शनिवार, 4 नवंबर 2017

माँ - एक लघु कथा

''ये शोर कैसा है ''नरेंद्र ने अपने नौकर जनार्दन से पूछा ,कुछ नहीं बाबूजी ,वो माता जी को खांसी का धसका लगा और उनसे मेज गिर गयी जिससे उसपर रखी हुई दवाइयां इधर-उधर गिर गयी ,जनार्दन ने बताया ,''पता नहीं कब मरेंगी  मेरी इतनी मेहनत की कमाई यूँ ही स्वाहा हुई जा रही है ,वे तो मेरे और इस घर पर बोझ ही बनकर पड़ गयी हैं .घर से निकाल नहीं सकता लोगों में सारी इज़ज़त गिर जायेगी मेरी ''बड़बड़ाते हुए नरेंद्र बाहर चले गए .
नरेंद्र....नरेंद्र...धीमी सी आवाज़ में कौशल्या देवी ने मुश्किल से आवाज़ लगायी तो जनार्दन तेज़ी से भागकर वहाँ पहुंचा ,जी माता जी ,जनार्दन के कहने पर कौशल्या देवी बोली ,''जनार्दन! कहाँ है नरेंद्र ?''..जी वे तो बाहर चले गए ..जनार्दन के कहने पर कौशल्या देवी बोली ..वो कुछ गुस्सा हो रहा था ,क्यूँ किस पर ?..जी आप पर ,वे कहते हैं कि आप घर पर बोझ हैं .''..जनार्दन के मुंह से ये सुनकर कौशल्या देवी का मन बैठ गया वे दुखी मन से बोली ,''मेरे पर क्यूँ गुस्सा हो रहा था ..मैंने क्या किया ...आज तक उसका और इस घर का करती ही आ रही हूँ ,जरा सा बीमार क्या पड़ गयी उसने तो घर को सर पर ही उठा लिया ,अरे जरा सा बुखार ही तो है दो चार दिन में ठीक हो जायेगा और आज तक मेरे ही तो पैसों पर पल रहा है ,चल रहा है उसका घर और उसका यारों दोस्तों में उठना बैठना ,उसने तो आज तक एक अठन्नी भी लाकर मेरे हाथ पर नहीं धरी ....और ये कहकर वे रोने लगी .
जनार्दन उन्हें थोडा समझकर कमरे से बाहर निकल आया तभी फोन की घंटी बजी ,हेलो ! जनार्दन ने रिसीवर कान से लगाकर कहा ,..देखिये आप नरेंद्र जी के घर से बोल रहे हैं ,..हाँ कहिये ....देखिये मैं युवराज बोल,रहा हूँ जनपद वाला ,नरेंद्र जी मेरे घर के बाहर खड़े होकर मुझे गलियां दे रहे थे और कंकड़ पत्थर मार रहे थे कि अचानक मेरे पडोसी नवीन जी का छज्जा उनपर गिर गया और वे गम्भीर रूप से घायल हो गए है ,उन्हें हम अस्पताल लेकर जा रहे हैं आप वहीँ आ जाइये ..ये कहकर फोन डिस्कनेक्ट हो गया .
माता जी ..माता जी ....नरेंद्र बाबू को बहुत चोट आयी है ,उन्हें कुछ लोग लेकर अस्पताल जा रहे हैं ....मैं भी जा रहा हूँ ....तू रुक ...जनार्दन को रोकते हुए कौशल्या देवी बोली ,मैं भले ही उसे बोझ लगती हूँ पर मेरे लिए मेरा बेटा  कभी बोझ नहीं हो सकता ,मैं आज भी उसे ठीक करने की ताकत रखती हूँ भले ही वह मेरी जिम्मेदारी से मुकर जाये ......आँख में आये आंसू पौंछती हुई कौशल्या देवी को जनार्दन ने सहारा दिया और कहा ..चलिए माता जी सच में आप सही कह रही हैं ,आप माँ हैं और माँ माँ ही होती है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

11 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 05 नवम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

आज की युवा सोच..... http://www.surbhisavita.com/2017/11/1.html

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत खूब......

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

यही सत्य है।

अमित जैन मौलिक ने कहा…

बहुत सही। बहुत ख़ूब। वाह

'एकलव्य' ने कहा…

अत्यंत मार्मिक !

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

यथार्थपरक मार्मिक लघुकथा।

Shalini kaushik ने कहा…

sarahna hetu aap sabhi ka hardik dhanyawad

डा श्याम गुप्त ने कहा…

सुन्दर

Shalini kaushik ने कहा…

hardik dhanyawad shyam gupt ji .