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रविवार, 26 नवंबर 2017

एमपी सरकार का ऐतिहासिक फैसला, बच्ची से रेप पर फांसी की सजा

एमपी सरकार का ऐतिहासिक फैसला, 12 साल से कम उम्र की बच्ची से रेप पर फांसी की सजा

MP Cabinet approves death sentence for rape convicts in the cases involving girls of 12 years
बच्‍ची से रेप के मामले में मध्यप्रदेश की सरकार ने कैबिनेट में एक एतिहासिक प्रस्ताव पास किया है। जिसके तहत 12 साल से कम उम्र की बच्‍ची के साथ रेप करने का दोषी पाए जाने पर गुनहगारों को मौत की सजा दी जाएगी। रेप के मामलों में इस तरह का सख्त कानून बनाने वाला मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है।
रविवार को मध्यप्रदेश में कैबिनेट में यह प्रस्ताव पास किया गया है। इस प्रस्ताव के तहत 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ बलात्कार करने के दोषी को मौत की सजा देने का प्रावधान किया गया है।।यह सजा गैंगरेप वाले मामले में भी लागू होगी। इस मामले में सजा और जुर्माना दोनों ही होगा।
बच्चियों से रेप के मामलों में देशभर में लगातार वृद्िध हो रही है। ऐसे में लंबे समय से इस मामले में सख्त कानून बनाए जाने की मांग चल रही थी। मध्यप्रदेश में इस तरह के कई मामले सामने आए थे, इसी कड़ी में अब सरकार ने इस संबंध में कानून बनाने का फैसला किया। जिसके चलते आज मध्यप्रदेश कैबनेट ने यह फैसला लिया। [साभार अमर उजाला ]
शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]

राजस्थान की संगठित शक्ति को बधाई

      पद्मावती आजकल सुर्ख़ियों में हैं .हों भी क्यूँ न नारी शक्ति की जो मिसाल पद्मावती ने पेश की वह अनूठी है और ऐसी मिसाल ही होती हैं जो अनुकरणीय बन जाती हैं यही कारण है कि आज राजस्थान उनके सम्मान को लेकर भंसाली की सोच से ,भंसाली की फिल्म से लड़ रहा है और साफ तौर पर दिखाई दे रहा है कि भंसाली अपनी फिल्म को प्रदर्शित नहीं करा पाएंगे .पर यहाँ मैं भंसाली की फिल्म के प्रदर्शन को लेकर नहीं अपितु राजस्थान की महिला शक्ति को लेकर आयी हूँ जहाँ एक विधवा माँ की तीन बेटियों ने राजस्थान प्रशासनिक परीक्षा में एक साथ सफलता प्राप्त कर पूरे देश में केवल राजस्थान का ही नहीं अपितु पूरे विश्व में भारतीय नारी की शक्ति का डंका बजाया है .

       पर यह बात भी गौर करने लायक है कि यह एकमात्र नारी शक्ति की ही नहीं बल्कि पूरे परिवार के सहयोग की भी अनूठी मिसाल है जिसमे एक भाई ने भी अपनी माँ व् बहनों का सहयोग किया और अपने पिता की इच्छा को पूरा करने में अपनी बहनों की सफलता में योगदान दिया .भाई का योगदान इसलिए सर्वोपरि है कि उसने अपने पुरुष अहम् को इस बीच में आड़े नहीं आने दिया .इसलिए बार बार राजस्थान के इस परिवार ,इन बहनों के भाई व् सम्पूर्ण नारी शक्ति को हार्दिक बधाई .
शालिनी कौशिक 



शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

गूगल नारी सम्मान -हार्दिक धन्यवाद्

 आज का गूगल का डूडल फिर एक नए रुप में सबके सामने आया है। आज गूगल ने फिर से इतिहास के पन्नों से एक महिला को हमारे सामने जिंदा कर दिया है। आज के डूडल में एक महिला जिसके गले में डॉक्टर स्टेथस्कोप(आला) है और उनके आस-पास कुछ महिला मरीज के बिस्तर और नर्स उनकी सेवा करती नजर आ रही हैं। भारत और ब्रिटेन की पहली महिला डॉक्टर Rukhmabai राऊत को आज का डूडल समर्पित है। 22 नवंबर 1864 को जनार्धन पांडूरंग और जयंतीबाई के यहां Rukhmabai का जन्म हुआ। वो बढ़ई जाति से संबंध रखती थी। आज उनके 153 वें जन्मदिन पर गूगल ने उन्हें डूडल बनाकर श्रद्धांजली दी है। Rukhmabai ने ब्रिटिश समय में अपनी पढ़ाई पूरी की जब महिलाओं को उनके मामूली अधिकारों से तक वंचिक रखा जाता था। इसके साथ ही उन्होनें हिंदू मैरिज की व्यवस्था को पुर्नस्थापित करने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी जिसकी सफलता उन्हें 1955 में मिली। Rukhmabai एक डॉक्टर के साथ एक समाजसेवक भी थीं। रुखमाबाई ने शिक्षा और अपनी निडरता से अपने साथ आगे आने वाली महिलाओं की पीढ़ी के लिए शिक्षा के रास्ते तो खोले और उन्हें बाल विवाह और पर्दा प्रथा जैसी कुरितियों से मुक्त करवाया।
Rukhmabai का विवाह 11 साल की उम्र में दादा जी भिकाजी उनकी बिना मर्जी के करवा दिया गया था जिसके वो सख्त खिलाफ थीं। भारत में उस समय बाल विवाह एक आम प्रथा थी। उनके माता-पिता ने हमेशा उनकी पढ़ाई को पूरा करने में सहयोग दिया लेकिन उनके पति दादाजी भिकाजी Rukhmabai को अपने साथ रहने के लिए मजबूर करते रहते थे। 1884 में दादाजी ने बंबई हाई कोर्ट में अपनी पत्नी पर हक के लिए याचिका दायर की, जिसमें कोर्ट ने फैसला लिया कि Rukhmabai को अपने पति के साथ रहना होगा नहीं तो उन्हें सजा के तौर पर जेल भेज दिया जाएगा। Rukhmabai ने कहा कि वो जेल जाना पसंद करेंगी पर इस तरह के विवाह बंधन में नहीं रहेगीं और इस केस की डिबेट इंग्लैंड तक पहुंची।
Rukhmabai के इस कदम के 68 सालों बाद 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट पास किया गया जिसमें इस बात को रखा गया कि विवाह के बंधन में रहने के लिए पति-पत्नी दोनों की मंजूरी होना आवश्यक है। अपने पेन नेम ‘ए हिंदू लेडी’ के अंतर्गत उन्होनें कई अखबारों के लिए लेख लिखे और कई लोगों ने उनका साथ दिया। एक बार अपने लेख में उन्होनें मेडिकल की पढ़ाई करने की इच्छा जाहिर की, इसके बाद कई लोगों ने फंड करके उन्हें इंग्लैंड भेजा और लंडन स्कूल ऑफ मेडिसिन से उनकी पढ़ाई का इंतजाम किया। लंडन से डॉक्टर बनकर आने के बाद उन्होंने कई वर्षों तक राजकोट में महिलाओं के अस्पताल में अपनी सेवाएं दी। इसके साथ उन्होंने बाल विवाह और महिलाओं के मुद्दे पर बहुत ही बेबाकी से लिखा। 25 सितम्बर 1955 को 91 की उम्र में Rukhmabai की मृत्यु हुई। रुखमाबाई ने शिक्षा और अपनी निडरता से अपने साथ आगे आने वाली महिलाओं की पीढ़ी के लिए शिक्षा के रास्ते तो खोले और उन्हें बाल विवाह और पर्दा प्रथा जैसी कुरितियों से मुक्त करवाया।[जनसत्ता से साभार ]
नारी सम्मान के लिए एक बार फिर गूगल का आभार
शालिनी कौशिक

रविवार, 19 नवंबर 2017

इंदिरा गाँधी -ध्रुवतारा :... सबसे प्यारी

Image result for indira gandhi images जब ये शीर्षक मेरे मन में आया तो मन का एक कोना जो सम्पूर्ण विश्व में पुरुष सत्ता के अस्तित्व को महसूस करता है कह उठा कि यह उक्ति  तो किसी पुरुष विभूति को ही प्राप्त हो सकती है  किन्तु तभी आँखों के समक्ष प्रस्तुत हुआ वह व्यक्तित्व जिसने समस्त  विश्व में पुरुष वर्चस्व को अपनी दूरदर्शिता व् सूक्ष्म सूझ बूझ से चुनौती दे सिर झुकाने को विवश किया है .वंश बेल को बढ़ाने ,कुल का नाम रोशन करने आदि न जाने कितने ही अरमानों को पूरा करने के लिए पुत्र की ही कामना की जाती है किन्तु इंदिरा जी ऐसी पुत्री साबित हुई जिनसे न केवल एक परिवार बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र गौरवान्वित अनुभव करता है  और  इसी कारण मेरा मन उन्हें ध्रुवतारा की उपाधि से नवाज़ने का हो गया क्योंकि जैसे संसार के आकाश पर ध्रुवतारा सदा चमकता रहेगा वैसे ही इंदिरा प्रियदर्शिनी  ऐसा  ध्रुवतारा थी जिनकी यशोगाथा से हमारा भारतीय आकाश सदैव दैदीप्यमान  रहेगा।
१९ नवम्बर १९१७ को इलाहाबाद के आनंद भवन में जन्म लेने वाली इंदिरा जी के लिए श्रीमती सरोजनी नायडू जी ने एक तार भेजकर कहा था -''वह भारत की नई आत्मा है .''
गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने उनकी शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् शांति निकेतन से विदाई के समय नेहरु जी को पत्र में लिखा था -''हमने भारी मन से इंदिरा को  विदा  किया है .वह इस स्थान की शोभा थी  .मैंने उसे निकट से देखा है  और आपने जिस प्रकार उसका लालन पालन किया है उसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहा जा सकता .''   सन १९६२ में चीन ने विश्वासघात करके भारत  पर आक्रमण किया था तब देश  के कर्णधारों की स्वर्णदान की पुकार पर वह प्रथम भारतीय महिला थी जिन्होंने अपने समस्त पैतृक  आभूषणों को देश की बलिवेदी पर चढ़ा दिया था इन आभूषणों में न जाने कितनी ही जीवन की मधुरिम स्मृतियाँ  जुडी हुई थी और इन्हें संजोये इंदिरा जी कभी कभी प्रसन्न हो उठती थी .पाकिस्तान युद्ध के समय भी वे सैनिकों के उत्साहवर्धन हेतु युद्ध के अंतिम मोर्चों तक निर्भीक होकर गयी .
आज देश अग्नि -५ के संरक्षण  में अपने को सुरक्षित महसूस कर रहा है इसकी नीव में भी इंदिरा जी की भूमिका को हम सच्चे भारतीय ही महसूस कर सकते हैं .भूतपूर्व राष्ट्रपति और भारत में मिसाइल कार्यक्रम  के जनक डॉ.ऐ.पी.जे अब्दुल कलाम बताते हैं -''१९८३ में केबिनेट ने ४०० करोड़ की लगत वाला एकीकृत मिसाइल कार्यक्रम स्वीकृत किया .इसके बाद १९८४ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी डी.आर.डी एल .लैब  हैदराबाद में आई .हम उन्हें प्रैजन्टेशन दे रहे थे.सामने विश्व का मैप टंगा था .इंदिरा जी ने बीच में प्रेजेंटेशन रोक दिया और कहा -''कलाम !पूरब की तरफ का यह स्थान देखो .उन्होंने एक जगह पर हाथ रखा ,यहाँ तक पहुँचने वाली मिसाइल कब बना सकते हैं ?"जिस स्थान पर उन्होंने हाथ रखा था वह भारतीय सीमा से ५००० किलोमीटर दूर था .
इस तरह की इंदिरा जी की देश प्रेम से ओत-प्रोत घटनाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है और हम आज देश की सरजमीं पर उनके प्रयत्नों से किये गए सुधारों को स्वयं अनुभव करते है,उनके खून की एक एक बूँद हमारे देश को नित नई ऊँचाइयों पर पहुंचा रही है और आगे भी पहुंचती रहेगी.
आज इंदिरा जी के जन्मदिन पर उन्ही की याद को ताज़ा करने के लिए मैं उन्हें अपने इन शब्दों को समर्पित कर रही हूँ -
अदा रखती थी मुख्तलिफ ,इरादे नेक रखती थी ,
वतन की खातिर मिटने को सदा तैयार रहती थी .
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मोम की गुड़िया की जैसी ,वे नेता वानर दल की थी ,,
मुल्क पर कुर्बां होने का वो जज़बा दिल में रखती थी .
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पाक की खातिर नामर्दी झेली जो हिन्द ने अपने ,
वे उसका बदला लेने को मर्द बन जाया करती थी .
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मदद से सेना की जिसने कराये पाक के टुकड़े ,
शेरनी ऐसी वे नारी यहाँ कहलाया करती थी .
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बना है पञ्च-अग्नि आज छुपी है पीछे जो ताकत ,
उसी से चीन की रूहें तभी से कांपा करती थी .
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जहाँ दोयम दर्जा नारी निकल न सकती घूंघट से ,
वहीँ पर ये आगे बढ़कर हुकुम मनवाया करती थी .
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कान जो सुन न सकते थे औरतों के मुहं से कुछ बोल ,
वो इनके भाषण सुनने को दौड़कर आया करती थी .
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न चाहती थी जो बेटी का कभी भी जन्म घर में हो ,
मिले ऐसी बेटी उनको वो रब से माँगा करती थी .
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जन्मदिन ये मुबारक हो उसी इंदिरा की जनता को ,
जिसे वे जान से ज्यादा हमेशा चाहा करती थी .
आज का ये दिन हमारे देश के लिए पूजनीय दिवस है और इस दिन हम सभी  इंदिरा जी को श्रृद्धा  पूर्वक  नमन करते है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

मंगलवार, 14 नवंबर 2017

इकलौती पुत्री की आग की सेज-:-दहेज़

दहेज़ :इकलौती पुत्री की आग की सेज


   
 एक ऐसा जीवन जिसमे निरंतर कंटीले पथ पर चलना और वो भी नंगे पैर सोचिये कितना कठिन होगा पर बेटी ऐसे ही जीवन के साथ इस धरती पर आती है .बहुत कम ही माँ-बाप के मुख ऐसे होते होंगे जो ''बेटी पैदा हुई है ,या लक्ष्मी घर आई है ''सुनकर खिल उठते हों .
                 'पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी ,
                उम्मीदों का बवंडर उसी पल में थम गया .''

बचपन से लेकर बड़े हों तक बेटी को अपना घर शायद ही कभी अपना लगता हो क्योंकि बात बात में उसे ''पराया धन ''व् ''दूसरे  घर जाएगी तो क्या ऐसे लच्छन [लक्षण ]लेकर जाएगी ''जैसी उक्तियों से संबोधित कर उसके उत्साह को ठंडा कर दिया जाता है .ऐसा नहीं है कि उसे माँ-बाप के घर में खुशियाँ नहीं मिलती ,मिलती हैं ,बहुत मिलती हैं किन्तु ''पराया धन '' या ''माँ-बाप पर बौझ '' ऐसे कटाक्ष हैं जो उसके कोमल मन को तार तार कर देते  हैं .ऐसे में जिंदगी गुज़ारते गुज़ारते जब एक बेटी और विशेष रूप से इकलौती बेटी का ससुराल में पदार्पण होता है तब उसके जीवन में और अधिकांशतया  इकलौती पुत्री के जीवन में उस दौर की शुरुआत होती है जिसे हम अग्नि-परीक्षा कह सकते हैं .
               एक तो पहले ही बेटे के परिवार वाले बेटे पर जन्म से लेकर उसके विवाह तक पर किया गया खर्च बेटी वाले से वसूलना चाहते हैं उस पर यदि बेटी इकलौती हो तब तो उनकी यही सोच हो जाती है कि वे अपना पेट तक काटकर उन्हें दे दें .इकलौती बेटी को बहू बनाने  वाले एक परिवार के  सामने जब बेटी के पिता के पास किसी ज़मीन के ६ लाख रूपए आये तो उनके लालची मन को पहले तो ये हुआ कि ये  अपनी बेटी को स्वयं देगा और जब उन्होंने कुछ समय देखा कि बेटी को उसमे से कुछ नहीं दिया तो कुछ समय में ही उन्होंने अपनी बहू को परेशान करना शुरू कर दिया.हद तो यह कि बहू के लिए अपने बेटे से कहा ''कि इसे एक बच्चा गोद में व् एक पेट में डालकर इसके बाप के घर भेज दे .''उनके मन कि यदि कहूं तो यही थी कि बेटी का होना इतना बड़ा अपराध था जो उसके मायके वालों ने किया था कि अब बेटी की शादी के बाद वे पिता ,माँ व् भाई बस बेटी के ससुराल की ख़ुशी ही देख सकते थे और वह भी अपना सर्वस्व अर्पण करके.
     एक मामले में सात सात भाइयों की अकेली बहन को दहेज़ की मांग के कारण बेटे के पास न भेजकर सास ने  अपनी ही सेवा में रखा जबकि सास कि ऐसी कोई स्थिति  नहीं थी कि उसे सेवा करवाने की आवश्यकता हो.ऐसा नहीं कि इकलौती बेटी के साथ अन्याय केवल इसी हद तक सीमित रहता हो बेटे वालों की भूख बार बार शांत करने के बावजूद बेटी के विवाह में १२ लाख रूपए जेवर और विवाह के बाद बेटी की ख़ुशी के लिए फ्लैट देने के बावजूद इकलौती बेटी को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझा जाता है और उच्च शिक्षित होते हुए भी उसके माँ-बाप ससुराल वालों के आगे लाचार से फिरते हैं और उन्हें बेटी के साथ दरिंदगी का पूरा अवसर देते हैं और ये दरिंदगी इतनी हद तक भी बढ़ जाती है कि या तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है या वह स्वयं ही मौत को गले लगा लेती है क्योंकि एक गुनाह तो उसके माँ-बाप का है कि उन्होंने बेटी पैदा कि और दूसरा गुनाह जो कि सबसे बड़ा है कि वह ही वह बेटी है.
                 इस तरह माँ-बाप के घर नाजुक कली से फूल बनकर पली-बढ़ी इकलौती बेटी जिसे इकलौती होने के कारण अतुलनीय स्नेह प्राप्त होता है ससुराल में आकर घोर यातना को सहना पड़ता है .हमारा दहेज़ कानून दहेज़ के लेन-देन को अपराध घोषित करता है किन्तु न तो वह दहेज़ का लेना रोक सकता है न ही देना क्योंकि हमारी सामाजिक परम्पराएँ हमारे कानूनों पर आज भी हावी हैं .स्वयं की बेटी को दहेज़ की बलिवेदी पर चढाने वाले माँ-बाप भी अपने बेटे के विवाह में दहेज़ के लिए झोले लटकाए घूमते हैं .जिस तरह दहेज़ के भूखे भेड़िये निंदा के पात्र हैं उसी तरह सामाजिक बहिष्कार के भागी हैं दहेज़ के दानी जो इनके मुहं पर दहेज़ का खून लगाते हैं और अपनी बेटी के लिए आग की सेज सजाते हैं .
                शालिनी कौशिक
                    [कौशल]

                   
     

बुधवार, 8 नवंबर 2017

नारी तो चुभती ही हैं .


     नहटौर में एक चुनावी सभा में ''आप''नेता अलका लम्बा पर पत्थर से हमला ,कोई नई बात नहीं है .राजनीति के क्षेत्र में उतरने वाली महिलाएं आये दिन कभी शब्द भेदी बाणों का तो कभी पत्थरों आदि के हमलों का शिकार होती रहती हैं .ममता बनर्जी तो पश्चिमी बंगाल में इसका जीता-जागता उदाहरण हैं और देश की प्रथम महिला व् पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी तो इस क्षेत्र में किंवदंती बन चुकी हैं .ममता बनर्जी के बढ़ते वर्चस्व को देखकर वामपंथियों का ख़ौफ़ग्रस्त होना सब जानते हैं क्योंकि इसी खौफ के चलते उन्होंने अपनी सत्ता जाते देख ममता बनर्जी को मरवाने की कोशिश तक कर डाली थी और रही इंदिरा गाँधी जी की बात उन्हें देख तो उनके विपक्षियों की रूहें उनके जीते-जी भी कांपती थी ही उनके मरने के बाद भी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया हैं आज भी उनके नाम से सभी विपक्षियों के शरीर में कंपकपी दौड़ जाती हैं और इसलिए आज भी कोई भी चुनाव हो या देश में कोई भी नवीन शुरुआत इंदिरा गाँधी का नाम ले विपक्षी दल उनकी नियत व् चरित्र पर हमले कर इंदिरा गाँधी को चाहने वाली जनता को उनसे तोड़ने की कोशिश करते रहते हैं जबकि आज भी जनता में उनके लिए इतना प्यार हैं जिसके दम पर  वर्तमान कॉंग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी ने कॉंग्रेस के विपक्षी दलों को विदेशी होने का विरोध झेलते हुए भी सत्ता से दस साल बाहर रखा .
          राजनीति ही क्या नारी का किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ना पुरुष सत्तात्मक समाज को पसंद नहीं आता हैं और कैसे भी कर नारी को पीछे धकेलने के प्रयास किये जाते हैं और इसमें सबसे बड़ा हमला नारी के चरित्र को लेकर किया जाता हैं जहाँ नारी जरा सा आगे बढ़ी वहां सबसे पहले उसको चरित्रहीन कहना आम बात हैं इंदिरा गाँधी पर हमलों में एक बात यह भी हैं कि विपक्षी दल उनके चरित्र पर हमले बोलने से पीछे नहीं रहते ,सोनिया गाँधी के चरित्र को लेकर भी उँगलियाँ उठाई जाती रही हैं ,लेकिन उन्होंने ''एक चुप सौ को हरावे ''का अनुसरण कर विपक्षियों को अनर्गल प्रलापियों की श्रेणी में रहने को छोड़ दिया ,वरिष्ठ आई.ए.एस.रूपम देओल ने तो ऐसे ही एक हमले को लेकर के.पी.एस.गिल को न्यायालय में घसीट लिया था ,मायावती हो या जयललिता ,उमा भारती हों या सुषमा स्वराज महिलाओं को कहीं भी हों छोड़ा नहीं जाता और जहाँ चरित्र पर हमले से इनका काम नहीं चलता वहां ये जान लेने से भी नहीं चूकते गौरी लंकेश इसका बिलकुल नवीन उदाहरण हैं .
         महिलाओं की तरक्की पुरुष वर्ग को बिलकुल पसंद नहीं आती और अगर इनकी चालबाजियों से बचकर कोई महिला किसी तरह तरक्की कर ले तो इसमें उसके महिला होने को भी फायदे में गिना जाता हैं जबकि यह महिला होना ही तो उसकी तरक्की की सबसे बड़ी बाधा हैं न वह महिला होती न उसके साथ इतनी दिक्कतें होती.पहले तो पैदा होने में दिक्कत दूसरे पढ़ने में दिक्कत ,तीसरे शादी में ,समाज में अपना स्थान बनाने में दिक्कत ,पुरुष वर्ग की यह सोच ''जब तक लड़की की शादी न हो जाये वह धरती पर बोझ हैं और शादी चाहे लड़की हर तरह से काबिल हो उसकी शादी में खूब सारा दहेज़ ,अपने से कम योग्यता वाले पुरुष से शादी और उस पर भी उसे उसकी गुलामी करनी होगी क्योंकि वह नारी हैं और वह पुरुष .
              ऐसे में जब कोई नारी आगे बढ़ती हैं तब उस पर हमले होना कोई बड़ी बात नहीं हैं .राजनीति हमारे यहाँ सर्वाधिक प्रभावशाली क्षेत्र हैं और उसमे नारी का स्थान बनाना बहुत बड़ी बात हैं तो पुरुष वर्ग को कैसे पसंद आ सकती हैं लेकिन मुश्किलों को पछाड़ना नारी जाति के लिए भी कोई बड़ी बात नहीं क्योंकि मुश्किलें तो उसकी आदत में शुमार हो चुकी हैं और मुश्किलें न हों तो उसके पेट में रोटी पचती भी नहीं और इसी का परिणाम हैं कि लाख हमलों के बाद भी नारी हर जगह डटी हुई हैं और निरंतर आगे बढ़ती जा रही हैं .

शालिनी कौशिक
     [कौशल ] 

शनिवार, 4 नवंबर 2017

माँ - एक लघु कथा

''ये शोर कैसा है ''नरेंद्र ने अपने नौकर जनार्दन से पूछा ,कुछ नहीं बाबूजी ,वो माता जी को खांसी का धसका लगा और उनसे मेज गिर गयी जिससे उसपर रखी हुई दवाइयां इधर-उधर गिर गयी ,जनार्दन ने बताया ,''पता नहीं कब मरेंगी  मेरी इतनी मेहनत की कमाई यूँ ही स्वाहा हुई जा रही है ,वे तो मेरे और इस घर पर बोझ ही बनकर पड़ गयी हैं .घर से निकाल नहीं सकता लोगों में सारी इज़ज़त गिर जायेगी मेरी ''बड़बड़ाते हुए नरेंद्र बाहर चले गए .
नरेंद्र....नरेंद्र...धीमी सी आवाज़ में कौशल्या देवी ने मुश्किल से आवाज़ लगायी तो जनार्दन तेज़ी से भागकर वहाँ पहुंचा ,जी माता जी ,जनार्दन के कहने पर कौशल्या देवी बोली ,''जनार्दन! कहाँ है नरेंद्र ?''..जी वे तो बाहर चले गए ..जनार्दन के कहने पर कौशल्या देवी बोली ..वो कुछ गुस्सा हो रहा था ,क्यूँ किस पर ?..जी आप पर ,वे कहते हैं कि आप घर पर बोझ हैं .''..जनार्दन के मुंह से ये सुनकर कौशल्या देवी का मन बैठ गया वे दुखी मन से बोली ,''मेरे पर क्यूँ गुस्सा हो रहा था ..मैंने क्या किया ...आज तक उसका और इस घर का करती ही आ रही हूँ ,जरा सा बीमार क्या पड़ गयी उसने तो घर को सर पर ही उठा लिया ,अरे जरा सा बुखार ही तो है दो चार दिन में ठीक हो जायेगा और आज तक मेरे ही तो पैसों पर पल रहा है ,चल रहा है उसका घर और उसका यारों दोस्तों में उठना बैठना ,उसने तो आज तक एक अठन्नी भी लाकर मेरे हाथ पर नहीं धरी ....और ये कहकर वे रोने लगी .
जनार्दन उन्हें थोडा समझकर कमरे से बाहर निकल आया तभी फोन की घंटी बजी ,हेलो ! जनार्दन ने रिसीवर कान से लगाकर कहा ,..देखिये आप नरेंद्र जी के घर से बोल रहे हैं ,..हाँ कहिये ....देखिये मैं युवराज बोल,रहा हूँ जनपद वाला ,नरेंद्र जी मेरे घर के बाहर खड़े होकर मुझे गलियां दे रहे थे और कंकड़ पत्थर मार रहे थे कि अचानक मेरे पडोसी नवीन जी का छज्जा उनपर गिर गया और वे गम्भीर रूप से घायल हो गए है ,उन्हें हम अस्पताल लेकर जा रहे हैं आप वहीँ आ जाइये ..ये कहकर फोन डिस्कनेक्ट हो गया .
माता जी ..माता जी ....नरेंद्र बाबू को बहुत चोट आयी है ,उन्हें कुछ लोग लेकर अस्पताल जा रहे हैं ....मैं भी जा रहा हूँ ....तू रुक ...जनार्दन को रोकते हुए कौशल्या देवी बोली ,मैं भले ही उसे बोझ लगती हूँ पर मेरे लिए मेरा बेटा  कभी बोझ नहीं हो सकता ,मैं आज भी उसे ठीक करने की ताकत रखती हूँ भले ही वह मेरी जिम्मेदारी से मुकर जाये ......आँख में आये आंसू पौंछती हुई कौशल्या देवी को जनार्दन ने सहारा दिया और कहा ..चलिए माता जी सच में आप सही कह रही हैं ,आप माँ हैं और माँ माँ ही होती है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]