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सोमवार, 31 जुलाई 2017

नारी की लेके कदम-कदम अग्नि-परीक्षा

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अवसर दिया श्रीराम ने पुरुषों को हर कदम ,
अग्नि-परीक्षा नारी की तुम लेते रहोगे ,
करती रहेगी सीता सदा मर्यादा का पालन
पर ठेकेदार मर्यादा के यहाँ तुम ही रहोगे .
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इक रात भी नारी अगर घर से रही बाहर
घर से निकाल तुम उसे बाहर ही करोगे ,
पर लौटके तुम आ रहे दस साल में भी गर
पवित्रता की मूर्ति बन सजते रहोगे .
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इज़्ज़त के नाम पे यहां नारी की खिंचाई
इज़्ज़त के वास्ते उसे तुम क़त्ल करोगे ,
हमको खबर है बहक कलियुगी सूर्पणखा से
सबकी नज़र में इज़्ज़तदार बने रहोगे .
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कुदरत ने दिया नारी को माँ बनने का जो वर
उसको कलंक तुम ही बनाते रहोगे ,
नारी की लेके कदम-कदम अग्नि-परीक्षा
तुम राम बनके दिल यूँ ही दुखाते रहोगे .
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 शालिनी कौशिक
     [कौशल ]

बुधवार, 26 जुलाई 2017

कठपुतली

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माथे ऊपर हाथ वो धरकर
बैठी पत्थर सी होकर
जीवन अब ये कैसे चलेगा
चले गए जब पिया छोड़कर
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बापू ने पैदा होते ही
झाड़ू-पोंछा हाथ थमाया
माँ ने चूल्हा-चौका दे दिया
चकला बेलन हाथ थामकर .
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पढ़ना चाहा पाठशाला में
बाबा जी से कहकर देखा
बापू ने जब आँख तरेरी
माँ ने डांट दिया धमकाकर .
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आठ बरस की होते मुझको
विदा किया बैठाकर डोली
तबसे था बस एक सहारा
मेरे पिया मेरे हमजोली .
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उनके बच्चे की माता थी
उनके घर की चौकीदार
सारा जीवन अपना देकर
मिला न एक भी खेवनहार .
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आज गए वो मुझे छोड़कर
घर-गृहस्थी कहीं और ज़माने
बच्चों का भी लगा कहीं मन
मुझको सारे बोझ ही मानें .
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व्यथा कहूं क्या इस जीवन की
जिम्मेदारी है ये खुद की
मर्द के हाथ में दी जब डोरी
बनोगी उसकी ही कठपुतली .
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शालिनी कौशिक
    [कौशल

शनिवार, 22 जुलाई 2017

कब करोगे बेटी से इंसाफ?

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   '' वकील साहब '' कुछ करो ,हम तो लुट  गए ,पैसे-पैसे को मोहताज़ हो गए ,हमारी बेटी को मारकर वो तो बरी हो गए और हम .....तारीख दर तारीख अदालत के सामने गुहार लगाने के बावजूद कुछ नहीं कर पाए ,क्या वकील साहब अब कहीं इंसाफ नहीं है ? " रोते रोते उसने मेरे सामने अपनी बहन की दहेज़ हत्या में अदालत के निर्णय पर नाखुशी ज़ाहिर करते हुए फूट-फूटकर रोना आरम्भ कर दिया ,मैंने मामले के एक-एक बिंदु के बारे में उससे समझा-बुझाकर जानने की कोशिश की. किसी तरह उसने अपनी बहन की शादी से लेकर दहेज़-हत्या तक व् फिर अदालत में चली सारी कार्यवाही के बारे में बताया ,वो बहन के पति व् ससुर को ,पुलिस वालों को ,अपने वकील को ,निर्णय देने वाले न्यायाधीश को कुछ न कुछ कहे जा रहा था और रोये जा रहा था और मुझे गुस्सा आये जा रहा था उसकी बेबसी पर ,जो उसने खुद ओढ़ रखी थी .
             जो भी उसने बताया ,उसके अनुसार ,उसकी बहन को उसके पति व् ससुर ने कई बार प्रताड़ित कर घर से निकाल दिया था और तब ये उसे उसकी विनती पर घर ले आये थे ,फिर बार-बार पंचायतें कर उसे वापस ससुराल भेजा जाता रहा और उसका परिणाम यह रहा कि एक दिन वही हो गया जिसका सामना आज तक बहुत सी बेटियों-बहनो को करना पड़ा है और करना पड़ रहा है .
             ''दहेज़ हत्या'' कोई एक दिन में ही नहीं हो जाती उससे पहले कई दिनों,हफ्तों,महीनो तो कभी सालों की प्रताड़ना लड़की को झेलनी पड़ती है और बार बार लड़के वालों की मांगों का कटोरा उसके हाथों में दे ससुराल वालों द्वारा उसे मायके के द्वार पर टरका दिया जाता है जैसे वह कोई भिखारन हो और मायके वालों द्वारा, जिनकी गोद में वो खेल-कूदकर बड़ी हुई है ,जिनसे यदि अपना पालन-पोषण कराया है तो उनकी अपनी हिम्मत से बढ़कर सेवा-सुश्रुषा भी की है,भी कोई प्यार-स्नेह का व्यव्हार उसके साथ नहीं किया जाता ,समाज के विवाह की अनिवार्यता के नियम का पालन करते हुए जैसे-तैसे बेटी का ब्याह कर उसके अधिकांश मायके वाले उसके विवाह पर उसकी समस्त ज़िम्मेदारियों से मुक्ति मान लेते हैं और ऐसे में अगर उसके ससुराल वाले ,जो कि उन मायके वालों ने ही चुने हैं न कि उनकी बेटी ने ,अपनी कोई अनाप-शनाप ''डिमांड'' रख उनकी बेटी को ही उनके घर भेज देते हैं तो वह उनके लिए एक आपदा सामान हो जाती है और फिर वे उससे मुक्ति का नया हथियार उठाते हैं और ससुराल वालों की मांग कभी थोड़ी तो कभी पूरी मान ''कुत्ते के मुंह में खून लगाने के समान ''अपनी बेटी को फिर बलि का बकरा बनाकर वहीँ धकिया देते हैं .
               वैसे जैसे जैसे हमारा समाज विकास कर रहा है कुछ परिवर्तन तो आया है किन्तु इसका बेटी को फायदा अभी नज़र नहीं आ रहा है क्योंकि मायके वालों में थोड़ी हिम्मत तो अब आयी है .उन्होंने अब बेटी पर ससुराल में हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठानी तो अब शुरू की है जबकि पहले बेटी को उसकी ससुराल में परेशान होते हुए जानकर भी वे इसे बेटी की और घर की बदनामी के रूप में ही लेते थे और चुपचाप होंठ सीकर बेटी को ससुरालियों की प्रताड़ना सहने को मजबूर करते थे और इस तरह अनजाने में बेटी को मारने में उसके ससुरालियों का सहयोग ही करते थे ,कर तो आज भी वैसे वही रहे हैं बस आज थोड़ा बदलाव है अब लड़की वालों व् ससुरालवालों के बीच में कहीं पंचायतें हैं तो कहीं मध्यस्थ हैं और दोनों का लक्ष्य वही ....लड़की को परिस्थिति से समझौता करने को मजबूर करना और उसे उस ससुराल में मिल-जुलकर रहने को विवश करना जहाँ केवल उसका खून चूसने -निचोड़ने के लिए ही पति-सास-ससुर-ननद-देवर बैठे हैं .
               आज इसी का परिणाम है कि जो लड़की थोड़ी सी भी अपने दम पर समाज में खड़ी है वह शादी से बच रही है क्योंकि घुटने को वो,मरने को वो ,सबका करने को वो और उसको अगर कुछ हो जाये तो कोई नहीं ,न मायका उसका न ससुराल ,ससुरालियों को बहू के नाम पर केवल दौलत प्यारी और मायके वालों को बेटी के नाम पर केवल इज़्ज़त...प्यारी...ससुरालिए तो पैसे के नाम पर उसे उसके मायके धकिया देंगे और मायके वाले उसे मरने को ससुराल ,कोई उसे रखने को तैयार नहीं जबकि कहने को ''नारी हीन घर भूतों का डेरा ,यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते,रमन्ते तत्र देवता '' ऐसे पवित्र वाक्यों को सभी जानते हैं किन्तु केवल परीक्षाओं में लिखने व् भाषणों  में बोलने के लिए ,अपने जीवन में अपनाने के लिए नहीं .
                       बेटी को अगर ससुराल में कुछ हो जाये तो उसके मायके वाले दूसरों को ही कोसते हैं जो कि बहुत आसान है क्यों नहीं झांकते अपने गिरेबान में जो उनकी असलियत को उनके सामने एक पल में रख देगा .भला कोई बताये ,पति हो,सास हो ,ससुर हो,ननद-देवर-जेठ-पुलिस-वकील-जज कौन हैं ये आपकी बेटी के ? जब आप ही अपनी बेटी को आग में झोंक रहे हैं तो इन गैरों पर ऐसा करते क्या फर्क पड़ता है ? पहले खुद तो बेटी-बहन के प्रति इंसाफ करो तभी दूसरों से इंसाफ की दरकार करो .शादी करना अच्छी बात है लेकिन अगर बेटी की कोई गलती न होने पर भी ससुराल वाले उसके साथ अमानवीय बर्ताव करते हैं तो उसका मायका तो उससे दूर नहीं होना चाहिए ,कम से कम बेटी को ऐसा तो नहीं लगना चाहिए कि उसका इस दुनिया में कोई भी नहीं है .केवल दहेज़ हत्या हो जाने के बाद न्यायालय की शरण में जाना तो एक मजबूरी है ,कानून ने आज बेटी को बहुत से अधिकार दिए हैं लेकिन उनका साथ वो पूरे मन से तभी ले सकती है जब उसके अपने उसके साथ हो .अब ऐसे में एक बाप को ,एक भाई को ये तो सोचना ही पड़ेगा कि इन्साफ की ज़रुरत बेटी को कब है -मरने से पहले या मरने के बाद ?

शालिनी कौशिक 
      [कौशल]

रविवार, 9 जुलाई 2017

अमर्यादित पुरुष --डा श्याम गुप्त

------अमर्यादित पुरुष ------
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पहले महिलायें कहा करतीं थीं- ‘घर-बच्चों के मामले में टांग न अड़ाइए आप अपना काम देखिये|’
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आजकल वे कहने लगीं हैं- ‘घर के काम में भी पति को हाथ बंटाना चाहिए, बच्चे के काम में भी| क्यों? क्योंकि अब हम भी तो आदमी के तमाम कामों में हाथ बंटा रही हैं, कमाने में भी |
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क्या वास्तव में ऐसा है ? नहीं ...महिलायें आजकल पढी-लिखी होने के कारण, कुछ महिलाओं के, जो अधिकाँश असंतुष्ट व ठोकर खाई हुई होती हैं एवं कुछ छद्म-महिलावादी सेक्यूलर पुरुषों द्वारा यह सोच कि महिलायें इसी उधेड़बुन में लगी रहें ताकि कुछ ऊंचा न सोच सकें, पुरुषवादी समाज के छद्म व भ्रामक नारे को उछालने के कारण ऐसा कहने लगीं हैं|
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अन्यथा प्रायः महिलाए अपने स्वयं के और अधिक सुख-संतोष, खर्च करने, शानो-शौकत व प्रदर्शन हेतु कार्य करती हैं| वे घर के कार्य को हीन व अनावश्यक समझने के कारण एवं गृहकार्य हेतु कठिन परिश्रम से बचने हेतु भी पुरुष से यह आशा करती हैं| आजकल बाहर खाना खाने, घूमने-फिरने में समय बिताने, खर्चीले फैशन भी इस बदलाव का एक कारण है|
\
परिणाम है कि पुरुष चाय बनाने, बच्चे खिलाने, घर-गृहस्थी के महिलाओं के कार्यों में सिमट रहा है | वह न आफिस का कार्य सुचारू रूप से कर पाने में सक्षम हो पारहा है न उच्च वैचारिक सोच, स्वाध्याय,पठन-पाठन हेतु समय दे पारहा है| टीवी, कम्प्युटर, इंटरनेट आदि रूपी बुद्धू बक्सा का नया रूप अब ये सारे गृहकार्य भी हो चले हैं |
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यह स्थिति पुरुष को सामाजिकता व अन्य उच्च वैचारिक क्षमता से दूर ले जारही हैं| सिर्फ भौतिकता व शारीरिक सुख का महत्व हमारे पुरुषों के, युवाओ के मन में घर बना रहा है|
\\
दुष्परिणाम सामने है ...समाज में स्त्री-पुरुष स्वच्छंदता, वैचारिक शून्यता, अति-भौतिकता, द्वंद्व, अत्यधिक कमाने के लिए चूहा-दौड़, बढ़ती हुई अश्लीलता ...के परिणामी तत्व---अमर्यादाशील पुरुष, संतति, जो हम प्रतिदिन समाचारों में देखते रहते हैं...यौन अपराध, नहीं कम हुआ अपराधों का ग्राफ, आदि |
\
क्यों नर एसा होगया यह भी तो तू सोच ,
क्यों है एसी होगयी उसकी गर्हित सोच |
उसकी गर्हित सोच, भटक क्यों गया दिशा से |
पुरुष सीखता राह, सखी, भगिनी, माता से |
नारी विविध लालसाओं में खुद भटकी यों |
मिलकर सोचें आज होगया एसा नर क्यों | -
--डा श्याम गुप्त
\
दोष किसका है -----मीडिया का जो कि आये दिन अपने चैनल्स पर दुनिया भर की गंदगी परोसकर युवाओ के मन को उकसाता है ...

-------इस सूचना क्रांति का जिसका का दुरूपयोग होता है और युवा मन बहकता रहता है | वो सारे विज्ञापन जो टीवी में आये दिन क्या युवाओं को और उनके मन को नहीं उकसाते हैं|
-------- फिल्मो का जहां औरतो का चरित्र जिस तरह से जिन कपड़ो में दर्शाया जा रहा है, क्या वो युवा पीढ़ी को इस अपराध के लिये नहीं उकसाते होंगे|
\
हमारे गुम होते संस्कारों का जो हमें स्त्रियों का आदर करना सिखाते थे|
\
हम माता-पिता का जो कि अपने बच्चो को ठीक शिक्षा नहीं दे पा रहे है|
\ युवाओ का जो अब स्त्रियों को सिर्फ एक भोग की वस्तु ही समझ रहे है |
\
---------कहाँ गलत हो रहा है, किस बात की कुंठा है, तन का महत्व कैसे हमारे पुरुषों के, युवाओ के मन में गलत घर बना रहा है, क्या माता-पिता का दोष इन युवाओ से कम है ? क्यों उन्होंने इतनी छूट दे रखी है ? कुछ तो गलत हो रहा है, हमारी सम्पूर्ण सोच में | क्या हम सभी को; एक मज़बूत स्वच्छ व सोच की पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं है |
...सोचियेगा अवश्य...|


शनिवार, 8 जुलाई 2017

बदलो भारतीय नारी

चली है लाठी डंडे लेकर भारतीय नारी ,
तोड़ेगी सारी बोतलें अब भारतीय नारी .
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बहुत दिनों से सहते सहते बेदम हुई पड़ी थी ,
तोड़ेगी उनकी हड्डियां आज भारतीय नारी .
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लाता नहीं है एक भी तू पैसा कमाकर ,
करता नहीं है काम घर का एक भी आकर ,
मुखिया तू होगा घर का मेरे कान खोल सुन
जब जिम्मेदारी मानेगा खुद शीश उठाकर ,
गर ऐसा करने को यहाँ तैयार नहीं है ,
मारेगी धक्के आज तेरे भारतीय नारी .
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उठती सुबह को तुझसे पहले घर को सँवारुं,
खाना बनाके देके तेरी आरती उतारूँ,
फिर लाऊँ कमाई करके सिरपे ईंट उठाकर
तब घर पे आके देख तुझे भाग्य सँवारुं .
मेरे ही नोट से पी मदिरा मुझको तू मारे,
अब मारेगी तुझको यहाँ की भारतीय नारी .
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पिटना किसी भी नारी का ही भाग्य नहीं है ,
अब पीट भी सकती है तुझे भारतीय नारी .
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जीवन लिखा है साथ तेरे मेरे करम ने ,
तू मौत नहीं मेरी कहे भारतीय नारी .
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लगाया पार दुष्टों को है देवी खडग ने ,
तुझको भी तारेगी अभी ये भारतीय नारी .
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शालिनी कौशिक
(कौशल