नहटौर में एक चुनावी सभा में ''आप''नेता अलका लम्बा पर पत्थर से हमला ,कोई नई बात नहीं है .राजनीति के क्षेत्र में उतरने वाली महिलाएं आये दिन कभी शब्द भेदी बाणों का तो कभी पत्थरों आदि के हमलों का शिकार होती रहती हैं .ममता बनर्जी तो पश्चिमी बंगाल में इसका जीता-जागता उदाहरण हैं और देश की प्रथम महिला व् पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी तो इस क्षेत्र में किंवदंती बन चुकी हैं .ममता बनर्जी के बढ़ते वर्चस्व को देखकर वामपंथियों का ख़ौफ़ग्रस्त होना सब जानते हैं क्योंकि इसी खौफ के चलते उन्होंने अपनी सत्ता जाते देख ममता बनर्जी को मरवाने की कोशिश तक कर डाली थी और रही इंदिरा गाँधी जी की बात उन्हें देख तो उनके विपक्षियों की रूहें उनके जीते-जी भी कांपती थी ही उनके मरने के बाद भी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया हैं आज भी उनके नाम से सभी विपक्षियों के शरीर में कंपकपी दौड़ जाती हैं और इसलिए आज भी कोई भी चुनाव हो या देश में कोई भी नवीन शुरुआत इंदिरा गाँधी का नाम ले विपक्षी दल उनकी नियत व् चरित्र पर हमले कर इंदिरा गाँधी को चाहने वाली जनता को उनसे तोड़ने की कोशिश करते रहते हैं जबकि आज भी जनता में उनके लिए इतना प्यार हैं जिसके दम पर वर्तमान कॉंग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी ने कॉंग्रेस के विपक्षी दलों को विदेशी होने का विरोध झेलते हुए भी सत्ता से दस साल बाहर रखा .
राजनीति ही क्या नारी का किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ना पुरुष सत्तात्मक समाज को पसंद नहीं आता हैं और कैसे भी कर नारी को पीछे धकेलने के प्रयास किये जाते हैं और इसमें सबसे बड़ा हमला नारी के चरित्र को लेकर किया जाता हैं जहाँ नारी जरा सा आगे बढ़ी वहां सबसे पहले उसको चरित्रहीन कहना आम बात हैं इंदिरा गाँधी पर हमलों में एक बात यह भी हैं कि विपक्षी दल उनके चरित्र पर हमले बोलने से पीछे नहीं रहते ,सोनिया गाँधी के चरित्र को लेकर भी उँगलियाँ उठाई जाती रही हैं ,लेकिन उन्होंने ''एक चुप सौ को हरावे ''का अनुसरण कर विपक्षियों को अनर्गल प्रलापियों की श्रेणी में रहने को छोड़ दिया ,वरिष्ठ आई.ए.एस.रूपम देओल ने तो ऐसे ही एक हमले को लेकर के.पी.एस.गिल को न्यायालय में घसीट लिया था ,मायावती हो या जयललिता ,उमा भारती हों या सुषमा स्वराज महिलाओं को कहीं भी हों छोड़ा नहीं जाता और जहाँ चरित्र पर हमले से इनका काम नहीं चलता वहां ये जान लेने से भी नहीं चूकते गौरी लंकेश इसका बिलकुल नवीन उदाहरण हैं .
महिलाओं की तरक्की पुरुष वर्ग को बिलकुल पसंद नहीं आती और अगर इनकी चालबाजियों से बचकर कोई महिला किसी तरह तरक्की कर ले तो इसमें उसके महिला होने को भी फायदे में गिना जाता हैं जबकि यह महिला होना ही तो उसकी तरक्की की सबसे बड़ी बाधा हैं न वह महिला होती न उसके साथ इतनी दिक्कतें होती.पहले तो पैदा होने में दिक्कत दूसरे पढ़ने में दिक्कत ,तीसरे शादी में ,समाज में अपना स्थान बनाने में दिक्कत ,पुरुष वर्ग की यह सोच ''जब तक लड़की की शादी न हो जाये वह धरती पर बोझ हैं और शादी चाहे लड़की हर तरह से काबिल हो उसकी शादी में खूब सारा दहेज़ ,अपने से कम योग्यता वाले पुरुष से शादी और उस पर भी उसे उसकी गुलामी करनी होगी क्योंकि वह नारी हैं और वह पुरुष .
ऐसे में जब कोई नारी आगे बढ़ती हैं तब उस पर हमले होना कोई बड़ी बात नहीं हैं .राजनीति हमारे यहाँ सर्वाधिक प्रभावशाली क्षेत्र हैं और उसमे नारी का स्थान बनाना बहुत बड़ी बात हैं तो पुरुष वर्ग को कैसे पसंद आ सकती हैं लेकिन मुश्किलों को पछाड़ना नारी जाति के लिए भी कोई बड़ी बात नहीं क्योंकि मुश्किलें तो उसकी आदत में शुमार हो चुकी हैं और मुश्किलें न हों तो उसके पेट में रोटी पचती भी नहीं और इसी का परिणाम हैं कि लाख हमलों के बाद भी नारी हर जगह डटी हुई हैं और निरंतर आगे बढ़ती जा रही हैं .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
4 टिप्पणियां:
सटीक लिखा है आपने. आभार
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-11-2017) को
"धड़कनों को धड़कने का ये बहाना हो गया" (चर्चा अंक 2784)
पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ये हमला कोइ नारी के कारण नहीं विरोधी नेता होने के कारण है,राजनैतिक कारण से है ... अतः इस आलेख का कोइ ख़ास अर्थ नहीं ....
satya yah hai ki aap bhi purush hain aur purush ne nari ko hi koi tarzeeh nahi dee to vo us par hamle ko hi kya tarzeeh dega vah jyada se jyada ye hi kahega ki alka ko rajneeti chhod deni chahiye isiliye yahan is comment ka bhi koi khas arth nahi .vaise aapke sarthak vicharon hetu v aalekh padhne hetu hardik dhanyawad.
एक टिप्पणी भेजें