बुधवार, 31 दिसंबर 2014

अमर्यादित पुरुष ...डा श्याम गुप्त ....



                        अमर्यादित पुरुष
      पहले महिलायें कहा करतीं थीं- ‘घर-बच्चों के मामले में टांग न अड़ाइए आप अपना काम देखिये|’ आजकल वे कहने लगीं हैं- ‘घर के काम में भी पति को हाथ बंटाना चाहिए, बच्चे के काम में भी| क्यों? क्योंकि अब हम भी तो आदमी के तमाम कामों में हाथ बंटा रही हैं, कमाने में भी |
      क्या वास्तव में ऐसा है ? नहीं ...महिलायें आजकल पढी-लिखी होने के कारण, कुछ महिलाओं के, जो अधिकाँश असंतुष्ट व ठोकर खाई हुई होती हैं एवं कुछ छद्म-महिलावादी सेक्यूलर पुरुषों द्वारा यह सोच कि महिलायें इसी उधेड़बुन में लगी रहें ताकि कुछ ऊंचा न सोच सकें, पुरुषवादी समाज के छद्म व भ्रामक नारे को उछालने के कारण ऐसा कहने लगीं हैं| अन्यथा प्रायः महिलाए अपने स्वयं के और अधिक सुख-संतोष, खर्च करने, शानो-शौकत व प्रदर्शन हेतु कार्य करती हैं| वे घर के कार्य को हीन  व अनावश्यक समझने के कारण एवं गृहकार्य हेतु कठिन परिश्रम से बचने हेतु भी पुरुष से यह आशा करती हैं| आजकल बाहर खाना खाने, घूमने-फिरने में समय बिताने, खर्चीले फैशन भी इस बदलाव का एक कारण है|
      परिणाम है कि पुरुष चाय बनाने, बच्चे खिलाने, घर-गृहस्थी के महिलाओं के कार्यों में सिमट रहा है | वह न आफिस का कार्य सुचारू रूप से कर पाने में सक्षम हो पारहा है न उच्च वैचारिक सोच, स्वाध्याय,पठन-पाठन हेतु समय दे पारहा है|  टीवी, कम्प्युटर, इंटरनेट आदि रूपी बुद्धू बक्सा का नया रूप अब ये सारे गृहकार्य भी हो चले हैं | यह स्थिति पुरुष को सामाजिकता व अन्य उच्च वैचारिक क्षमता से दूर ले जारही हैं| सिर्फ भौतिकता व शारीरिक सुख का महत्व हमारे पुरुषों के, युवाओ के मन में घर बना रहा है|
       दुष्परिणाम सामने है ...समाज में स्त्री-पुरुष स्वच्छंदता, वैचारिक शून्यता, अति-भौतिकता, द्वंद्व, अत्यधिक कमाने के लिए चूहा-दौड़, बढ़ती  हुई अश्लीलता ...के परिणामी तत्व---अमर्यादाशील पुरुष, संतति, जो हम प्रतिदिन समाचारों में देखते रहते हैं...यौन अपराध, नहीं कम हुआ अपराधों का ग्राफ, आदि |   
क्यों नर एसा होगया यह भी तो तू सोच ,
क्यों है एसी  होगयी  उसकी  गर्हित सोच |
उसकी गर्हित सोच, भटक क्यों गया दिशा से |
पुरुष सीखता राह, सखी, भगिनी, माता से |
नारी विविध लालसाओं में खुद भटकी यों |
मिलकर सोचें आज होगया एसा नर क्यों |
          दोष किसका है -----मीडिया का जो कि आये दिन अपने चैनल्स पर दुनिया भर की गंदगी परोसकर युवाओ के मन को उकसाता है   इस सूचना क्रांति का जिसका का दुरूपयोग होता है और युवा मन बहकता रहता है  | वो सारे विज्ञापन जो टीवी में आये दिन क्या युवाओं को और उनके मन को नहीं उकसाते हैं| फिल्मो का जहां औरतो का चरित्र जिस तरह से जिन कपड़ो में दर्शाया जा रहा है, क्या वो युवा पीढ़ी को इस अपराध के लिये नहीं उकसाते होंगे| हमारे गुम होते संस्कारों का जो हमें स्त्रियों का आदर करना सिखाते थे|
       हम माता-पिता का जो कि अपने बच्चो को ठीक शिक्षा नहीं दे पा रहे है| युवाओ का जो अब स्त्रियों को सिर्फ एक भोग की वस्तु ही समझ रहे है |
       कहाँ गलत हो रहा है, किस बात की कुंठा है, तन का महत्व कैसे हमारे पुरुषों के, युवाओ के मन में गलत घर बना रहा है, क्या माता-पिता का दोष इन युवाओ से कम है ?  क्यों उन्होंने इतनी छूट दे रखी है ?  कुछ तो गलत हो रहा है, हमारी सम्पूर्ण सोच में | क्या हम सभी को; एक मज़बूत स्वच्छ व सोच की पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं है |
     नववर्ष पर इस पुनर्विचार की आवश्यकता है ...सोचियेगा अवश्य...|


''बराबर का मिले दर्ज़ा ;नया ये साल ऐसा हो !''

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ज़मी ज़न्नत बने अपनी ,
अमन की अब हुकूमत हो ,
मिटें दिल की सभी दूरी ,
नया ये साल ऐसा हो !
............................................
 दिलों की नफ़रतें सारी  ,
सुपुर्द -ए-खाक हो जायें ,
न केवल गैर की ,अपनी
भी नीयत पाक हो जाये ,
मिटे जब दुश्मनी दिल से ;
समां ये ज़श्न जैसा हो !
मिटें दिल की सभी दूरी ,
नया ये साल ऐसा हो !
.....................................
न कुचली जायें कोखों में ,
न ऑनर के लिए मारें ,
लुटे औरत की न अस्मत ,
मिले  अब हक़ उसे सारे  ,
बराबर का हो जब दर्ज़ा ;
गुरूर-ए-मर्द कैसा हो !
मिटें दिल की सभी दूरी ,
नया ये साल ऐसा हो !
...................................
मिले दो वक्त की रोटी  ,
न भूखा अब कोई  सोये ,
अन्न का दाता अब कोई ,
क़र्ज़ का बोझ न ढोये ,
मिले मेहनत का फल मीठा ;
किसानों पर भी पैसा हो !
मिटें दिल की सभी दूरी ,
नया ये साल ऐसा हो !
....................................
दिखाकर ख़्वाब हज़ारों ,
हुए सत्ता पे जो काबिज़ ,
मुकर जायें जो वादों से ,
करें बर्दाश्त न हरगिज़ ,
खिलाफत हम करें खुलकर ;
तभी जैसे को तैसा  हो !
मिटें दिल की सभी दूरी ,
नया ये साल ऐसा हो !
.........................................
चलें रंगों की बस गोली ,
मनें संग ईद और होली ,
छटें आतंक के कोहरे ,
न जनता क़त्ल हो भोली ,
नहीं हथियार पर 'नूतन'
अहिंसा पर भरोसा हो !
मिटें दिल की सभी दूरी ,
नया ये साल ऐसा हो !

शिखा कौशिक 'नूतन'







रविवार, 28 दिसंबर 2014

''क्योंकि वो एक लड़की है ''


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बाबू रामधन ने हाथ देकर ऑटो रुकवाया . वे शहर आये थे अस्पताल  में भर्ती अपने मित्र सुरेश  का हालचाल जानने .सुरेश को पिछले हफ्ते ही दिल का दौरा पड़ा  था .ऑटो में पहले से ही एक लड़की बैठी हुई थी . बाबू रामधन ने ऑटो वाले से पूछा '' बेटा सिटी हॉस्पिटल चलेगा ?'' ऑटो वाला बोला -'' हां ताऊ ...वही जा रहा हूँ ...बैठ  लो तावली !''  बाबू रामधन सकुचाते हुए उस लड़की के बराबर में बैठ लिए और  मन में सोचने लगे -'' कितनी बेशर्मी आ गयी है ...मर्दों के कपडे पहन कर फिरती हैं लड़कियां ..के कहवें हैं जींस ..टी शर्ट ..पहले तो जनानियां धोती पहने थी तो उस पर भी घर से निकलते समय चद्दर  ओढ़ लेवें थी ..इब देक्खो !!!'' बाबू रामधन के ये सोचते सोचते उस लड़की का मोबाइल बज उठा .उसने कॉल रिसीव करते हुए कहा -सर मैं बस पहुँच ही रही हूँ ..डोंट वरी !'' बाबू रामधन का दिमाग और गरम हो गया .वे सोचने लगे -'' इस मोबाइल ने तो सारा गुड गोबर  ही कर डाला ..जनानियों को क्या जरूरत है इसकी ...बस यार दोस्तों से गप्पे लड़ाने का साधन मिल गया !'' तभी ऑटो रुका क्योंकि अस्पताल आ गया था .बाबू रामधन वही उतर लिए और वो  लड़की भी .बाबू रामधन के देखते देखते वो लड़की तेजी से अस्पताल के अंदर चली  गयी . बाबू रामधन मुंह बिचकाते हुए पूछपाछ कर सुरेश के पास उसके वार्ड में पहुँच गए .वहां सुरेश की सेवा करती हुई नर्स को देखकर वे अपनी सोच पर शर्मिंदा हो उठे .ये नर्स वही लड़की थी जो उनके साथ ऑटो में बैठकर आई थी .उन्होंने मन में सोचा -'' वक्त के साथ म्हारी सोच भी पलटनी चाहिए .वाकई बेशर्म ये मरदाना लिबास में लडकिया नहीं बल्कि हमारी सोच है जो लड़की देखते ही बस उसके लिबास पर आँखें गड़ाने लगते हैं केवल इसलिए  क्योंकि वो एक लड़की  है !!!

शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

तडपाई दिल्लगी से तेजाब फैंककर .



झुलसाई ज़िन्दगी ही तेजाब फैंककर ,
दिखलाई हिम्मतें ही तेजाब फैंककर .

अरमान जब हवस के पूरे न हो सके ,

तडपाई  दिल्लगी से तेजाब फैंककर .

ज़ागीर है ये मेरी, मेरा ही दिल जलाये ,

ठुकराई मिल्कियत से तेजाब फैंककर .

मेरी नहीं बनेगी फिर क्यूं बने किसी की,

सिखलाई बेवफाई तेजाब फैंककर .

चेहरा है चाँद तेरा ले दाग भी उसी से ,

दिलवाई निकाई ही तेजाब फैंककर .

 देखा है प्यार मेरा अब नफरतों को देखो ,

झलकाई मर्दानगी तेजाब फैंककर .

 शैतान का दिल टूटे तो आये क़यामत ,

निपटाई हैवानगी तेजाब फैंककर .

 कायरता है पुरुष की समझे बहादुरी है ,

छलकाई बेबसी ही तेजाब फैंककर .

 औरत न चीज़ कोई डर जाएगी न ऐसे ,

घबराई जवानी पर तेजाब फैंककर .

उसकी भी हसरतें हैं ,उसमे भी दिलावरी ,

धमकाई बेसुधी ही तेजाब फैंककर .

 चट्टान की मानिंद ही है रु-ब-रु-वो तेरे ,

गरमाई ''शालिनी'' भी तेजाब फैंककर .

       शालिनी कौशिक

             [कौशल]

 शब्दार्थ  :ज़ागीर -पुरुस्कार स्वरुप राजाओं महाराजाओं द्वारा दी गयी ज़मीन ,मिल्कियत-ज़मींदारी ,निपटाई -झगडा ख़त्म करना ,निकाई-खूबसूरती


बुधवार, 24 दिसंबर 2014

माँ का चुम्बन !



 मेरे माथे पर 
नरम -गरम 
दो अधरों की छुअन ,
कितना पावन !
कितना पवित्र !
माँ का चुम्बन !
........................................

फैलाकर बाहें 
माँ का घुटनों 
तक झुक जाना ,
दौड़कर मेरा 
माँ से लिपट जाना !
मातृत्व का अभिनन्दन !
कितना पावन !
कितना पवित्र !
माँ का चुम्बन !
.............................................


ढिठाई पर पिटाई ,
मेरा रूठ जाना ,
माँ का मनाना ,
माँ का दुलार ,
ममता की फुहार !
माँ से शुरू 
माँ पर ख़त्म !
मेरा बचपन !
कितना पावन !
कितना पवित्र !
माँ का चुम्बन !

शिखा कौशिक 'नूतन '

मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

बहन का सवाल !


बहन  का  सवाल ! -एक लघु कथा

रजत ने गुस्से  में तमतमाते हुए घर में घुसते ही आवाज  लगाईं  -मम्मी 'सारा' कहाँ है ? मम्मी थोडा घबराई   हुई किचन से बाहर आते हुए बोली -''...............क्या हुआ  रजत ?.....चिल्ला क्यों रहा है ........सारा तो अपने कमरे में है .तुम दोनों भाई-बहन में क्या चलता रहता है भगवान ही जानें ! उसके पैर में मोच है सचिन अपनी बाइक पर छोड़कर गया है कॉलेज से यहाँ घर ....''रजत मम्मी की बात अनसुनी करते हुए सारा के कमरे की ओर बढ लिया .सारा पलंग पर बैठी हुई अपने पैर को सहला रही थी .रजत ने कमरे में घुसते ही कड़क वाणी में कहा -''.....सारा कितनी बार मना किया है कि किसी  भी लड़के की बाइक पर मत बैठा करो !तुम मुझे कॉल कर देती मैं आ जाता तुम्हे लेने .....मेरा कॉलिज दूर ही कितना है तुम्हारे कॉलिज से !आज के बाद यदि तुम्हे किसी लड़के की बाइक पर पीछे बैठा देखा तो अच्छा न होगा !...''यह कहकर आँख दिखाता हुआ रजत सारा के कमरे से चला गया .सारा के गले में एक बात अटकी ही रह गयी -''....भैया केवल आपने ही नहीं देखा था मुझे .....मैंने भी देखा था आपको सागरिका को आपकी  बाइक पर पीछे बैठाकर जाते हुए .मैंने जानबूझकर    नज़र चुरा ली थी ....मै आपको डिस्टर्ब नहीं करना चाहती   थी ......पर जब  आप अपनी बहन का  किसी और लड़के की बाइक पर बैठना पसंद  नहीं करते फिर किसी और की बहन को क्यों बैठा लेते हैं अपनी बाइक पर ?........केवल इसलिए की आप लड़के हो .....आप जो चाहो करो ....सब सही है !''
                                          शिखा कौशिक
                

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

''वाह रे पतिदेव !''



नवयुवक राज अपना मोबाइल रिचार्ज कराकर  ज्यूँ ही दुकान से उतरा अनजाने  में उसका हाथ  एक  महिला  से टकरा गया .महिला कुछ कहती इससे पूर्व  ही उसके पति का खून ये दृश्य देखकर  खौल उठा .पतिदेव ने  तुरंत राज का गिरेबान पकड़ लिया और भड़कते हुए बोले -'' औरत को छेड़ता है ! शर्म नहीं आती ? '' राज अपनी सफाई देता हुआ बोला -'' भाई साहब ऐसा इत्तेफाक से हो गया ...मेरा ऐसा कोई मकसद नहीं था ....फिर भी मैं माफ़ी मांग लेता हूँ .'' ये कहकर राज ने अपना गिरेबान छुड़वाया और उस महिला के आगे हाथ जोड़कर बोला -''माफ़ कर दीजिये भाभी जी !'' महिला ने धीरे से पतिदेव की और देखते हुए कहा -''  अब छोडो भी ..तमाशा करके रख दिया ..कुछ हुआ भी था .ये ठीक कह रहे हैं जी .'' पतिदेव ने एक बार राज को घूरा और पत्नी को समझाते हुए बोले -'' तुम कुछ  नहीं समझती  ...ये आवारा लड़के ऐसे ही औरतों  को छेड़ते फिरते हैं  ...मेरे सामने कोई  तुम्हे हाथ लगाये ये मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता ...चल अब निकल ले   लड़के ..आगे से याद रखना किसी महिला को छेड़ना नहीं !'' ये धमकी देकर वे दोनों पति पत्नी पास की एक लेडीज टेलर की दूकान पर चढ़ गए . महिला को अपना  ब्लाऊज़  सिलवाना था  .पति की उपस्थिति  में ही महिला का नाप टेलर के पुरुष असिस्टेंट ने लिया और सड़क के दूसरी ओर की सामने की दूकान पर खड़ा राज मन ही मन मुस्कुराता हुआ सोचने लगा  - '' वाह रे पतिदेव ! ..पत्नी को कोई और हाथ लगाये तो इसे बर्दाश्त नहीं होता ..फिर अब कैसे बर्दाश्त हो गया ? ''

शिखा कौशिक 'नूतन '

शनिवार, 6 दिसंबर 2014

गुलाब नहीं तेज़ाब -लघु कथा

सुमन ने पिया के हाथ में गिफ्ट देखा  तो तपाक से उससे गिफ्ट झपटने की कोशिश करते हुए  हुए बोली 'अरे दिखा ना साहिल  ने क्या  गिफ्ट दिया है  ?'' पिया ने न चाहते हुए भी गिफ्ट पैक उसे पकड़ा दिया . सुमन बंद गिफ्ट पैक को हिलाते हुए बोली -'' लगता है कुछ ज्यादा ही मंहगा गिफ्ट दिया है साहिल ने तुझे ...कुछ भी कहो रजत से ज्यादा दिलदार है साहिल .अच्छा हुआ जो तूने उससे ब्रेकअप कर लिया .'' पिया इठलाते हुए बोली -''अरे जो अच्छे गिफ्ट नहीं दे सकता मुझे ..वो शादी के बाद मेरे नखरे कैसे उठाता ? यू नो मैं कितनी खर्चीली हूँ ..जो भी अच्छी चीज़ देखी खरीदने को मन मचल जाता है ...रजत मेरे टाइप का था ही नहीं ..बस थोड़े दिन टाइम पास कर लिया उसके साथ...बोरिंग ..और ये देखो एक सप्ताह भी  साहिल से दोस्ती हुए नहीं हुआ और इतना बड़ा गिफ्ट ....अरे खोलो ना ...आई कांट  वेट ...!'' पिया के ये कहते ही सुमन ने ज्यूँ ही गिफ्ट पैक खोला वे दोनों उसके अंदर रखी चीज़ को देखकर हैरान रह गयी .गिफ्ट पैक में दो शीशियां रखी थी .एक पर लिखा था गुलाब का इत्र और दूसरी पर तेजाब .साथ में एक पत्र भी था .पिया ने तुरंत उस पत्र को उठाकर खोलकर पढ़ना शुरू किया .उसमे लिखा था -'' पिया तुम क्या सोचती हो ..तुमने अपने खूबसूरती के जाल में मुझे फंसा लिया ...यू आर मैड ! तुम मुझे नहीं फंसा सकती थी क्योंकि मैं रजत का दोस्त हूँ और अच्छे-बुरे का अंतर जानता हूँ .मेरा दोस्त रजत तो गुलाब के इत्र की तरह है जो अपनी खुशबू से सारे संसार को महका सकता है .तुमने उसके साथ मसखरी कर उसका  दिल तोडा पर वो फिर भी तुम्हारे सुखद भविष्य की कामना करता है पर मैं इस गिफ्ट में रखे तेजाब की तरह हूँ मैं धोखा देने वाले को जलाकर ख़ाक कर देने में यकीन करता हूँ .बेहतर होगा भविष्य में तुम मुझसे दूर ही रहो  .आशा करता हूँ तुम्हे मेरा गिफ्ट बहुत पसंद आएगा ..'' ये पढ़ते-पढ़ते पिया के पसीने छूट गए .उसे आज समझ में आया कि उसकी सोच कितनी घिनौनी है जिसने रजत जैसे हीरे को हमेशा के लिए खो दिया था .


शिखा कौशिक 'नूतन'

माँ ...........तेरे जाने के बाद

जब मै जन्मा तो मेरे लबो सबसे पहले तेरा नाम आया,
बचपन से जवानी तक हर पल तेरे साथ बिताया.
लेकिन पता नहीं तू कहा चली गयी रुशवा होकर,
की आज तक तेरा कोई पौगाम ना आया.
मै तो सोया हुआ था बेफिक्र होकर,
और जब जागा तो न तेरी ममता, ना तुझे पाया.
मुझसे क्या ऐसी खता हो गयी,
जिसकी सजा दी तूने ऐसी की मै सह ना पाया.
तू छोड़ गयी मुझे यु अकेला,
मै तो तुझे आखरी बार देख भी ना पाया.
तू तो मुझे एक पल भी छोड़ती नहीं थी,
फिर तूने इतना लम्बा अरसा कैसे बिताया.
तू इक बार आ जा मुझसे मिलने,
देखना चाहता हूँ माँ तेरी एक बार काया.