गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014

निर्लज्जता पर मर्यादा की विजय का विराट पर्व’

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''असत्य पर सत्य की; अभिमान पर स्वाभिमान की;
अंधकार पर प्रकाश की; पाप पर पुण्य की'
अमंगल पर मंगल की; अनीति पर नीति की'
      '  विजय का विराट पर्व'
क्रूरता पर करुणा  की ; वासना पर प्रेम की ;
उदंडता पर अनुशासन की; निर्लज्जता पर मर्यादा की;
विषाद पर आनंद की ;द्वेष  पर सहिष्णुता  की'
         'विजय का विराट पर्व'
निष्ठुरता पर संवेदनशीलता की; क्रोध पर क्षमा की;
तामसिकता पर सात्विकता की; लोकपीडा पर लोकमंगल की;
दुश्चरित्रता पर सच्चरित्रता की; संकुचित पर उदात्त की;
            'विजय का विराट पर्व'
भक्षक पर रक्षक की; दुष्ट पर दयावान की;
शत्रुत्व  पर बन्धुत्त्व की; ''मै'' पर ''हम'' की;
         रावन पर श्री 'राम' की
      'विजय का विराट पर्व
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6 टिप्‍पणियां:

Rishabh Shukla ने कहा…

nice post.

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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (04-10-2014) को "अधम रावण जलाया जायेगा" (चर्चा मंच-१७५६) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
विजयादशमी (दशहरा) की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Unknown ने कहा…

विजयादशमी-पर्व की हार्दिक वधाई !

Dr. Rajeev K. Upadhyay ने कहा…

सुन्दर रचना। स्वयं शून्य

Rishabh Shukla ने कहा…

sundar post.
Aaj meri kavita padhe Nayee purani halchal me is pate par -

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Onkar ने कहा…
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