ध में व्यवस्था की है ,अगर नहीं जानते हैं तो जान लें -
      भारतीय दंड संहिता की धारा 354 -क में लैंगिक उत्पीड़न अर्थात छेड़खानी के बारे में बताया गया है और इसके लिए दंड का प्रावधान किया गया है -
1-ऐसा कोई निम्नलिखित कार्य ,अर्थात -
   i -शारीरिक संपर्क और अंगक्रियाएँ करने ,जिनमे अवांछनीय और लैंगिक सम्बन्ध बनाने सम्बन्धी स्पष्ट प्रस्ताव अंतर्वलित हों ; या 
  ii -लैंगिक स्वीकृति के लिए कोई मांग या अनुरोध करने ; या 
  iii -किसी स्त्री की इच्छा के विरुद्ध बलात अश्लील साहित्य दिखाने ;या 
  iv - लैंगिक आभासी टिप्पणियाँ करने ,
      वाला पुरुष लैंगिक उत्पीड़न के अपराध का दोषी होगा .
2 -ऐसा कोई पुरुष ,जो उपधारा [1 ]के खंड  [i ] या खंड [ii ] या खंड [iii ]में विनिर्दिष्ट अपराध करेगा ,वह कठोर कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी ,या जुर्माने से ,या दोनों से दण्डित किया जायेगा .
3 -ऐसा कोई पुरुष जो उपधारा [1 ] के खंड [iv ] में विनिर्दशित अपराध करेगा ,वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से ,जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी ,या जुर्माने से ,या दोनों से दण्डित किया जायेगा .
    इस प्रकार छेड़खानी को हमारी दंड संहिता में दण्डित किया गया है जिसे आम जनता ढंग से न जानते हुए या जानते हुए भी अपनी बेइज़्ज़ती के नाम पर अपराधियों को खुले आकाश के नीचे घूमने का मौका देती है .अब भले ही अपराधी 302 आई.पी.सी.में हत्या का दोषी हो सजा भुगते पर ऐसे में अपनी बच्ची की तो झूठी इज़्ज़त के नाम पर आप बलि चढ़ा रहे हैं जबकि अगर समय से अपराध पर कार्यवाही कर अपराधी को एक या तीन साल की सजा करा दी जाये तो अपराधी पर से एकतरफा प्रेम का भूत भी उतर सकता है और अगर नहीं उतरता तो कम से कम ये पछतावा तो नहीं रहता कि हमने अपनी बच्ची को खुद मौत के मुंह में धकेल दिया .अब ये आप पर है कि आप अपने स्नेह-प्यार  के नाम पर अपनी बेटी को बचाएंगे या झूठी इज़्ज़त के नाम पर अपराधी को -सोचिये और निर्णय कीजिये .
शालिनी कौशिक 
     एडवोकेट
  [कानूनी ज्ञान ] 


बुधवार, 13 दिसंबर 2017

सैल्यूट टू शामली एस.पी.डॉ.अजयपाल शर्मा


    शामली जिला अपराधियों से भरपूर क्षेत्र ,कोई भी अधिकारी पुलिस का ज्यादा समय नहीं टिक पाता और इन्हीं अपराधियों की भरमार ने जन्म दिया ''कैराना पलायन प्रकरण '' को .जब दिनदहाड़े अपराधी वारदात को अंजाम देने लगें ,दुकान पर बैठे व्यापारी को गोली मार मौत के घाट उतारने लगें तो हाहाकार मचनी स्वाभाविक थी ,मुकीम काला ,फुरकान आदि दर्जन भर अपराधियों ने क्षेत्र में अपनी अच्छी घुसपैठ बना ली थी तभी शामली जिले में आगमन होता है एस.पी.डॉ.अजय पाल शर्मा का ,कुछ खास नहीं लगता ,रोज़ आते हैं नए अधिकारी और चले जाते हैं ,ये भी आये हैं चले जायेंगे ,पर धीरे-धीरे नज़र आता है नवागत एस.पी.का अपराध व् अपराधियों की समाप्ति का दृढ-संकल्प और आज इसी दृढ-संकल्प का परिणाम है कि क्षेत्र सुरक्षा की हवा में साँस ले रहा है ,पर फिर भी बहुत खास नहीं लगता ,नहीं लगता कि कुछ अलग अंदाज़ लिए हैं हमारे नवागत एस.पी.महोदय ,रोज़-रोज़ समाचार पत्रों में माननीय एस.पी.डॉ.अजय पाल शर्मा के सम्मान की ख़बरें छपती हैं जिससे पता चलता रहता है अपने नवागत एस.पी.का अपराध व् अपराधियों के खिलाफ युद्ध-स्तरीय अंदाज और धीरे-धीरे थोड़ी खासियत नज़र आने लगती है अपने जिले के इस अधिकारी में किन्तु लगता यही रहता है कि सब कुछ कर वही रहे हैं जो इनके विभाग के कार्य हैं .लगता यही है कि बस ये कर रहे हैं पहले वाले अधिकारी नहीं करते थे और कुछ विशेष नहीं ,किन्तु एकाएक दिमाग में घंटियां बजती हैं और मन कहता है कि नहीं ऐसा नहीं है , ये माननीय अन्यों से अलग हैं .
        अभी हाल ही में देश में 4  से 10 दिसंबर तक महिला सशक्तिकरण सप्ताह मनाया गया जिसमे शामली के पुलिस विभाग ने डॉ.अजय पाल शर्मा की देखरेख में बहुत ही बढ़-चढ़कर कार्य किया .माननीय एस.पी.साहब के निर्देशानुसार गोहरणी गांव के दलित किसान की बेटी कोमल को एक दिन की कोतवाल बनने का मौका दिया गया और इस मौके ने एक नयी दिशा दी नारी सशक्तिकरण को .एक सामान्य छात्र का कोतवाल बनना न केवल उसके लिए वरन उसकी साथी छात्राओं के मन में एक प्रेरणा उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त है ,ये एहसास पैदा करने के लिए काफी है कि तुम भी कुछ हो और कुछ बन सकती हो ,दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर सकती हो और ये एहसास एक नारी के मन में आना उसकी समस्त दुर्बलताओं को मिटाने के लिए राम-बाण के समान है .
        एस.पी.साहब का यह प्रयास एकदम नवीन था और सराहना के काबिल भी किन्तु फिर भी उनकी नौकरी के कार्य में ही था जिसमे उन्हें नारी को सशक्तता का अहसास कराना था किन्तु कल का कार्य न हम सोच सकते थे कि एस.पी.साहब ऐसा भी कर सकते हैं और सच में वे भी नहीं सोच सकते कि उन्होंने  एक ग्रामीण इलाके की लड़की की ज़िंदगी में ही नहीं वरन समस्त पढ़ने वाली छात्राओं व् घर से बाहर जाकर काम करने वाली महिलाओं की ज़िंदगी में उन्होंने एक नवीन सूर्योदय की शुरुआत कर दी है .
     लड़कियां इस दुनिया पर बोझ हैं .उन्हें पढ़ाना तो दूर की बात है लोग जीने भी नहीं देना चाहते .इसीलिए ही बहुत सी बार लड़कियां कोख में ही क़त्ल कर दी जाती हैं ,किन्तु हर माँ-बाप ऐसे नहीं होते ,लड़की तो लड़की वे मच्छर तक का भी क़त्ल नहीं कर सकते इसीलिए मन मारकर बेटी को जीने देते हैं .फिर आज के समाज में बेपढ़ी-लिखी लड़कियों की शादी मुश्किल है इसीलिए थोड़ा बहुत पढ़ने स्कूल भी भेजना पड़ता है ताकि अच्छी जगह शादी हो सके .इसके अलावा लड़की को स्कूल भेजने का अन्य कोई मकसद इस इलाके के माँ-बाप का नहीं होता और ऐसे में अगर लड़की के साथ छेड़खानी की घटना हो जाये तो समझ लो कि उसका पूरा जीवन बर्बाद ,तब माँ-बाप उसे घर बैठा लेंगे , न घटना की रिपोर्ट करेंगे और आनन् फानन में उसकी शादी किसी ऐसी वैसी जगह कर देंगे .ज्यादातर ऐसे मामलों में लड़की की शादी उससे उम्र में बहुत बड़े ,या कम दिमाग या किसी विकलांग लड़के से कर दी जाती है और उस पर तुर्रा ये कि चलो किसी तरह बेटी की ज़िंदगी बची और अपनी इज़्ज़त फिर चाहे लड़की को ज़िंदगी भर खून के घूँट ही पीने पड़ें जबकि उसकी कोई भी गलती नहीं होती ,ऐसे ही एक मामले में कैराना से कांधला डिग्री कालेज में आने वाली लड़की ने पढाई छोड़ दी थी ,हमें तो इतनी ही जानकारी है अब पढाई उसने छोड़ी या छुड़वा दी गई नहीं पता और आगे उसकी ज़िंदगी का क्या हुआ सभी कुछ नेपथ्य में है .
      11  दिसंबर 2017  को क़स्बा कांधला में मलकपुर गांव की एक छात्रा कोचिंग सेंटर पर जा रही थी तब एक लड़के ने उसके साथ छेड़खानी की, जिसका लड़की ने मुंहतोड़ जवाब दिया और आस-पास के लोगों की मदद के बगैर उस लड़के की चप्पलों से पिटाई भी की किन्तु मामले की रिपोर्ट नहीं की ,माननीय एस.पी.साहब ने अख़बारों में छपी खबर से मामले का संज्ञान लिया और कांधला थाने पहुंचकर छात्रा को बुलवाकर उसे सम्मानित किया और इसी सम्मान ने छात्रा व् उसके परिजनों में वह आत्मविश्वास उत्पन्न किया कि छात्रा के पिता ने आरोपी के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कराई और बताया कि आरोपी हमारे गांव का ही है और यह शुरू से छात्रा को परेशान करता था . 
         आज माननीय एस.पी.डॉ.अजय पाल शर्मा के इस सराहनीय कदम से ही छात्रा का पिता आरोपी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने की हिम्मत जुटा पाया नहीं तो वह अब भी पहले की ही तरह चुप बैठा रहता और हो सकता था कि बेटी को भी बैठा लेता ,जबकि आज इसी का सुपरिणाम है कि आरोपी पुलिस की गिरफ्त में है और यह सबक है इसी तरह की घटना को अंजाम देने वाले और सोचने वालों को कि आज नहीं तो कल को तुम्हारा भी यही हाल हो सकता है .नारी को अपनी शक्ति का एहसास दिलाने वाले माननीय एस.पी.डॉ.अजय पाल शर्मा का आभार ह्रदय से आज इस क्षेत्र की समस्त नारीशक्ति व्यक्त करती है क्योंकि नारी का सम्मान बढाकर उन्होंने ऐसा पुनीत कार्य किया है जिसका इस क्षेत्र में होना बहुत बड़े मायने रखता है और इसीलिए ये नारी शक्ति गर्व से अपने ''ग्रेट माननीय एस.पी.डॉ.अजय पाल शर्मा ''को ''सेल्यूट '' करती है .
शालिनी कौशिक 
   [कौशल ] 

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

कानूनन भी नारी बेवकूफ कमजोर ,पर क्या वास्तव में ?

नारी की कोमल काया व् कोमल मन को हमारे समाज में नारी की कमजोरी व् बेवकूफी कह लें या काम दिमाग के रूप में वर्णित किये जाते हैं .नारी को लेकर तो यहाँ तक कहा जाता है कि इसका दिमाग घुटनों में होता है और नारी की यही शारीरिक व् मानसिक स्थिति है जो उसे पुरुष सत्ता के समक्ष झुके रहने को मजबूर कर देती है लेकिन ऐसा नहीं है कि केवल हमारे समाज की नज़रों में ही नारी कमजोर व् बेवकूफ है बल्कि हमारा कानून भी उसे इसी श्रेणी में रखता है और कानून की नज़रें दिखाने को भारतीय दंड संहिता की ये धाराएं हमारे सामने हैं -
*धारा 493 -हर पुरुष जो किसी स्त्री को ,जो विधि पूर्वक उससे विवाहित न हो ,प्रवंचना से यह विश्वास कारित करेगा कि वह विधिपूर्वक उससे विवाहित है और इस विश्वास में उस स्त्री का अपने साथ सहवास या मैथुन कारित करेगा ,वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से ,जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी ,दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा .
*धारा 497 -जो कोई ऐसे व्यक्ति के साथ ,जो कि किसी अन्य पुरुष की पत्नी है ,और जिसका किसी अन्य पुरुष की पत्नी होना वह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है ,उस पुरुष की सम्मति या मौनानुकूलता के बिना ऐसा मैथुन करेगा जो बलात्संग के अपराध की कोटि में नहीं आता ,वह जारकर्म के अपराध का दोषी होगा ,और दोनों में से किसी भांति के कारावास से ,जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी ,या जुर्माने से ,या दोनों से दण्डित किया जायेगा .ऐसे मामले में पत्नी दुष्प्रेरक के रूप में दंडनीय नहीं होगी .
*धारा 498 - जो कोई किसी स्त्री को ,जो किसी अन्य पुरुष की पत्नी है ,और जिसका किसी अन्य पुरुष की पत्नी होना वह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है ,उस पुरुष के पास से ,या किसी ऐसे व्यक्ति के पास से ,जो उस पुरुष की ओर से उसकी देखरेख करता है ,इस आशय से ले जायेगा या फुसलाकर ले जायेगा कि वह किसी व्यक्ति के साथ आयुक्त सम्भोग करे या इस आशय से ऐसी किसी स्त्री को छिपायेगा या निरुद्ध करेगा ,वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी ,या जुर्माने से ,या दोनों से दण्डित किया जायेगा .
इस प्रकार उपरोक्त तीनों धाराओं के अवलोकन से साफ स्पष्ट है कि नारी बेवकूफ है क्योंकि दिमाग में कम होगी तभी तो कोई उसे फुसला लेगा और ये हमारा कानून भी मानता है ,यही नहीं वह स्वयं के दम पर नहीं रह सकती हमेशा किसी न किसी की देखरेख या संरक्षण में ही रहती है कभी बाप की तो कभी पति की और कभी बेटे की और ये सब न हों तो किसी अन्य पुरुष की और ये भी इन धाराओं के अनुसार हमारा कानून मानता है .हम सब आये दिन समाचार पत्रों में एक समाचार पढ़ते ही रहते हैं कि शादी का झांसा देकर फलां आदमी फलां औरत के साथ दुष्कर्म करता रहा अगर विचार करें तो ये झांसा क्या मायने रखता है जब जो कम शादी के बाद ही वैध है उसे करने को कोई नारी शादी से पहले तैयार कैसे हो गयी और जब तैयार हो गयी तो झांसा क्या सहमति ही तो कही जाएगी या फिर औरत की कमअक्ल .ऐसे ही धोखे से किसी नारी को यह दिखाना कि कोई पुरुष उससे विवाहित है यह भी कैसे संभव है ऐसा तो नहीं है कि शादी कोई ऐसा काम है जो अकेले में होता है .हर कोई अपनी शादी से पहले अपने समाज में विधि पूर्वक होने वाले इस संस्कार में शामिल होता ही रहता है फिर शादी का धोखा ,बात जंचती नहीं ,केवल एक बात जंचती है और वह यह कि कोई पुरुष पहले से विवाहित है और वह दूसरा विवाह धोखे से कर ले ,ये संभव है क्योंकि जैसे नारी के शरीर पर विवाह के चिन्ह सिन्दूर ,मंगल सूत्र व् बिछुए होते हैं ऐसे पुरुषों के शरीर पर कोई चिन्ह नहीं होते .
पर धीरे धीरे हमारी सुप्रीम कोर्ट नारी-पुरुष भेदभाव को लेकर लगता है जागरूक हो रही है क्यूंकि अभी केरल के रहने वाले जोसेफ शाइनी की जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट विचार करेगा कि शादीशुदा महिला के परपुरुष से सम्बन्ध बनाने में सिर्फ पुरुष ही दोषी क्यों ,महिला क्यों नहीं ?
सवाल समानता का हो तो समानता होनी भी तो चाहिए .जब एक अपराध दो लोग मिलकर कर रहे हैं तो उन्हें सजा भी बराबर मिलनी चाहिए इसमें पुरुष स्त्री का भेदभाव नहीं होना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के अनुसार समाज तरक्की कर रहा है और नारी पुरुषों से आगे ही बढ़ रही हैं फिर अपराध के मामले में भेदभाव कर बराबर के अपराध पर दोनों को बराबर की सजा मिलनी ही चाहिए .कानून में समयानुकूल परिवर्तन अब हो ही जाना चाहिए न केवल यौन दुर्व्यवहार के मामलों में अपितु वैवाहिक सभी मामलों में क्यूंकि कानून की नारी के प्रति कोमल दृष्टि सही और हर प्रकार से सही पुरुषों पर बहुत भारी पड़ रही है क्यूंकि शादी होते ही पुरुष अगर नारी के मालिक हो जाते हैं तो कानूनन नारी भी पुरुषों की सारी सम्पदा की मालिक हो जाती है और दहेज़ कानून के सात वर्ष का सहारा लेकर व् धरा 498 -क का सहारा लेकर शादी के एकदम बाद पति व् उसके घरवालों को अपने चंगुल में ले लेती है और मनचाहा वसूलती है क्यूंकि एक सही आदमी जेल जाने से डरता है और समाज में अपनी बदनामी के दंश से बचने के लिए वह सब कुछ करता है जो वह चाहती है किन्तु कानून उसकी कोमल मूर्ती व् कमजोर बुद्धि को ही अपने आगे रखती है जिसे बेचारा पुरुष झेलता है और लखनऊ के पुष्कर के समान फांसी पर झूलने को मजबूर हो जाता है इसलिए कानून को भी अपनी सोच बदलनी होगी और इस कोमल काया और कम दिमाग के परिवर्तन की गति आंकलित करनी होगी और इसके अनुसार कानून में नयी व्यवस्थाएं भी .
शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]

रविवार, 10 दिसंबर 2017

''तभी लेंगे शपथ ........''


        ''औरत ने जनम दिया मर्दों को
         मर्दों ने उसे बाजार दिया .''
      कैसी विडम्बना है जन्म देने वाली की ,जन्म देने का सम्मान तो मिलना दूर की बात है ,अपने प्यार के बदले में प्यार भी नहीं मिलता ,मिलती है क्या एक औलाद जो केवल मर्द की हवस को शांत करने का एक जरिया मात्र है और कुदरत से उसे मिलने वाला कहने को उपहार पर आज की दुनिया को देखा जाये तो यह न तो वरदान है और न ही उपहार .बेटों ने तो अपनी सार्थकता बहुत पहले ही साबित कर दी थी और बाकी ऐसे मर्मान्तक फ़िल्मी गानों ने कर दी और रही बेटियां तो वे अब अपनी सार्थकता साबित कर रही हैं .
          बेटियां पराया धन होती हैं आरम्भ से ही बेटियों को यह कहकर पाला जाता है और इसीलिए बेटियों की माँ-बाप को लेकर कोई जिम्मेदारी नहीं होती पर फिर भी देखा गया है कि बेटियां अपने माँ-बाप का बहुत ध्यान रखती हैं और अपने माँ-बाप के साथ उनके दुःख की घड़ी में एक ढाल के समान खड़ी रहती हैं .बेटियां हमेशा से नरमदिल मानी जाती हैं और यह कोरी कल्पना ही नहीं है सच्चाई है .माँ-बाप का दिल रखने को अपने सारे अरमानों पर पत्थर रख लेने के बेटियों के बहुत सारे उदाहरण है .रामायण में जब सीता स्वयंवर चल रहा होता है तब जनक सुपुत्री सीता को स्वयम्वर में पधारे राजाओं में श्री राम के दर्शन होते हैं तब वे मन ही मन उन्हें अपना पति स्वीकार कर लेती हैं किन्तु ये इच्छा अपने माता-पिता के समक्ष प्रकट नहीं करती और माँ गौरी को मनाती हुई मन ही मन कहती हैं -
    ''मोर मनोरथु जानहु नीकेँ ,
    बसहु सदा उर पुर सबहीं के ,
    कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं
    अस कहि चरन गहे वैदेहीं .''
   भावार्थ:-मेरे मनोरथ को आप भलीभाँति जानती हैं, क्योंकि आप सदा सबके हृदय रूपी नगरी में निवास करती हैं। इसी कारण मैंने उसको प्रकट नहीं किया। ऐसा कहकर जानकीजी ने उनके चरण पकड़ लिए॥2॥
   ऐसे ही आज के युग में भी बहुत सी कन्यायें ऐसी रही हैं जिन्होंने अपने माँ-बाप की गरिमा को कायम रखा है .आशा भोंसले के घर से भागने के बाद पुत्री लता मंगेशकर ने ही अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर को सहारा दिया और अपना सारा जीवन अपने पिता की सेवा  में ही समर्पित कर दिया .
     पर ऐसा नहीं है कि केवल पुत्रियां ही माता-पिता की सेवा करती हैं करते पुत्र भी हैं श्रवण कुमार भी पुत्र ही थे जिन्होंने अपने कन्धों पर बैठकर मात-पिता को तीर्थयात्रा कराई थी. श्री राम भी पुत्र ही हैं जिन्होंने अपने पिता राजा दशरथ के वचन पालन के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया था और समस्त राज-पाट का त्याग किया था लेकिन क्योंकि बात हो रही है बेटियों की तो बेटियों की ही बात की जाएगी और इनकी नरमदिली की जाँच भी ,माता-पिता के प्रति कर्तव्यपालन की पड़ताल भी .
        आज कलियुग का दौर है. वह युग जिसमे अपने के नाम पर कोई अपना नहीं ,आदमी का कोई ईमान नहीं ,पैसा-सत्ता-ज़मीन-जायदाद बस ये ही आज के इंसान का धर्म है ,ईमान है .व्हाट्सप्प पर एक मेसेज आ रहा है कि
 ''एक लड़की ने फेसबुक पर एक मेसेज टैग किया कि,अगर माँ-बाप को संभालने का हक़ लड़कियों का होता तो भारत में एक भी वृद्धाश्रम नहीं होता ....
      तो एक लड़के ने उस पर बड़ा ही सुन्दर जवाब दिया कि अगर हर लड़की ससुराल में अपने सास-ससुर को ही अपने माँ-बाप का दर्जा दे दे और घर के हर सुख-दुःख में शामिल रहे तो भारत में तो क्या पूरी दुनिया में भी वृद्धाश्रम नहीं रहेगा ''.
   कितनी सही बात हम आज इन सोशल साइट्स पर पढ़ व् देख रहे हैं किन्तु नहीं अपनाते क्योंकि ये हवा जो कलियुग की सभी ओर बह रही है उससे हम  बेटियां भी  कैसे वंचित रह सकती हैं और इसी हवा का प्रभाव कहा जायेगा जब माँ-बाप को बेटी के रहते वृद्धाश्रम में रहना पड़ जाये ,बेटी के होते हुए माँ-बाप को कानून की सहायता से उससे भरण-पोषण मांगना पड़ जाये और बेटी जैसे ही बहू बन जाये तो सास को भी क़त्ल होना पड़ जाये ये सब कोरी कल्पना नहीं है वरन सत्य है जिसे आज कल के माँ-बाप भुगत रहे हैं .
       डॉ.श्रीमती विजय मनोहर अरबाट बनाम कांशी राम राजाराम संवाई और अन्य में माँ-बाप ने बेटी से भरण-पोषण माँगा और रही सास के क़त्ल होने की बात तो अभी ७ दिन पहले शाहपुर के गांव काकड़ा में मौसम व् कोमल ने मिलकर मौसम की सास सरोज से झगड़ा होने पर बीच की बहन के पति को बीचबचाव करने पर धारदार हथियार से हमला कर मार डाला और ऐसा हुआ तब जब पूरे देश में नारी सशक्तिकरण सप्ताह मनाया जा रहा था सारा देश नारी सशक्तिकरण की शपथ ले रहा था और ये सब कार्य पुरुषों द्वारा बढ़-चढ़कर किया व् कराया जा रहा था .
        ये सत्य है कि आज तक महिलाओं पर माँ-बाप की कोई जिम्मेदारी नहीं है .शुरू से पराया धन के नाम पर उन्हें ससुराल में विदा करने के लिए ही पाला जाता है और लड़के बचपन से ही यूँ तो माँ-बाप की आँख के तारे होते हैं  किन्तु सारे घर की माँ की बाप की बहन की सारी जिम्मेदारी उन्ही पर होती है .इसलिए जिम्मेदारी निभाने का उनमे घमंड होता है और लड़कियों को कोमल बने रहने का वरदान मिला रहता है और यही कोमलता जब वे ससुराल में आ जाती हैं कर्कशता में बदल जाती है .सबमे नहीं पर अधिकांशतया में और ससुराल में आकर वे अपने सास ससुर को अपने माँ-बाप का स्थान नहीं दे पाती और इसी का परिणाम होता है बहू आने के बाद घर का टूटना .जो परिवार बहू आने तक एक थाली में खाता था वह बहू के आने के बाद एक छत के नीचे भी नहीं खा पाता और इसके बाद भी बेटियों की महानता के राग  अलापे जाते हैं .जब वह अपने माँ-बाप के लिए अपनी भाभी से ये आशा रख सकती है कि वह उनका करे तो वह अपने सास-ससुर के साथ वह न्याय क्यों नहीं कर पाती ?
           फिर कैसी नारी के सशक्तिकरण की शपथ ली गयी है जब वह अपने प्रकृति प्रदत्त गुणों का ही त्याग कर आगे बढ़ रही है .वह चोरी कर रही है .क़त्ल में सहयोग कर रही है .खुद क़त्ल कर रही है ,सब कहते हैं औरत का अपना कोई घर नहीं होता पर सब यह भी कहते हैं कि औरत बिना कोई घर घर नहीं होता ,नारी हीन घर भूतों का डेरा होता है ऐसा कहा जाता है और जैसे हर पुरुष की सफलता के पीछे एक नारी का हाथ होता है वैसे ही एक नारी की सफलता उसके घर परिवार में बसती है उसकी सशक्तता तभी है जब उसका घर पूरी तरह से सुख से संपन्न हो और ये तभी होगा जब वह सही राहों पर चले .पुरुष वर्ग से लोहा ले किन्तु उसके गुणों पर चलकर नहीं बल्कि अपने प्रकृति प्रदत्त गुणों को अपनाकर .तभी ये कहा जायेगा और कहा जा सकेगा -
''पुरुषों से लड़ने की खातिर ,नारी अब बढ़ जाएगी ,
किसी काम में उससे पीछे नहीं कही अब जाएगी .
क्या खासियत है मर्दों में क्यों रहते उससे आगे
काम करेगी दिलोजान से मर्द-मार कहलाएगी .''

शालिनी कौशिक
   [कौशल]

शनिवार, 2 दिसंबर 2017

बदनाम रानियां -कहानी


बगल में बस की सीट पर बैठी खूबसूरत युवती द्वारा मोबाइल पर की जा रही बातचीत से मैं इस नतीजे पर पहुँच चूका था कि ये ज़िस्म फ़रोशी का धंधा करती है .एक रात के पैसे वो ऐसे तय कर रही थी जैसे हम सेकेंड हैण्ड स्कूटर के लिए भाव लगा रहे हो .टाइट जींस व् डीप नेक की झीनी कुर्ती में उसके ज़िस्म का उभरा हुआ हर अंग मानों कपड़ों से बाहर निकलने को छटपटा रहा था .न चाहते हुए भी मेरी नज़र कभी उसके चेहरे पर जाती और कभी ज़िस्म पर .मोबाइल पर बात पूरी होते ही उसने हाथ उठाकर ज्यूँ ही अंगड़ाई ली त्यूं ही उस बस में मौजूद हर मर्द का ध्यान उसकी ओर चला गया . सबकी नज़रे उसके चेहरे और उसके ज़िस्म पर जाकर टिक गयी .शायद वो चाहती भी यही थी . वो बेखबर सी बनकर पर्स से लिपस्टिक निकाल कर दुसरे हाथ में छोटा सा आइना चेहरे के सामने कर होंठों को और रंगीन बनाने लगी . मेरे लिए बहुत ही असहज स्थिति थी . एक शरीफ मर्द होने के कारण मैं उससे थोड़ी दूरी बनाकर बैठना चाहता था पर दो की सीट होने के कारण ये संभव न था .उस पर वो युवती मुझसे सटकर बैठने में ही रुचि ले रही थी .
सड़क के गड्ढों के कारण एकाएक बस उछली और संभलते-संभलते भी उसके लिपस्टिक लगे होंठ मेरी सफ़ेद कमीज के कन्धों पर आ छपे .मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर उसके ''सॉरी'' कहते ही न जाने क्यों मेरे मर्दाना मन में कुछ गुदगुदी सी होने लगी . मैं चुप होकर बैठ गया और कहीं न कहीं मुझमें भी उसके प्रति या यूँ कहूँ उसके खूबसूरत ज़िस्म के पार्टी आकर्षण पैदा होने लगा . अविवाहित होने के कारण किसी लड़की की छुअन ने मेरे तन-मन दोनों को रोमांचित कर डाला जबकि मैं जानता था कि ये लड़कियां समाज में वेश्या-रंडी-छिनाल जैसी संज्ञाओं से विभूषित की जाती हैं . मैंने एक बार फिर से उसके चेहरे को गौर से देखा .बड़ी-बड़ी आँखें , गोरा रंग , धनुषाकार भौहें , होंठ के ऊपर काला तिल और सुडोल नासिका ...कुल मिलाकर गज़ब की खूबसूरत दिख रही थी वो . मैंने क्षण भर में ही अपनी नज़रें उसकी ओर से हटा ली तभी अचानक वो बिजली की सी रफ़्तार से सीट से खड़ी हुई और हमारी सीट के पास खड़े एक अधेड़ का गला दबोचते हुए बोली -'' क्या देखे जा रहा है हरामज़ादे इतनी देर से ......नंगी औरत देखनी है तो जा सिनेमा हॉल में ...परदे पर दिख जाएँगी तुझे ...खबरदार जो मेरी कुर्ती के अंदर झाँका .....नोट लगते हैं इसके ..समझा !!'' ये कहकर उसने धक्का देकर उसका गला छोड़ दिया .वो अधेड़ आदमी अपनी गर्दन सहलाता हुआ दूसरी ओर मुंह करके खड़ा हो गया और वो युवती फिर से और ज्यादा मुझसे सटकर सीट पर विराजमान हो गयी .
अब मैंने उसकी ओर ध्यान न जाये इसलिए अपना मोबाइल निकाला और व्हाट्सऐप पर जोक्स पढ़ने का नाटक करने लगा .सड़क के गड्ढों के कारण बस फिर से उछली और मैं मोबाइल संभालते हुए लगभग गिरने ही वाला था कि उस युवती ने अपनी नरम हथेलियों से मेरी बांह पकड़ कर मुझे सहारा दिया . पल भर को मन मचल गया -'' काश ये नरम हथेलियाँ यूँ ही मुझे थामे रहे '' पर तुरंत होश में आते हुए मैंने ''थैंक्स '' कहते हुए उसकी ओर देखा तो वो मुस्कुराकर बोली -'' तुम कुंवारे हो या शादीशुदा !'' मैं उसके इस प्रश्न पर सकपका गया .दिमाग में उत्तर आया -'' तुझसे मतलब '' पर जुबान विनम्र बनकर बोली -'' अभी अविवाहित हूँ !' ये सुनते ही उस युवती ने जींस की जेब में से अपना विजिटिंग कार्ड निकालकर मेरे हाथ पर रखते हुए कहा -'' ये मेरा एड्रेस और नंबर है ...जब भी दिल चाहे आ जाना तेरी सारी आग बुझा दूँगी .'' मेरा दिमाग उसकी इस बात पर तेज़ाबी नफरत से भर उठा .मैं कड़वी जुबान में बोला -'' घिन्न नहीं आती तुम्हें अपने इस ज़िस्म से ..क्यों करती हो ऐसा गन्दा काम ? '' युवती मेरी बात पर ठठाकर हंस पड़ी और मेरे बालों को अपनी बारीक उंगलियों से हौले-हौले सहलाते हुए बोली -'' गन्दा काम ...क्या गन्दा है इसमें ? मेरा ज़िस्म है ...मैं कुछ भी करूँ...मर्द की हवस मिट जाती है और मेरे घर का चूल्हा जल जाता है ..क्या बुरा है ? रोज़ सुबह नहा-धो कर शुद्ध हो जाती हूँ मैं . अरे तुम सब मर्दों को तो मेरी जैसी औरतों का अहसानमंद होना चाहिए ..हम अपना बदन नोंचवा कर आदमी की अंदर की वासना को तृप्त न करें तो तुम जैसे नैतिकतावादियों की माँ-बहन-पत्नी-बेटी न जाने कब किसी दरिंदे की हवस की शिकार हो जाएँ ....खैर छोडो ये बकवास बातें ! ....तुम आना चाहो तो कार्ड पर लिखे मोबाइल नंबर पर कॉल कर देना ...उसी पर पैसे और दिन तय कर लेंगें .'' उसकी बातों ने मुझे गहरे अवसाद में डाल दिया था .अब मेरे बदन में रोमांच की जगह आक्रोश ने ले ली थी .मैं सोचने लगा -'' आखिर कैसे इसे समझाऊं कि वो जो कर रही है सही नहीं है पर उसके तर्क भी दमदार थे .आदमी नैतिकता का झंडा उठाये युगों-युगों से औरत को दो श्रेणियों में बांटता आया है -अच्छी औरत और बदजात औरत .देवी के आगे सिर झुकाने वाले कितने ही मर्दों ने उसकी प्रतिमूर्ति औरत के बदन को जी चाहे नोंचा-चूसा और उसके बाद उसे पतिता कहकर उसके मुंह पर थूककर चलते बने . न पीछे मुड़कर कभी देखा कि कहीं उस पतिता के गर्भ से तुम्हारी ही संतान ने जन्म न ले लिया हो !'' मेरे ये सोचते-सोचते उस युवती ने मेरे कंधें पर हाथ रखते हुए बड़ी अदा के साथ पूछा -'' कहाँ खो गए चिकने बाबू ? देखो मेरे भी कुछ उसूल हैं .मैं मर्द से पहले ही पूछ लेती हूँ कि वो कुँवारा है या शादीशुदा .यदि वो शादीशुदा है तो मैं उसके साथ डील नहीं करती क्योंकि मुझे उन सती -सावित्रियों से नफरत है जो अपने मर्दों को तो संभाल नहीं पाती और हुमजात औरतों को बदनाम करती हैं कि हमने उनके मर्दों को फंसा लिया . मैं केवल कुंवारे मर्दों से डील करती हूँ . कार्ड पर मेरा नाम तो पढ़ ही लिया होगा .मेरा असली नाम रागिनी है जिसे मैंने कार्ड पर '' रानी '' छपवाया है .दिन में मैं एक दफ्तर में काम करती हूँ जहाँ और महिला सहकर्मियों की तुलना में मुझे ज्यादा वेतन मिल जाता है क्योंकि मैं बॉस और उसके क्लाइंट्स द्वारा मेरे जिस्म से खिलवाड़ करने से नाराज़ नहीं होती ..नाराज़ होकर कर भी क्या लूंगी ..वे मुझे दो दिन में बाहर का रास्ता दिखा देंगें और रात को मैं अनजान मर्दों की हवस को शांत करने की मशक्कत करती हूँ .इसमें मिलने वाले पैसों का कोई हिसाब नहीं .अभी मैं चौबीस साल की हूँ ...मेरे पास पैसे कमाने के करीब-करीब उतने ही साल हैं जितने किसी क्रिकेट खिलाडी के पास होते हैं ..मतलब करीब सोलह साल और ......चालीस के बाद कौन मेरे इस जिस्म का खरीदार मिलेगा ! मुझे इन्ही सोलह सालों में अपने बैंक-बैलेंस को बढ़ाना हैं ताकि चालीस के बाद मैं भूखी न मरूं .'' युवती बहुत सहज भाव में ये सब कह गयी पर मुझे एक-एक शब्द ऐसा लगा जैसे कोई मेरे कानों में गरम तेल उड़ेल रहा हो . मैं कहना चाहता था -'' बंद करो ये सब ...चुप हो जाओ ...ऐसी बातें सुनकर मुझे लग रहा है कि एक मर्द होने के कारण मैं भी तुम जैसी औरतों का अपराधी हूँ .आखिर मर्द इतना कमजोर कैसे हो सकता है ? अपनी बहन-बेटी-पत्नी-माँ की अस्मिता की रक्षा हेतु सचेष्ट मर्द अन्य औरतों को क्यों मात्र एक मादक बदन मानकर उसका मनमाना उपभोग करने को आतुर है .'' तभी एक झटके के साथ बस रूक गयी और वो युवती सीट पर से खड़ी हो गयी . उसे शायद यहीं उतरना था .अपना पर्स उठाकर वो चलते हुए मुझसे बोली -'' सॉरी तेरा बहुत दिमाग खाया पर यकीन कर यदि मेरे साथ एक रात बिताएगा तो मैं तेरे सारे शिकवे-गिले दूर कर दूँगी .'' ये कहकर उसने झुककर मेरे गाल पर किस चिपका दिया और तेजी से आगे बढ़कर बस से उतर गयी . मैं भी न जाने किस नशे में उसके पीछे -पीछे वहीं उतरने लगा . बस से उतर कर मैंने चारो ओर देखा तो वो कहीं नज़र न आई . मुझे खुद पर आक्रोश हो आया -'' आखिर कितना कमजोर है मेरा चरित्र जो एक कॉल-गर्ल के पीछे गंतव्य से पूर्व ही बस से उतर लिया ...अरे उसके लिए तो मैं केवल एक रात का साथी मात्र हूँ जो उसके मनचाहे पैसे देकर उसके जिस्म का उपभोग कर सकता हूँ ....पर क्या मैं भी और मर्दों की भांति एक औरत के जिस्म को एक रात में नोच -खसोट कर अपनी हवस पूरी कर पाउँगा ....या अपनी ही नज़रों में गिर जाऊंगा कि मैंने भी औरत को केवल एक जिस्म माना ....नहीं .मैं ऐसा कभी नहीं कर पाउँगा ..मैं उसके तर्कों के आगे झुककर ये मानता हूँ कि यदि ये कॉल-गर्ल न होती तो समाज में इज़्ज़त के साथ रह रही महिलाओं की अस्मिता खतरे में पड़ जाती क्योंकि मर्द की हवस की आग वेश्यालयों में शांत न की जाती तो घर-बाहर हर जगह बहन-बेटियों को दबोचने का सिलसिला जारी रहता पर कब तक ऐसी रानियां खुद बदनाम होकर अपने बदन को दरिंदों के हवाले करती रहेंगी ...मर्द भी कभी कुछ करेगा या नहीं ? शरुआत मुझे खुद से करनी होगी .'' ये सोचते हुए मैंने रानी का दिया कार्ड टुकड़े-टुकड़े कर डाला और हवा में उछाल दिया .
शिखा कौशिक 'नूतन '